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Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Monday, July 17, 2023

चालें, घातें और राजनीती?

चलो पहले थोड़ा पीछे चलते हैं 

मैं आपके पास सो जाऊँ?

सो जाओ।  

अगले दिन, फिर दिन में वहीँ बुआ के पास खेलना, थोड़ा बहुत काम करना, खाना-पीना और रात होते-होते, मैं आपके पास सो जाऊँ?    

सो जाना, मगर पहले घर बोलके आओ। 

मम्मी को बोल आई। 

झूठा बच्चा। आप घर गए ही कब?

अरे गई थी ना। बच्चे कितनी मासूमियत से पेश आते हैं ना? 

अच्छा। जाओ एक बार असलियत में जा आओ। नहीं तो मम्मी या पापा आएँगे लेने। 

आ जाएँगे तो यहीं से बोल दुंगी। 

बहुत आलसी हो गए आप। जाके बोलके आओ। 

भगा रहे हो ? अब मैं पुरे बैड पे नहीं फैलती। सीधा सोती हूँ। और लात भी नहीं मारती। 

अच्छा! मुझे तो पता ही नहीं था। फिर भी घर तो बता ही आना चाहिए। 

ठीक है। और बेमन जैसे वो जाके, थोड़ी बाद फिर से वापस आ गयी। मेरे कमरे में यहाँ एक ही सिंगल बैड था। और बहुत बार ऐसा ही होता था। कभी गर्मी ज्यादा होती या मच्छर होते तो नीचे दादी के पास सो जाती। 

भाभी के जाने के बाद मुझे लगा दूसरा बैड मुझे अपने कमरे में डाल लेना चाहिए। क्युंकि मेरे हिसाब से तो अब वो यहीं सोने वाली थी। अब उसे बुआ की ज्यादा जरूरत थी। और मैंने दुसरे कमरे से एक और सिंगल बैड अपने कमरे में करवा लिया था। मगर श्याम को जब मैं उस टूशन वाली लड़की के यहाँ दूध लेने गई तो कुछ अजीब हुआ। 

उस औरत (टूशन वाली लड़की की माँ) ने बोला, की गुड़िया अब तुम्हारे पास सोएगी या अपने घर? 

मुझे पहले ही उनकी कई बेतुकी बातों पे गुस्सा आया हुआ था। 

जैसे, "फीस कम होगी तो दो पैसे बचेंगे, काम आएंगे।" 

बच्चे की फीस में पैसे बचाना और वो भी उस बच्चे की माँ के जाने के बाद? ऐसी भी क्या मजबुरी हो सकती है? या कुछ लोगों का लालच, कुछ की राजनीती और कुछ का बेदिमाग होना?   

-- और मैंने गुस्से में ही बोला, नहीं मौसी के यहाँ। क्युंकि कुछ लोगों के अनुसार, अब वो मौसी के यहाँ जाने वाली थी। कुछ इधर-उधर और बाहर के लोगों के अनुसार। मेरा बच्चे की मौसी से कोई झगड़ा नहीं था, बल्की ठीक-ठाक बोलचाल था। नार्मल केसों में, जैसा होता है। मगर यहाँ वक़्त के साथ ये समझ आया की वहाँ भी दरारें पैदा करने की कोशिश हो रही थी। मतलब, ऐसे माहौल में और ऐसी परिस्थिति में बच्चे का भला कहाँ है, ये तो फोकस था ही नहीं। आसपास में हर किसी के अपने-अपने, छोटे-मोटे स्वार्थ, वो भी जुए वाली राजनीती के पैदा किये हुए।     

पता नहीं क्यों मुझे उनकी ज्यादातर बातें बेतुकी, और हद से ज्यादा दखल देनी वाली लग रही थी। हर बात पे ऐसे लग रहा था, जैसे बच्चे को जबरदस्ती घर से बाहर निकाला जा रहा हो। 

तेहरवीं पे जब गुड़िया वापस आयी तो उसकी बहुत-सी बातों और व्यवहार में बदलाव था। मुझे लगा स्वाभाविक ही है, क्युंकि बच्चे के लिए माँ का जाना, जैसे दुनियाँ का उलट-पुलट हो जाना। शायद उसे अब घर वालों की ज्यादा जरुरत थी। 

मगर यहाँ तो एक भद्दा ड्रामा शुरू हो चुका था । ड्रामा, जो चल तो पहले से ही रहा था, मगर अब तो जैसे सबकुछ उनके हवाले था। मगर किनके?       

"3-4 साल से टूशन पढ़ाती है।"

और बच्चा कह रहा है, "कल तो पढ़ाने लगी है, मम्मी के जाने के बाद। पहले तो मम्मी ही पढ़ाते थे।" 

मुझे भी यही मालुम था। 

"तुम्हें छोटे बच्चो को पढ़ाना नहीं आता। बड़े बच्चों को पढ़ाते हो ना।"  

कल तक तो शायद आता था। खासकर अपने घर के बच्चे को पढ़ाना। बच्चे की माँ के जाते ही ऐसा क्या हो गया था? 31 जनवरी तक भी वो मेरे पास ही खेल रही थी। एक फरवरी को माँ गयी और तरह-तरह के बंधे क्यों? जबकि अब तो उसे बुआ की ज्यादा जरूरत है।     

4th क्लास परीक्षाएं और दिन-रात घर से बाहर (कोड 4th क्लास की परीक्षाएँ)। डरावने ये ड्रामे न लगें तो क्या लगे? 

