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Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Friday, May 24, 2024

राजनीती, आम आदमी को परेशानियाँ देती है, या उनके हल? 1 (Social Tales of Social Engineering)

पीछे जो AC, Cooler वाली पोस्ट लिखी थी, उसे फिर से पढ़ें। खासकर ये, सुप्रीम कोर्ट पहुँचा पानी। 

वैसे उत्तरी भारत का गर्मी का कहर और दक्षिणी भारत में बारिश के आसार। उत्तर भारत वालों को भी, दक्षिण की सैर पे निकल जाना चाहिए, Pleasant Weather के दर्शन के लिए। नहीं? खाली-पीली सी खबरें जैसे? कुछ-कुछ ऐसे?


पता नहीं किस जोकर ज़ोन से कॉपी किया था, ये?
पूरा क्रेडिट, ऐसे-ऐसे जोकर जोन को हँसाते रहने के लिए।
  
वैसे सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ पानी पहुँचता है? हाय-हाय गर्मी नहीं?     

वैसे, ऐसे-ऐसे निर्जीव एप्लायंसेज (AC, Cooler) का, आदमियों या जीवों में किसी तरह की खराबी आने से कोई लेना-देना हो सकता है, क्या? (आप सोचो, और बताओ। आते हैं, ऐसे-ऐसे कई तरह के निर्जीवों की खराबियों पर। और उनके आसपास के जीवों पर प्रभावों या दुस्प्रभावों पर भी।) 

क्या सच में पानी सुप्रीम कोर्ट पहुँचा था? क्या सच में दिल्ली में बाढ़ आई थी? दिल्ली के कौन से हिस्से में? वहाँ इससे पहले बाढ़ कब आई थी? सुना, अरविन्द केजरीवाल का ऑफिसियल घर, सिविल लाइन्स पे और लाल किला भी इस बाढ़ की चपेट में आ गया था? 


अपने आप आ गया था? या? हरियाणा या पंजाब के कुछ शरारती तत्वों की करामात की वजह से? कितने सारे लोगों ने भुगता उस परेशानी को? 


परेशानियाँ, जो असलियत में हैं ही नहीं। बल्की, राजनीती की पैदा की हुई? ठीक ऐसे, जैसे राजनीतिक बीमारियाँ?    

मतलब राजनीती, हमारी समस्याओँ के समाधान के लिए नहीं है? बल्की, ना हुई समस्याएँ लाने के लिए? 

Thursday, May 23, 2024

Twitter turned black?

 Or is it only some kalakaary on my laptop or the twitter pages I watch?

गुनाह कई स्तर, पर एक साथ। मतलब साफ़, एक या दो आदमी, तो कर नहीं रहे। टीम की टीम लगी हुई हैं, समाज को जुर्म की तरफ धकेलने में। यही नहीं, अपने आपको समाज-सुधारक या अपने-अपने क्षेत्र के महान बताने वाले भी, वो सब भी देख और सुन रहे हैं। चाहे फिर, वो डिफेंस हो या सिविल, जुडिशरी हो या पुलिस। मीडिया तो है ही। कैसे?     


Wednesday, May 22, 2024

LG, AC, Softliner (Cooler)

16 . 05 . 2024 

सुनील और सतीश मिलकर, बड़ी मेहनत के बाद LG, AC को VTRail (stebilizer) के साथ उतार कर ले गए हैं। ये stebilizer भी जाने क्यों, कहीं बदला गया है शायद? कृपया करके AC को AC ही समझें, ना की VC । और AC यहाँ, LG का है। कोई दिल्ली के LG की बात नहीं हो रही। हमारा सतीश (खाती) थोड़ा लापरवाह है, इसलिए AC उतारकर, खिड़की ठीक नहीं करके गया। कल करने की बोलकर, ऐसे ही छोड़ गया। अब इसके अंदर से बिल्ली घुसने की कोशिश करे या बन्दर, क्या फर्क पड़ता है? बताओ, बिल्ली कौन-सा CJI की रहती है यहाँ? और बन्दर कौन-सा Eurovision Song Contest विजेता? खिड़की खुली पड़ी है, तो पड़ी रहे। खंडहर की खिड़की ही तो है। ज्यादा से ज्यादा, धूप, लू और अंधड़ का कूड़ा ही तो घुस सकता है। उसके लिए अड़ा दो कुछ भी।        

