Self Studies, Home Work Vs Tuition
ट्यूशन कौन जाता है?
वो बच्चे जिनके घर में कोई भी पढ़ाने वाला नहीं होता। ज्यादातर हरियाणा के या ऐसे ही स्कूलों के बच्चे?
अच्छे स्कूल अपने विधार्थियों को ट्यूशन पे नहीं जाने देंगे। और वो माँ-बाप तो कभी नहीं, जिन्हें मालुम है की स्कूल के होम वर्क का बोझ ही काफी होता है, आजकल बच्चों पे। ऐसे में वो ट्यूशन को भी कैसे झेलेंगे? या फिर वो माँ-बाप, जो अपने बच्चों के लिए "वक़्त नहीं निकाल पाते", का बहाना लिए होते हैं। और भी कैसे-कैसे बहाने हो सकते हैं दुनियाँ में?
एक तो स्कूलों ने बच्चों का बचपन वैसे ही छीन लिया है। उसपे एक यही कमी रह जाती है, बच्चों को चूहा-रेस का हिस्सा बना देने की। ट्यूशन के चक्कर में अक्सर वो माँ-बाप फंसते हैं जो आज के प्रतिस्पर्धा के दौर में असुरक्षित महसुस करते हैं। क्युंकि उन्हें बहकाना आसान होता है। उन्हें लगता है की वो अच्छे से न पढ़ पाए तो क्या, उनके बच्चे तो पढ़ लेंगे। BYJU जैसी कंपनियों को तो वैसे भी बैन कर देना चाहिए। ऐसे लोगों ने शिक्षा को पैसे ऐंठने का धंधा बना लिया है। शिक्षा और पैसे ऐंठने की मशीने या कम्पनियाँ? हज़म हो रहा है क्या? वो भी प्राइमरी लेवल पे ही शुरू हो गए? शिक्षा देने के अलावा भी कोई बहाना हो सकता है, ऐसी कंपनियों के पास बच्चे को लुभाने का?
चालें चलना (Tricks), कोई जादु नहीं है। क्युंकि, इनमें आमजन को जो दिखाया या सुनाया जाता है, हकीकत उसके परे होती है। गुप्त होती है।
जहाँ फुट डालो राज करो में, न जाने कैसा-कैसा भूसा, लोगों के दिमागों में डाला जाता है। ऐसा ही कुछ, यहाँ-वहां की कहानियाँ हैं।
सोचो ऊपर वाले केस में Mind Programming क्या हो सकती है? कम्पनियाँ अपने उत्पाद कैसे बेचती हैं ? कैसे लोगों को आसानी से अपने जाल में फँसा सकती हैं, खासकर जहाँ जरूरत भी न हो ऐसा सामान खरीदने के लिए ?
शिक्षा का ही एक उदाहरण लेते हैं
कंपनी के लोगों के पास थोड़ा-बहुत दिमाग है और ऐसे असुरक्षित अभिभावक भी, जो आज की प्रतिस्पर्धा के वातावरण में अपने बच्चों को चूहा-रेस का हिस्सा बनाने से भी नहीं हिचकिचाएंगे? तो उन्हें एक कंपनी के नाम का लैपटॉप या टेबलेट पकड़ाओ और ऑनलाइन पढाने के नाम पे पैसे कमाओ। भला बुराई क्या है ? पैसे भी तो दिमाग वाले ही कुटेंगे ना?
कैसे माँ-बाप ऐसी कंपनियों के जालों में आएंगे?
जो खुद पढ़े लिखे हैं और अपने बच्चों को खुद पढ़ाने और सेल्फ स्टडी करवाने में विश्वास रखते हैं? या जो माँ-बाप ना तो खुद इतने पढ़े-लिखे और प्राइवेट स्कूलों को ज्यादा पैसे लेते हैं, के लिए कोसते मिलेंगे? अगर कोई उनके पास मुफ्त में पढ़ाने वाला हो, और वो भी इन धंधा बाज़ुरू शिक्षा बेचने वालों से अच्छा? तो कहाँ पढ़ाएंगे वो? यहाँ पे अहम् ये नहीं है की अच्छा कौन पढ़ायेगा या ज्यादा वक़्त कौन दे पाएगा, बल्कि शिक्षा भी एक उत्पाद है और उसे बेचने में माहिर कौन है? ना की पढ़ाने में। इसके इलावा कुछ और भी खास हो सकता है किसी केस में।
BYJU का ही उदाहरण लो। एक कंपनी, जिनके एक बैच में 40 से 50 के बीच विद्यार्थी हों, मतलब स्कूल क्लास से भी ज्यादा। अच्छे स्कूल, टीचर और स्टूडेंट के अनुपात का ध्यान रखते हैं। छोटे बच्चों की इतनी बड़ी क्लास? एक बच्चे पे कितना फोकस होगा, पढ़ाने वाले टीचर का? उसपे वो प्रैक्टिकल टीचिंग का भी दावा करते हों? शायद यूनिवर्सिटी लेवल पे भी एक प्रैक्टिकल ग्रुप में 15 -20 से ज्यादा स्टूडेंट्स नहीं होते। ये तो फिर primary लेवल पे ही शुरू हो गए।
कमी कहाँ है? गवर्नेंस और सिस्टम में। एक ऐसा सिस्टम जो समाज के उस आखिरी तबके तक अच्छी शिक्षा तक उपलब्ध ना करा पाए।
समाधान क्या है? वो लोग जो फ्री में पढ़ा सकें या कम से कम ऐसे केसों में कुछ तो सहायता कर सकें। फ्री में तो ऑनलाइन ही बहुत कुछ है। फिर BYJU जैसी कंपनियों को क्यों पैसे देना? करते हैं शुरू, एक ऐसा लिंक जो फ्री का ज्ञान, दुनियाँ भर से उठाकर, छांटकर, किसी एक लिंक पे उपलब्ध करा सके। वो भी हर क्लास के सिलेबस के अनुसार। सुना है दिल्ली के स्कूल अच्छे हैं और ज्यादातर प्राइवेट स्कूल सीबीएसई affiliated। तो दिल्ली वाले ही क्यों नहीं शुरू करते ऐसा कुछ? हाँ ! अगर मेरे जैसों की नॉलेज में न हो तो थोड़ा प्रचार-प्रसार करो ना उसका। वैसे तो आजकल ज्यादातर अच्छी स्कूली किताबें, ऐसा material ऑनलाइन देती हैं। मगर शायद सबके लिए फ्री नहीं।
आह ! फुट डालो राज करो?