बाप फैसला लेगा, पड़ोसी उवाच और अंदर ही अंदर काफी कुछ बदला जाना। 

बुआ को हर बात से, हर फैसले से निकाल फेंकना। अब बाप है तो हक तो है, चाहे वो कुछ भी करे? बुआ कौन होती है? या कुछ खास केसों में बुआ, बुआ होती है? माँ के जाने के बाद वो बच्चे की जिम्मेवारी ले सकती है। खासकर जब माँ के जाने के बाद दूसरे ही दिन, कोई बाप की शादी के चरचे वाले पहुँच जाएँ। उसपे वक़्त के साथ लड़की को घर से बाहर निकालने की कोशिशें। कैसे षड़यत्र हैं ये?      

जब ऐसा संभव न हो पाए तो खासमखास देखरेख प्रोग्राम। बाप ही नहलायेगा-धुलायेगा, वहीँ सोएगी। जो काम, वो अपने-आप करने लगी थी, वो भी अब वही करवाएगा। 6th तक या 7th तक, स्पेशल इंस्ट्रक्शंस! कहने को तो कुछ खास नहीं था। मगर जिस हिसाब से कह-कह के करवाया जा रहा था, और बुआ और दादी को अजीबोगरीब ढंग से बाहर का रास्ता दिखाने की कोशिशें हो रही थी, वो न सिर्फ हैरान करने वाला था, बल्की जिसे सामान्तर केस समझ आने लगे थे, उसके लिए तो सिर्फ किसी तरह का शक पैदा करने वाला नहीं, बल्की डरावना था।      

5th क्लास स्कूल बदलना। गाँव के स्कूल से, दूसरे गाँव के स्कूल! वो भी कोई अच्छा स्कूल नहीं। लड़कियों को धंधे में धकेलने वालों के लिंक वाला स्कूल? वही स्कूल, जिससे बच्चे की माँ खुद परेशान थी और छोड़ना चाहती थी! वही स्कूल, जिसमें वो अपने बच्चे को खुद वहां एक टीचर होते हुए नहीं लेकर गई? चलो बाप ने तो फैसला ले लिया हो, जिस किसी वजह से, मगर इन कुछ आसपास के, अपनों और पड़ोसियों के, यहाँ क्या और किस तरह के स्वार्थ हो सकते हैं? क्या इन्हें मालुम भी था या है, की ये किस तरह की सामान्तर घड़ाई चल रही है? वो भी भाभी के जाते ही? क्या लोग सच में इतने भोले हैं? या कैसे-कैसे स्वार्थ या लालच हो सकते हैं?      

टूशन लड़की का उसी स्कूल में टीचर ज्वाइन करना? 

टूशन लड़की और BYJU स्पेशल फोन बातचीत?  

लड़की छुपाना। वो भी कुछ अपने कहे जाने वाले लोगों द्वारा और आसपास के लोगों का शामिल होना।  

बुआ द्वारा बनाया खाना बंद करवा देना। 

बच्चे का दादी वाले घर ही आना बंद करवा देना। आजकल मैं यहीं रहती हूँ। पता नहीं कौन-सा और कैसा कोड है "राहुल माँ के घर रहता है?" कब आपके आसपास मोदी कोड मंडराने लगता है, कब केजरीवाल और कब राहुल गाँधी? बहुत ही अजीब किस्म का जुआ है। आम आदमी कैसे समझे इसे?   

बच्चे से बात ही बंद करवा देना। वो बच्चा बुआ से सब शेयर करता है। शायद किसी और के इतने पास नहीं है? फिर जबरदस्ती दूर करने का मतलब?  

बच्चे का डर में, इशारों में बातें करना। 

और आपका परिस्थिति अनुसार शिकायत करना -- "संभाल लो, संभाल सकते हो तो। फिर मत कहना बताया नहीं। पानी सिर के उप्पर से जा रहा है।" अब सब तो यहाँ लिखा नहीं जा सकता। 

और लो जी हो गयी सहायता, "दादी-पोती का अंदर से कुण्डी तक लगाना शुरू कर देना।" 

"मत बात करो, आपपे नहीं, हमपे असर होता है।" यहाँ जैसा मुझे समझ आया, कई तरह के डरावे और कुछ अपने कहे जाने वालों द्वारा खास तरह की टिक्का-टिपण्णी और ड्रामे भी थे। जब सीधे-सीधे बच्चे को दूर न कर पाओ, तो उलटे-सीधे तरीके अपनाना।  

कैसा और क्यों? आखिर कौन हैं ये डरावे? और क्या चाहते हैं, जो बुजर्गों और बच्चों तक को नहीं बक्शते?  