इस घटनाकर्म के तत्पश्चात, शिव अपने Softliner (cooler) की सेवा में पधार गए हैं। और Softliner black pump को उतार कर, Redish Boss को स्थापिथ कर गए हैं। 

Softliner रात को नामतर मात्र चला है। शिव ने कल फिर अवतारित होने को बोला था। मगर आज शिव के अवतारित होने की उम्मीद धूमिल हुई। शिव, भोलू की शादी की शॉपिंग में वयस्त होने की वजह से नहीं आ सका। कई तरह के एप्लायंसेज, और कई भोलूओं की शादी। पता नहीं भोलूओं की शादी से ही, क्या कनेक्शन है, इन सबका? और शिव का 16 से? ना उससे पहले और ना उसके बाद।  

19. 05. 2024   

शिव ने अपने रिप्लेसमेंट को भेझ दिया है। सतीश (बिजली वाला), अपने चिंटू के साथ पधारा है। खाती का अवतार, बिजली वाले में बदल गया है। मगर नाम के अलावा कुछ नहीं मिलता-जुलता। Softliner (Cooler) के चलने की उम्मीद अभी भी कायम है। और सतीश (बिजली वाला), अपने चिंटू के साथ, Softliner के fan की मोटर को उखाड़ कर ले गया। मोटर भी कूलर के रंग जैसी-सी ही, मैचिंग-मैचिंग जैसे, स्लेटी-सी। 

21. 05. 2024 

Softliner की  मैचिंग-मैचिंग स्लेटी-सी मोटर की जगह, काली मोटर लगा दी गई है। अब Softliner के चलने की पूरी-पूरी उम्मीद है। और Softliner कूलर आखिर चल पड़ा है। कहाँ जाने के लिए? ये तो पता नहीं। कहीं US का इरादा तो नहीं, वो भी नींद में? पता चले, ऊपर से गिर गया नीचे, धड़ाम।   

मीटर का मैन स्विच जो पहले लाइट के आने-जाने की खबर देता था, पीछे लाइट ठीक करने वाले ने बदल कर Neo का गन्दा-सा स्विच लगा दिया था। वैसे Neo सुना-सुना सा शब्द है, कहाँ सुना था? अब फिर से Anchor का लाइट वाला, मैन स्विच लग गया है। मगर लाइट के जाते ही या आते ही, इन्वर्टर को फिर से चलाना पड़ता है, इन्वर्टर वाली लाइट तभी चलती है। छोटे-मोटे लोग और छोटी-मोटी-सी समस्याएँ।  

LG, AC ले जाने वाला अभी तक परेशान है। ये महान AC एक बार खराब हुआ था। ठीक करने के लिए दिया, तो कभी-कभार ही ठंड करता है। हाँ, ज्यादातर वक़्त कमरे को गर्म बड़े अच्छे से कर देता है। बस, तब से ऐसे ही पड़ा था। बाकी बिजली के एप्लायंसेज के भी यही हाल रहे हैं। तो 6-7 एक्सटेंशन इक्क्ठी हो रखी हैं। ताकि एप्लायंसेज के जलने या खराब होने की बजाय, एक्सटेंशन के ही फ्यूज उड़ लें या जल लें। मगर वक़्त के साथ, वो भी सब खराब। जिनमें से दो ही, ठीक होकर आई हैं। बाकी, अभी भी खराब ही पड़ी हैं। ऐसे ही जैसे, वैक्यूम क्लीनर। 

वैसे उत्तरी भारत का गर्मी का कहर और दक्षिणी भारत में बारिश के आसार। उत्तर भारत वालों को भी, दक्षिण की सैर पे निकल जाना चाहिए, Pleasant Weather के दर्शन के लिए। नहीं? खाली-पीली सी खबरें जैसे? कुछ-कुछ ऐसे?


पता नहीं किस जोकर ज़ोन से कॉपी किया था, ये?
पूरा क्रेडिट, ऐसे-ऐसे जोकर जोन को हँसाते रहने के लिए।
  
वैसे सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ पानी पहुँचता है? हाय-हाय गर्मी नहीं?    
 

वैसे, ऐसे-ऐसे निर्जीव एप्लायंसेज (AC, Cooler) का, आदमियों या जीवों में किसी तरह की खराबी आने से कोई लेना-देना हो सकता है, क्या? आप सोचो। आते हैं, ऐसे-ऐसे कई तरह के निर्जीवों की खराबियों पर। और उनके आसपास के जीवों पर प्रभावों या दुस्प्रभावों पर भी।  

Sunday, May 19, 2024

मैं क्या और कहाँ-कहाँ से पढ़ती हूँ? 2

मैं क्या और कहाँ-कहाँ से पढ़ती हूँ? या मुझे खबरें कहाँ से मिलती हैं? 

