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Cult Politics हिंदी में उचित शब्द क्या होगा इसके लिए? लगान-राजनीती? कभी गोरों की, तो कभी कालों की? या यूँ कहें की कभी गैरों की, तो कभी अपनों की?
14.07.2023 (Around/After 4.00 PM) शिव मुर्ति स्थापना और मंदिर वही होलिका दहन (7.3.2023) वाला? पहली बार देखा गया अजीबोगरीब और डरावना-सा-होलिका-दहन। गुप्त कोड हैं क्या किसी पार्टी के, ऐसे-ऐसे धर्मों के प्रचार-प्रसार में? आप क्या कहते हैं?
आभासी दुनियाँ पे राजनीती के तड़के: भगवानों की हकीकत बस इतनी-सी है? आप सोचिए। इस विषय पर आने से पहले ये पढ़िए:
तिकोने लाल रंग के झंडे और पीला उसके बहार। हरयाणवी नाच-गाना। गाने के बोल-- तु राजा की राजदुलारी --
उसके पीछे-पीछे दूसरा ट्रेक्टर, झंडा नारंगी।
शिव मूर्ति स्थापना?
पहली बार कब सुना था ये गाना? 2009? FB वाल Y-D
शायद ये?
और आज का राज?
नीचे बोलती तस्वीर और गाना?
बड़ा ही उलझ-पुलझ
खेल काफी पुराना।
"धुम्मां ठा दिया कती"
नीचे जो शिव के अवतार की फोटो है--
"धुम्मां ठा दिया कती" इसी को कहते हैं क्या?
सोचो, कैसे-कैसे तो भगवान पाल रखे हैं हमने?
इनकी मुर्तियाँ दूध भी पी जाती हैं?
चाहे छोटे-छोटे गरीब बच्चों तक को देने को दूध ना हो, ऐसे भगतों के पास! अपनी या किसी अपने की लगा के देखो न एक-आध मूर्ति, क्या पता वो भी पीती हो दूध? और दूध ही क्यों? पानी, चाय, लस्सी, नीम्बू-पानी, कॉफ़ी, शरबत और भी पता नहीं कितनी ही तरह के जलपान। पिला के तो देखो।
मुर्ति-पूजा पे इतना सांग और इतना खर्च? ये सब किसी गरीब को दो तो शायद ज्यादा भला होगा। उसपे मंदिरों के चढ़ावों पे पुजारियों के जूत बजने भी कम हो जाएंगे। नहीं?
ऐसे-ऐसे भक्तों की भी कमी नहीं मिलेगी, जिन्हें इंसानों से कैसे व्यवहार करते हैं, चाहे ये तक न पता हो। मगर ऐसे-वैसे, कैसे-कैसे भक्त बने जरूर घुम रहे होंगे। या ज्यादातर ऐसे ही लोग भक्त होते हैं?
राजनीती के भगवानों के उप्पर अगर घर के भगवानों को रख दें, तो शायद कुछ दब जाएँ ये ताँडव-वाले?
राजनीतिक-भगवान?
भगवान और ताँडव?
भगवान और धुआँ-धुआँ?
भगवान और भाँग?
और भी पता नहीं क्या-क्या!
ये सामंती-व्यवस्था, गरीबों के किस काम की?
और सबसे ज्यादा भक्त भी गरीबों और कम पढ़े-लिखों में ही मिलेंगें।
थोड़ा भी पढ़ा-लिखा और इन ऐसे-ऐसे भगवानों का जानकार व्यक्ति, शायद यही कहेगा,
मोदी जेलर, यहाँ तो विकल्प है -- अंगुठा या हस्ताक्षर।
आप जबरदस्ती उठा के जेल में रोक के उंगलिमाल या अँगूठामाल बनना चाहते हो क्या?
थोड़ी बहुत तो शर्म करलो आदमखोरो। जेल भेझेंगे क्या सच लिखने या बोलने पर भी? कितनी बार?
आभासी या थोपे हुए लॉर्ड्स पे या बुत्तों वाली मूर्तियों पे, हमने तो अपने भगवान धर दिए, अपने वाले मंदिर में।
इनके भगवानों की ये जाने। समझ अपनी-अपनी और भगवान भी अपने-अपने।
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