दूसरा केस लेते हैं
कुछ बच्चे हैं जिनमें कोई किसी की बुआ तो किसी की मौसी।
जिसकी बुआ है उस बच्चे को बोला जाता है, आप किसी खास पड़ोस में खेलो-कूदो और ट्यूशन पढ़ो। मगर, जिनकी मौसी है उन्हें बोला जाता है, मौसी के पास जाओ।
बुआ कहने वाला बच्चा ज्यादा लगाव रखता है और अधिकार भी। वो चाहे कहीं खेले या पढ़े, मगर उसे ये मौसी वाले यूँ हक़ जताते बिलकुल पसंद नहीं। बुआ कहने वाले से तो जबरदस्ती दूर किया जा रहा है, जो तक़रीबन असंभव-सा है। पर हमारी खुरापाती आर्मी फाॅर्स कह रही है की देखो, असंभव को हम संभव कैसे बनाते हैं। हमने कैसे-कैसे, असंभव, संभव बना दिए। अब आर्मी भी कैसी-कैसी हो सकती हैं? ये पिछले कुछ महीनों में समझ आया। सुना है, ये वाली आर्मी एक तीर से दो या शायद कई शिकार के चक्र में है? सुना है कहीं जैसे को तैसा हो रहा है? अब ये जैसे को तैसे का राज थोड़ा उलझ-पुलझ है। वैसे ही जैसे और सामांतर केसों की घड़ाईयां। और फिर बच्चे ने किसी का क्या बिगाड़ा होगा? इतना मानसिक अत्याचार? जिन्हें समझ आना चाहिए उन्हें शायद यहाँ भी कुछ नहीं समझ आना?
बुआ वाला बच्चा पहले ही किसी तरह के मानसिक अत्याचार, कोई खास कमी से गुजर रहा है, उसमें आप तो हिस्सा न बने -- सोचकर आप मौसी वालों से भी दूरी बनाने लगते हैं। ताकि बच्चे को महसूस न हो। और लो, आपका बॉयकॉट शुरू। कुछ महान तो हाय-हैलो ही कहना बंद कर देते हैं। और कुछ ग्रेट, उससे थोड़ा आगे निकलके "निकलो इस घर से"! खामखाँ, मौसी का लेक्चर सुनने के लिए।
क्या Mind Programming हो सकती है यहाँ?
चालों में या यूँ कहें की Tricks में ज्यादातर, बहुत ही छोटी-छोटी सी चीज़ें और हेरफेर होते हैं, जो धीरे-धीरे बड़े होते जाते हैं। इतने छोटे की आम आदमी वक़्त रहते उन्हें पकड़ ही नहीं पाता। जिसका फायदा कुछ अपने कहे जाने वाले लोग भी उठाने लगते हैं। अनजाने में, भरम में, गलतफहमी में, या शायद खुद को कुछ ज्यादा समझदार सोचकर?
Tricks
Keep this one close, move that one away, either by hook or crook.
Trap on emotional imbalance or some tragedy. Works mostly on emotionally weak people especially child.
चालाक लोगों के पास कितने ही तरह के तरीके हो सकते हैं, रिश्तों में या कहीं भी जोड़, तोड़, मरोड़ के। आम आदमी, जब तक मार न खा ले, तब तक कहाँ समझ पाता है की ऐसी छोटी-छोटी चीज़ें भी Mind Programming का हिस्सा हो सकती है ? या यूँ कहो मार खाने के बाद भी कम ही समझ पाता है जब तक बताया ना जाए की Mind Programming जैसा भी कुछ होता है। जैसे राशि (Horoscope). नीचे दिए गए लिंक को चैक करें
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