वो भी इतना अलग-थलग (isolated) होने के बावजूद)?  

अलग-थलग? पता नहीं। वक़्त और परिस्तिथियों के साथ, आपके संपर्क और सोशल-सर्कल, शायद थोड़ा-बहुत बदलता रहता है। बहुत ज्यादा नहीं, शायद।   

बहुत-सी खबरें, बहुत ही indirect होती हैं। जैसे कहीं दूर कुछ चल रहा हो और कुछ वक़्त बाद ऐसा लगने लगे, ऐसा ही कुछ-कुछ यहाँ तो नहीं शुरू हो गया? या शायद जो कहीं बहुत कम है, उसका बढ़ा-चढ़ा रुप? या बिगड़ा-स्वरुप? ये लगना या अहसास होना, की शायद ऐसा कुछ चल रहा है? या कुछ तो कहीं गड़बड़ घोटाला है? एक के बाद एक, जैसे कोई सीरीज बनती जाए, तो हूबहू-सी घड़ाईयाँ समझ आने लगती हैं। उस पर अगर आपको Protein Structure Prediction या PCR या Genetic Engineering कैसे होती है, के abc पता हों, तो शायद उतना मुश्किल नहीं होता समझना, जितना किसी भी अज्ञान या अंजान इंसान के लिए हो सकता है। 

जैसे नीचे दी गई ज्यादातर सूचनाएँ, यहाँ-वहाँ से ली गई हैं। कोई ऑफिस, कोई घर, कोई इधर उधर का सोशल सर्कल, कोई दूर कहीं किसी यूनिवर्सिटी का पेज या source कुछ और भी हो सकता है। जैसे किसी का कोई फ़ोन कॉल किसी के पास, या किसी कंपनी या प्रोडक्ट के नाम पे आपके पास। हो सकता है की उस वक़्त आपको ना फ़ोन करने वाले के बारे में और ना ही दी गई या सुनी या देखी गई सुचना के बारे में कुछ पता हो। मगर कुछ वक़्त बाद कुछ और देखकर या  सुनकर लगे, की कहीं न कहीं, ये तो यहाँ या वहाँ मिलती-जुलती सी खबर है? ये यहाँ और वो वहाँ? या शायद ये और ये एक दूसरे से? तो मान के चलो, की वो मिलती हैं। कहीं न कहीं, कोई सन्दर्भ है। अब उस सन्दर्भ को जानने के लिए, आपको उन अलग-अलग सूचनाओं की जितनी जानकारी है, उतना ही उनसे मिलती-जुलती, हूबहू-सी लगने वाली खबर की जानकारी होगी। वो हूबहू सी घड़ाईयाँ, आसपास भी हो सकती हैं और दुनियाँ के किसी और कौने में भी।  



















कैसे? जानने की कोशिश करते हैं, अगली पोस्ट में। 

स्टीकर ले लो स्टीकर 2 (Social Tales of Social Engineering)

स्टीकर जो बड़े साहब, बड़े लोग (?), राजनीतिक पार्टियाँ या कम्पनियाँ आप पर, हम सब पर, हर वक़्त चिपकाने की कोशिश में रहते हैं। जितने ज्यादा वो उसमें सफल होते जाते हैं, उतना ज्यादा उनका फायदा और हमारा, आपका, आम आदमी का नुक्सान होता जाता है।   

अभी पिछले कुछ सालों में हुई घटनाओँ या दुर्घटनाओँ से समझने की कोशिश करते हैं। 

जमीन का एक छोटा-सा टुकड़ा, आधा एकड़, जिसपे स्कूल वालों की निगाह तभी से थी, जबसे वो ज़मीन सब भाइयों (दादा, अलग अलग पड़दादाओं के बच्चे) में बटी थी। बहुत बार माँगने के बावजूद, वो उन्हें नहीं मिली। इसी ज़िद में उन्होंने अपना एक खाली पड़ा खंडहर का टुकड़ा तक नहीं दिया। आज तक वो ना सिर्फ खाली पड़ा है, बल्की आसपड़ोस के सिर दर्द भी है। अब उसके हाल ये हैं की उसे कोई लेने को तैयार भी नहीं। मगर, स्कूल के साथ लगती ज़मीन को जिस किसी बहाने, इन महान स्कूल वालों ने कब्जाया हुआ है, धोखाधड़ी से। मगर पेपरों में so called Legally । 

