समृद्ध देश या पिछड़े हुए देश? समृद्ध कॉलोनी या पिछड़ी हुई कॉलोनी? समृद्ध देश के लोग या कम समृद्ध या पिछड़े हुए देश के लोग? क्या हम उन्हें सिर्फ कुत्तों के हालात जानकार जान सकते हैं? या कोई और पालतु जानवर या पेड़-पौधों से तुलना कर? शायद कुछ हद तक। क्युंकि, समृद्ध कॉलोनी या देश में ज्यादातर जीव या निर्जीव चीज़ें, थोड़ा अच्छे से फलते-फूलते हैं। कम समृद्ध कॉलोनी या देश मतलब ज्यादातर जीव या निर्जीव चीज़ें, कम संसाधनों में पलते हैं, तो फलते-फूलते भी कम ही हैं। मगर जीवन भर संघर्ष ज्यादा करते हैं।
हमारी ज़िंदगी का हर कदम, सीधे-सीधे या उलटे-सीधे, किसी भी जगह की राजनीति से बहुत ज़्यादा प्रभावित होता है। उस जगह की राजनीति में छिपे होते हैं, वो गुप्त रहस्य, जो ज़िंदगियों को इधर या उधर धकलते हैं। जैसे राजनीति निरंतर चलती रहती है, ऐसे ही इन गुप्त कोडों की उठा-पटक। आप क्या खाते हैं, क्या पीते हैं, क्या पहनते हैं, कहाँ रहते हैं, कहाँ पढ़ते हैं या क्या काम करते हैं, ये सब यही राजनीतिक पार्टियों की गुप्त CODON की उठापटक का संघर्ष बताता है। इसमें कौन-सी पार्टी के कोड आपके लिए सही हैं या नहीं है, ये आपको पता ही नहीं होता। या यूँ कहें की ये गुप्त-कोड आम-आदमी के भले के लिए नहीं, बल्कि इन पार्टियों के अपने निहित-स्वार्थों के लिए बनाये जाते हैं। उन्हें लागू करने के लिए, ये आपको थोड़ा बहुत लालच देकर, अपना कुत्ता तो बना सकते हैं। मगर अगर आप ये सोचने लग जाएँ की ये पार्टियाँ आपके लिए काम करती हैं, तो ये भरम के जाले उतार दो। ये कुत्तों को टुकड़े डालने जैसा-सा लालच ही फुट डालो, राज करो, में काम आता है। कुछ कुत्ते ये राजनीतिक पार्टी पाल लेती है, तो कुछ दूसरे वाली। अब अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों को ये अपने-अपने कुत्तों के जरिए सँभालते हैं। इसे हम लड़ाई के जरिए समझ सकते हैं। बहुत कम होता है की कुत्ते रखने वाले आपस में सीधा-सीधा लड़ें। ज्यादातर उनके कुत्तों को जरूर लड़ते या एक दूसरे को भोंकते देखा होगा। ऐसे ही राजनीतिक नेताओं को शायद ही कभी आपस में हाथापाई करते या सिर फुड़वाते या टूटते-फूटते देखा हो। हाँ! जुबानी तो वो लड़ते-भिड़ते ही रहते हैं। मगर सीधा-सीधा युद्ध, उनके लिए उनके आदमी लड़ते-भिड़ते हैं। अगर वो उनके कुत्ते नहीं है, तो क्या हैं? ऐसे ही कभी इन बड़े आदमियों के बच्चों को ऐसे लड़ते-झगड़ते देखा है? शायद इनके पाले हुए कुत्तों के बच्चों को जरूर देखा होगा? ऐसा नहीं की बड़े लोग लड़ते नहीं। सारी महाभारतों के रचियता ही वही होते हैं। मगर वो सबसे आखिर में मरते हैं, अगर ऐसी नौबत आए भी तो। नहीं तो उनके आदमी, उनकी सेनाएँ ही मरती-कटती हैं।
अब रचियेता खुद कहाँ झगड़ते हैं? उनके लिए लोग लड़ते-मरते हैं। जैसे राजा-महाराजाओं के लिए सेनाएँ। राजे-महाराजे सेनाएँ रखते हैं, जो उनके लिए मरती-कटती रहें। या यूँ कहो, उनके कुछ टुकड़ों के लिए। राजाओं-महाराजाओं के थोड़े-से टुकड़ों के लिए मरने-कटने की बजाय, ये लोग खुद क्यों नहीं कमाना सीख लेते वो टुकड़े? उसके लिए शायद थोड़ा खुद्दार और थोड़ा पढ़ा-लिखा होना जरूरी है? आपस में कुत्तों की तरह झगड़ने की बजाय शायद मिलजुल कर रहना जरूरी है? राजे-महाराजे ऐसा क्यों चाहेंगे भला ये सब? इसलिए ऐसे राजे-महाराजे अपनी जनता को न सिर्फ आपस में भिड़वाते रहते हैं, बल्कि आगे भी नहीं बढ़ने देते।