फिर से उन्हीं  गुंडों का जाल और चालें और वही गुंडों का स्कूल या लिंक? Filthy D-Graders?  

वही गुंडे जो बुआ का special rape, जिसे वो बैंक-अकाउंट ओपनिंग या शायद आधार भी बोलते हैं, करने या करवाने में नाकाम रहे। अब उन्हें उसपे कोई special विडियो भी बनाना था। 2018 में, 2010 के कामनवेल्थ के बेस पे? वैसे ये कामनवेल्थ क्या होता है? वो भी academics को तकरीबन खत्म कर, Psycho का स्पेशल इंजेक्शन लगा और उसके बाद हिमाचल के किसी स्कूल का स्पेशल विजिट (2018)? पर ये तो मैं खुद गयी थी ना घुमने? ऐसी स्थिति में, जब डॉक्टर ने कोई भी heavy machine चलाने से मना कर दिया हो? कैसे कोड थे ये?  

मगर ये क्या, ये कौन लोग थे जो चेतवानी वाला सिगनल दे रहे थे? "संभल कर, क्युँकि आप जहाँ जा रहे हैं वो दुनियाँ का सबसे ऊँचा क्रिकेट ग्राउंड है।" और मुझे तो किसी भी तरह के खेलों से ही नफरत हो चुकी थी। ये कैसे खेल, जो लोगों की, खासकर लड़कियों की ज़िंदगियाँ ही बर्बाद करके रख देते हैं? क्या आम-आदमी को भी ऐसे-ऐसे खेलों का हिस्सा होना चाहिए? ये सब क्या चल रहा था? थोड़ा समझ आते ही चिड़िया पिंजरा तोड़ उड़ चुकी थी। उसके बाद उसका खास इलाज हुआ 2019 में, एक और सामान्तर घड़ाई, मार-पिटाई, (यूनिवर्सिटी छोड़)।      

कैसे-कैसे डर और लालच? या कहना चाहिए की गँवारपठ्ठों को मानव-रोबोट बनाना बहुत आसान है? उन्हें कहा कुछ जाता है, और चल कुछ और ही रहा होता है। ऐसा ही कुछ। Persuasion-Politics को समझना बहुत जरूरी है, ऐसे-ऐसे जालों से बाहर निकलने के लिए।  

इतना कुछ लिखने के बाद, मेरी अपनी जान के खतरे बढ़ जाते हैं। सोचो मैं कैसे माहौल में धकेल दी गयी हूँ? जहाँ बेहुदा-राजनीती वालों के लिए खेलना बहुत आसान है। कम पढ़ा-लिखा, गाँव का इंसान, जल्दी बहकावे में आता है।और खतरे मेरे लिए ही नहीं, आगे वाली पीढ़ी के लिए भी। सामान्तर केसों से बच पाएंगे, इस पीढ़ी के बच्चे? कोई है जिम्मेदार? जिम्मेदार तो तब होंगे ना, जब बेहुदा राजनीती को समझ पाएंगे। 

आसपास के खास जिम्मेदार लोग और टिक्का-टिपणियां --

"तुझे तो नौकरी करनी है। अकेली औरत कैसे संभालेंगी बच्चे को?" और अकेली क्यों? यहाँ तो माँ-भाई भी हैं। वो साथ रह लेंगे। नहीं? 

दुनियाँ भर में कितनी ही औरतें अकेले बच्चे भी पाल रही हैं और नौकरी भी कर रही हैं। औरत अकेली है तो क्या उसके सब तरह के अधिकार खत्म हो जाते हैं? क्या हमारे समाज में गॉर्डस के बिना, अकेली औरतों और या कमजोर तबके का आम ज़िंदगी जीना भी आसान नहीं? तो कोई क्यों रहे ऐसे समाज में? क्यों नहीं बाहर निकलने दिया जाए उसे वहाँ से? या फिर ऐसा माहौल दो, की वो टिक सकें वहाँ।    

जिनकी अपनी लड़की ससुराल से अलग बैठी हो बच्चे के साथ, और नौकरी भी कर रही हो। क्या वो भी ऐसा बोल सकते हैं? 

"ये तो मर्द-माणसा के काम सैं, औरत कैसे करेगी?" मगर बोलने के बाद खुद ही झेंप गए। इनके यहाँ सारे काम औरतें ही करती हैं। इसमें बुरा क्या है? कहीं-कहीं ऐसे भी केस हैं, जहाँ किसी भी परिस्थितिवश ये so-called मर्द-मानस हैं ही नहीं। तो क्या वो जीना ही छोड़ दें? ये तो खुद्दारी है। परिस्थितिवश, ज़िंदगी को आगे बढ़ाना, रो-धोके वहीं बैठ जाने की बजाय। 

और भी ऐसे-ऐसे, कैसे-कैसे नमुने हैं, जो बोलने से पहले ये भी नहीं सोचते की ऐसा कुछ कहीं तुम्हारे अपने यहाँ या आसपास भी तो नहीं है? सब लिखना सही नहीं होता शायद।   

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