क्या ये इन्हीं स्कूल वालों ने कब्जाया हुआ है? या ये भी एक सामान्तर घड़ाई है? चलो जानने की कोशिश करते हैं। 

मान लो, दो नंबर हैं। एक है 5 और दूसरा 4, ये नंबर कुछ और भी हो सकते हैं। 

पाँच को pair बनाना है। मोदी वाला डबल? उसके लिए चार को पाँच के बीच रखना है? ये कोई और नंबर भी हो सकते हैं और जो कहा उसका उल्टा भी। यहाँ हमने चार और पाँच माना है। तो ये हो गया 5 4 5 

मान लो 5 को दस साल के लिए, चार ने block कर दिया। दस किसने देखा? अभी तो ब्लॉक करो। आधा किला मतलब चार कनाल। 4 को दो टुकड़ों में काटों। इसका आधा हिस्सा बड़े वालों को दो। स्कूल वालों को। एक भाई के बच गई, उस जगह 2 कनाल। दूसरे की वहाँ की 2 कनाल हड़प ली। वो वहाँ के स्कूल वालों के नाम। दो कनाल से भर जाएगा उनका? अरे Protection के लिए ली है। मगर कैसा Protection? और किसका Protection? यहाँ ये 2 नंबरी का क्या हिसाब-किताब है? ये भी कुछ खास है क्या? इसे 654 या 652 या ऐसा कुछ कर दें तो? बड़ी उलझ-पुलझ खिचड़ी है। नहीं? राजनीती के दाँव-पेंचों में ऐसा ही होता है। मुझे तो यूनिवर्सिटी का 2 नंबरी गार्ड लग रहा है? कुछ काँड हैं, उन्हें दबाने के लिए खास गॉर्ड चाहिएँ? और उन कांडों की सजा को कम करने के लिए वक़्त?

वक़्त, अक्सर बड़े लोगों के लिए एक बहुत ही अच्छा तरीका होता है, अक्सर केसों को उल्ट पलट करने के लिए? वक़्त के साथ ज्यादातर सजा शिकायत करने वाला ही भुगतता है? और महान लोग अक्सर बच निकलते हैं? ऐसा ही?          

अच्छा? तो आम-आदमी इस सबमें क्यों फंसे?   

फंसे नहीं। उन्हें फँसा लिया जाता है। छोटे-मोटे लालच। छोटे-मोटे डर। इस छोटे से ज़मीन के टुकड़े का, कितनी मौतों या बीमारियों से लेना-देना हो सकता है? या शायद इसके आसपास की ज़मीनों का भी? ज़मीनो के ये नंबर किस तरह के स्टीकर हैं? सिर्फ नंबर या उससे आगे भी कुछ, कोढ़ जैसे? जैसे लोगों के या उन ज़मीनो के खास हिसाब-किताब वाले कोड? राजनीतिक पार्टियों के ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे नंबर होते होंगे? उनके नाम पे आम आदमियों के कितने ही झगड़े? कितने ही रिश्तों के हेरफेर? कितनी ही बीमारियाँ या मौतें? छोटे-मोटे लोग, छोटे-मोटे जमीनों के झगड़े? बड़े लोग, बड़े-बड़े ज़मीनो के वाद-विवाद? जैसे राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के या बड़ी-बड़ी कंपनियों के? राज्यों के आपसी झगड़े या देशों के? वहाँ पे भी ऐसे-से ही कोड होते होंगे?

जैसे? 

कहीं इस गाँव के स्कूल के आसपास की ज़मीनो की कहानियाँ। तो कहीं किसी यूनिवर्सिटी के किसी डिपार्टमेंट के वाद-विवाद? 

कान्ता कहाँ यूनिवर्सिटी में? जिसे किसी घर की चाबी सौंपने को बोला जाए। तो कहीं कान्ता, यहाँ इस ज़मीन के केस में भी कोई? किसी की माँ? किसी स्कूल का कोई अहम किरदार?  

ऐसे ही जैसे कहाँ मुम्बई में बैंक में काम करने वाला कोई अजय? और कहीं किसी पार्टी का नेता? या फिर कोई इस जमीन के केस में बिचौलिया? ये सब कहीं मिलता है? या ऐसे ही तुक्के हैं, खाँमखाँ के?