राजे-महाराजाओं के बच्चे ज्यादातर बाहर पढ़ते हैं। क्यों? पैसा ज्यादा है, कहीं भी पढ़े? नहीं। कम पैसे वाले भी बाहर पढ़ सकते हैं। अगर आप अपने बच्चों की स्कूली पढ़ाई पे, अपने ही देश में भी थोड़ा पैसा बच जाएगा, के चक्कर में, किसी भी कारणवश स्कूल बदलवा देते हैं। या ऐसा करवाने वालों के बीच हैं। तो मान के चलो, आप आगे नहीं बढ़ रहे। अपने बच्चो को भी पीछे धकेल रहे हैं। उप्पर बैठे ऐसे लोग, शातिर-चालबाज़ हैं। ये वो लोग हैं, जिनके लिए आप जैसे लोगों का कोई भी नई भाषा सीखना सही नहीं है। लैपटॉप सीखना सही नहीं है। पढ़ना-लिखना तो बिलकुल ही नहीं है। ऐसा हुआ तो आपको पता नहीं चल जाएगा की वो क्या-क्या खेलते हैं, आपके साथ, आपके अपनों के साथ? और अगर किसी ने कोई छोटा-सा स्कूल तक खोलने की सोच ली, तो वो ऐसी सोच को ही या शायद इंसान को ही खत्म कर देंगे। ऐसे राजे-महाराजे अपनी जनता के हितैषी कैसे हो सकते हैं? ऐसे राजे-महाराजों को तो ज़िंदा गाड़ देना चाहिए। ऐसे लोग अपनी ही जनता के दुश्मन हैं। गाड़ना, मार-पिटाई या कुटाई से नहीं। ये सब पिछड़ेपन की निशानी हैं। खुद को और अपने आसपास को आगे उठाकर और ऐसे-ऐसे राजे महाराजों का अघोषित शौषण और छलावा खत्म। यही मुश्किल है? न वो ऐसा होने देंगे और न आप इसके काबिल? अगर आप खुद को काबिल मानते हैं, तो काबिल हैं। नहीं तो नहीं। सब सोच पर है। और ऐसा नहीं है, की ये राजे-महाराजे किसी एक पार्टी में हैं। ये राजे-महाराजे हर पार्टी में हैं। और इनकी सेनाएँ आम आदमी।
पॉश कॉलोनियों में कुत्ते घर में पाले जाते हैं तो अधिकार भी ज्यादा रखते हैं। थोड़ी कम पॉश कॉलोनियों में घर के साथ-साथ बाहर भी पलते हैं। और बाकी संसार में ज्यादातर बाहर ही पलते हैं। जिनके घर में पलते हैं, मतलब थोड़ा बहुत तो जरूर उन्हें ढंग से रखते होंगे। उनके पास उनको खाने-पीने, रहने, घुमाने लायक संसांधन तो होंगे ही। जिनके बाहर पलते हैं, वो या तो घर के अंदर रखना पसंद नहीं करते या शायद इतने संसाधन न हों। अब इन घर में और बाहर पलने या पालने वालों की तुलना, हम पॉश कॉलोनी या कम पॉश कॉलोनी, समृद्ध देश या पिछड़े हुए देशों से भी कर सकते हैं।
अगर आप समृद्ध होना चाहते हैं, तो समृद्ध और पिछड़े के बीच तुलना करके जाने, दोनों में फर्क क्या-क्या हैं? समर्द्ध लोग या देश ऐसा क्या करते हैं, जो पिछड़े नहीं करते? या शायद उल्टा करते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं की समृद्ध लोगों की बुराईयां तो सब नकल कर ली, मगर अच्छाईयों का पता तक नहीं। या शायद वो सब, जो शायद बहुत अच्छा भी न हो मगर समृद्ध बनाता हो। आते हैं इसपे भी, किसी अगली पोस्ट में।
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