ऐसे ही जैसे कहीं इस ज़मीन का पैसों का हिसाब-किताब? तो कहीं, किसी घर के किराए का?

ठीक ऐसे ही जैसे, कहीं कोई तालाब और आसपास के लोगों के घरों के ज़मीन सम्बंधित वाद-विवाद? और कहीं और? मोदी के प्लाट से अभय के घर तक के ज़मीनो के हिसाब-किताब? इनसे आगे इधर-उधर भी जा सकते हैं। और आगे और पीछे भी। जिसे कहा जाता है, आपके आसपास का सिस्टम। 

आप खुद एक सिस्टम हैं। जिस वक़्त आप जहाँ कहीं हैं, उसके आसपास का सिस्टम, उस वक़्त आपकी ज़िंदगी को बनाता या बिगाड़ता है। इसलिए अगर पीढ़ी दर पीढ़ी आप किसी एक जगह हैं तो जहाँ एक तरफ वहाँ का सिस्टम आपको फायदा करता है। तो दूसरी तरफ कुछ गड़बड़ होने पर मार भी आप पर ज्यादा पड़ती है। ना की उन पर जो वहाँ से निकल चुके या नाममात्र हैं।   

ठीक ऐसे ही जैसे, कहीं मदीना रेडियो स्टेशन के आसपास के ज़मीनो के हिसाब-किताब तो कहीं ?

ऐसे ही जैसे कहीं बरहे के एक तरफ वाल्मीकियों के घर, साथ वाले गाँव से आए हुए वाल्मीकि और उनके आसपास के ज़मीनो के हिसाब-किताब और कहीं?

ऐसे ही कहीं की भी ज़मीन का केस है। या कोई वहाँ क्यों है? या क्यों और कहाँ छोड़ के चले गए, सिस्टम बताता है? राजनीती बताती है। और आप सोचते हैं, ये सब आप खुद कर रहे हैं?

और ये सिर्फ ज़मीन पर ही लागू नहीं होता। बल्कि, वहाँ के हर जीव-निर्जीव पर। उनकी ज़िंदगी से सम्बंधित हर पहलु पर। आम आदमी की ज़िंदगी में जितने ज्यादा स्टीकर राजनीतिक पार्टियों की जबरदस्ती के हैं। उतने ही वो आपके फायदे के नहीं हैं। शायद इसीलिए, इन स्टीकरों को और आप पर इनके प्रभावों या दुष्प्रभावों को जानना बहुत जरुरी है। 

वो स्टीकर बेचने वाले भैया तो अभी तक नहीं आए। तब तक थोड़ा और स्टीकरों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं।    

Saturday, May 18, 2024

स्टीकर ले लो स्टीकर 1 (Social Tales of Social Engineering)

स्टीकर ले लो स्टीकर

अरे भैया कैसे दिए?

2 का। 5 का। 15 का। 20 का। 50 का। 100 का। 200 का। 500 का। इससे महंगे भी हैं। आपको कौन-सा चाहिए? किसपे लगाने वाले  चाहिएँ? फ्रीज पे? वॉशिंग पे? स्टडी टेबल पे? रसोई घर की दिवार पे? ड्राइंग रुम की दिवार पे? बाथरुम की दिवार पे? फर्श पे? कॉपी-किताब पे? कपड़ों पे? गाडी पे। और भी बहुत तरह के हैं। जैसे नेताओं के। अभिनेताओं के। वैज्ञानिकों के। किसान, जवान के। बहुत हैं। पेड़-पौधों के। पशु-पक्षियों के। जानवरों के। कीड़े-मकोड़ों के।  

अरे नहीं। जैसे झगड़ों के, बिमारियों के, टूटफूट के। मौतों के। और उनके सिस्टम से संबंधों के। हैं क्या? 

अभी तो नहीं हैं। बड़े गोदाम वाले साहब से पूछना पड़ेगा, शायद उनके पास हों। 

ठीक है। पूछ के बताना।               



Thursday, May 16, 2024

Eurovision Song Contest and Invisible Talent Behind

                                     एक जो दिखता है, मगर जैसा दिखता है, बिलकुल वैसा होता नहीं है  

और एक जो होता है, मगर दिखता नहीं है, अदृश्य है 

और मिलकर वो सब बनाता है, जो हमें दिखता है, या जो समझ आता है। 


कुर्सियों पे बैठे लोगों का यही है। उन्हें सही में जो लोग और जो फैक्टर्स मिलजुलकर बनाते हैं, वो आम आदमी को नहीं दिखते। बहुत से हादसों और बिमारियों का भी यही है। सोचो, उस सबको ठीक ऐसे प्रेजेंट किया जाए, जैसे इस शो के पीछे काम करने वाले, इतने सारे लोगों को और टेक्नोलॉजी को?  

Tuesday, May 14, 2024

ये क्या बला है? What type of AI (Artificial Intelligence) or targeted?

 UPPSALA  

कई बार ऐसा होता है, की आप देख, सुन कुछ रहे होते हैं और सर्च कुछ और ही करने लग जाते हैं। ऐसे ही एक दिन कोई आर्टिकल पढ़ रही थी Uppsala से संभंधित। और जाने दिमाग में कहाँ से किसी गाने के बोल ध्यान आ गए। गाना तो पता नहीं चला, मगर कुछ अजीबोग़रीब-सा सर्च रिजल्ट मिला। 

मैंने गूगल सर्च इंजन में लिखा up sala in hindi 

सोचो सर्च इंजन ने क्या रिजल्ट दिए होंगे?

कुत्ती, कमीनी, बला बला बला 

इसे पढ़कर गुस्सा आया, ये क्या बकवास है?

और फिर से अपना लिखा हुआ पढ़ा और थोड़ा बदल कर लिखा up sala lyrics in hindi 

जिस गाने के बोल उस वक़्त दिमाग में आए थे, वो तो नहीं मिले। कुछ और ही आलतू-फालतू आ रहा था। मगर, ये था क्या? जैसे आपने किसी को गाली दी हो और वो बदले में आपको थोक के भाव सुनाने लगे? मतलब पढ़ाने लगे कितनी ही ऊटपटाँग गालियाँ? ये कौन-सा और कैसा AI response था?  

और ये कैसी खबरें हैं? 

कुछ वक़्त से US सर्च चल रहा है। काफी कुछ रोचक-सा होता है। जिसे पढ़कर या देखकर लगे, ये तो कुछ सामान्तर घड़ाई-सा है। मगर स्तर कुछ और ही है। एक दिन ऐसे ही कोई सर्च हो रहा था और 


आप कोई न्यूज़ देख रहे हैं और 

अरे ये क्या है?
Scroll up-down again 
और? 


जब देखते-देखते शब्द, रंग, हुलिआ या नज़ारा ही बदला नज़र आया। 
कुछ का कुछ पढ़ने या देखने को मिले, जो सच ना हो। 
शायद कहीं कोई समानता दिखाने के लिए या विभिन्नता?  
या क्या बला है ये? और अहम, कैसे होता है?

ऐसे कई बार होता है, जब कुछ सर्च इंजन में लिखा और सर्च अपने आप scroll down होकर  किसी खास आर्टिकल पर रुक जाए। आप फिर से scroll up करें और फिर से अपने आप scroll down होकर, उसी आर्टिकल पर जाकर रुक जाए। कई बार तो उसके सिवा कुछ पढ़ने ही ना दिया जाए और वो विंडो पेज अपने आप गुल हो जाए। जैसे जबरदस्ती हो, की जो हम पढ़ा या दिखा रहे हैं, बस वही पढ़ना या देखना है। 

कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे आप कोई ट्रायल करके देख रहे हों या समझने की कोशिश कर रहे हों और अपने आप कुछ क्लिक हो जाए, जो आपने किया ही ना हो। और उसके पैसे भी आपके अकॉउंट से कट जाएँ। और जल्दी में आपको वो पेज ही बंद करना पड़े। 

बच्चों और अंजान लोगों के साथ ऐसा कुछ ज्यादा ही है शायद, जो किसी भी विषय के बारे में उनका दृश्टिकोण बनाता है। वो भी ऐसे-ऐसे विषयों पर, जो उस वक़्त उनकी ज़िंदगी में अहम हों। इस पर आगे किसी पोस्ट में।   

Saturday, May 11, 2024

स्टीकर ले लो स्टीकर (Social Tales of Social Engineering)

स्टीकर ले लो स्टीकर

अरे भैया कैसे दिए?

2 का। 5 का। 15 का। 20 का। 50 का। 100 का। 200 का। 500 का। इससे महंगे भी हैं। आपको कौन-सा चाहिए? किसपे लगाने वाले  चाहिएँ? फ्रीज पे? वॉशिंग पे? स्टडी टेबल पे? रसोई घर की दिवार पे? ड्राइंग रुम की दिवार पे? बाथरुम की दिवार पे? फर्श पे? कॉपी-किताब पे? कपड़ों पे? गाडी पे। और भी बहुत तरह के हैं। जैसे नेताओं के। अभिनेताओं के। वैज्ञानिकों के। किसान, जवान के। बहुत हैं। पेड़-पौधों के। पशु-पक्षियों के। जानवरों के। कीड़े-मकोड़ों के।  

अरे नहीं। जैसे झगड़ों के, बिमारियों के, टूटफूट के। मौतों के। और उनके सिस्टम से संबंधों के। हैं क्या? 

अभी तो नहीं हैं। बड़े गोदाम वाले साहब से पूछना पड़ेगा, शायद उनके पास हों। 

ठीक है। पूछ के बताना।               


टाली जा सकने वाली बीमारियाँ, हादसे या दुर्घटनाएँ (Social Tales of Social Engineering)

सामान्तर केस वो घड़ाईयाँ हैं जो बहुत से बड़े-बड़े लोगों की जानकारी के बावजूद हो रही हैं। जिनमें युवाओं का ही नहीं, बल्की बुजर्गों और बच्चों तक का शोषण है। बहुत से केसों में तो शोषण से आगे, मौतें तक हैं। ऐसी बीमारियाँ या हादसे जिन्हें वक़्त रहते रोका जा सकता है। लेकिन हरामी लोग और राजनीतिक पार्टियाँ ऐसा नहीं चाहती। ये वो लोग हैं, जिन्हें किसी भी किम्मत पर सिर्फ और सिर्फ कुर्सियाँ या छोटे-मोटे लालच दिखते हैं। 

वैसे तो हर केस अलग है और उसका समाधान भी एक नहीं हो सकता। 

अलग-अलग समस्या, अलग-अलग समाधान।

https://socialtalesofsocialengineering.blogspot.com/2023/08/blog-post_10.html

मगर बहुत-सी सामान्तर घड़ाईयोँ में काफी कुछ ऐसा है, जो शुरू में बहुत ही छोटा-मोटा सा लगता है। मगर जिसे बढ़ा-चढ़ा बहुत ज्यादा दिया जाता है। उस छोटे-मोटे को बड़ा करने या बढ़ाने में, इन केसों के ज्ञाताओं को बहुत वक़्त नहीं लगता। वक़्त और जरुरत के हिसाब से, जिधर चाहें उधर मोड़ देते हैं। रिश्तों का यही है। बिमारियों का यही है और मौतों का भी ऐसे ही है।     

ये हूबहू घड़ाईयाँ इधर के या उधर के स्टीकर हैं। बेवजह के स्टीकर। बेवजह की बिमारियों के। बेवजह के हादसों या दुर्घटनाओँ के। ऐसी बीमारियाँ, जिन्हें आप नहीं चाहते। अब बिमारियाँ भला कौन चाहता है? और वो कब आपको बता कर आती हैं? मगर, आपको पता चले की कोई तो, उन्हें कहीं घड़ रहे हैं? तो? ठीक वैसे ही, जैसे, ये सामान्तर केस घड़ने वाली पार्टियाँ, इधर या उधर। जहाँ आपको पता नहीं चल रहा, की यहाँ कोई सामान्तर घड़ाई चल रही है, वहाँ जानने की जरुरत है, खासकर, जहाँ असर बुरे हों। मगर, जहाँ आपको कुछ भी कहकर या बताकर शामिल किया जाता है, वहाँ? बुरे असर जानने के बावजूद, कितनी बार शामिल होंगे आप ऐसी वैसी नौटंकियोँ में?

एक जोक है, किसी पढ़े-लिखे पुलिसिए का। मैं तो नदी पार करवाऊँ था।

और सामने वाला ना हुई बीमारियाँ भी सालों-साल लिए बैठा है? 

कौन है ये सामने वाला? 

आम आदमी? 

आप? हम? हम-सब? 

Friday, May 10, 2024

टाली जा सकने वाली बीमारियाँ, हादसे या दुर्घटनाएँ (Social Tales of Social Engineering)

सामान्तर केस वो घड़ाईयाँ हैं जो बहुत से बड़े-बड़े लोगों की जानकारी के बावजूद हो रही हैं। जिनमें युवाओं का ही नहीं, बल्की बुजर्गों और बच्चों तक का शोषण है। बहुत से केसों में तो शोषण से आगे, मौतें तक हैं। ऐसी बीमारियाँ या हादसे, जिन्हें वक़्त रहते रोका जा सकता है। लेकिन हरामी लोग और राजनीतिक पार्टियाँ ऐसा नहीं चाहती। ये वो लोग हैं, जिन्हें किसी भी किम्मत पर सिर्फ और सिर्फ कुर्सियाँ या छोटे-मोटे लालच दिखते हैं। 

वैसे तो हर केस अलग है और उसका समाधान भी एक नहीं हो सकता। 

अलग-अलग समस्या, अलग-अलग समाधान।

मगर बहुत-सी सामान्तर घड़ाईयोँ में काफी कुछ ऐसा है, जो शुरू में बहुत ही छोटा-मोटा सा लगता है। मगर जिसे बढ़ा-चढ़ा बहुत ज्यादा दिया जाता है। उस छोटे-मोटे को बड़ा करने या बढ़ाने में, इन केसों के ज्ञाताओं को बहुत वक़्त नहीं लगता। वक़्त और जरुरत के हिसाब से, जिधर चाहें उधर मोड़ देते हैं। रिश्तों का यही है। बिमारियों का यही है और मौतों का भी ऐसे ही है।     

ये हूबहू घड़ाईयाँ इधर के या उधर के स्टीकर हैं। बेवजह के स्टीकर। बेवजह की बिमारियों के। बेवजह के हादसों या दुर्घटनाओँ के। ऐसी बीमारियाँ, जिन्हें आप नहीं चाहते। अब बिमारियाँ भला कौन चाहता है? और वो कब आपको बता कर आती हैं? मगर, आपको पता चले की कोई तो, उन्हें कहीं घड़ रहे हैं? तो? ठीक वैसे ही, जैसे, ये सामान्तर केस घड़ने वाली पार्टियाँ, इधर या उधर। जहाँ आपको पता नहीं चल रहा, की यहाँ कोई सामान्तर घड़ाई चल रही है, वहाँ जानने की जरुरत है, खासकर, जहाँ असर बुरे हों। मगर, जहाँ आपको कुछ भी कहकर या बताकर शामिल किया जाता है, वहाँ? बुरे असर जानने के बावजूद, कितनी बार शामिल होंगे आप ऐसी वैसी नौटंकियोँ में?

एक जोक है, किसी पढ़े-लिखे पुलिसिए का। मैं तो नदी पार करवाऊँ था।

और सामने वाला ना हुई बीमारियाँ भी सालों-साल लिए बैठा है? 

कौन है ये सामने वाला? 

आम आदमी? 

आप? हम? हम-सब? 

Micro Media Lab (Social Tales of Social Engineering)

जब आप आसपास या खुद पर घटित होती हुई, किसी आम-सी घटना या घातक दुर्घटना को सूक्ष्म तौर पर देख या समझ पाने की काबिलियत रखते हैं, तो क्या होता है? बहुत-सी ऐसी घटनाओं या दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है या उनका बुरा असर कम किया जा सकता है। 

जैसे जो पालतू जानवर पालते हैं, उन्हें पता होता है, की उन्हें कब खिलाना-पिलाना है। कब उनकी साफ़-सफाई करनी है। कब नहलाना है। कब वो वयस्क होंगे। उसके क्या लक्षण होंगे। जल्दी वयस्क करना है, तो क्या खिलाना-पिलाना है? या कैसे माहौल में रखना है? उनके बच्चे पैदा करवाने हैं, तो क्या करना है? और भी कितनी ही तरह की जानकारी पशु पालने वालों को होगी। आप कहेंगे शायद की कोई खास बात नहीं?    

ऐसे ही जो किसान हैं या जिन्हें बागवानी का शौक है, उन्हें मालूम होगा पेड़ पौधों के बारे में। कितनी मेहनत करते हैं ना पशु पालक या किसान? और कितना वक़्त लगाते हैं, अपने पालतू जानवरों पे या पेड़-पौधों पे? जितनी मेहनत करते हैं या जितना ज्यादा वक़्त लगाते हैं, उतना ही ज्यादा कमा पाते हैं? ऐसा ही? 

या शायद कभी-कभी ऐसा नहीं होता? क्यों? 

कभी मौसम की वजह से? तो कभी बीमारियों की वजह से? या शायद कभी लापरवाही की वजह से? या शायद कभी इधर-उधर की रंजिश की वजह से भी? कभी गलत पहचान की वजह से? तो कभी गलत पहचान को खुद से किसी स्टीकर की तरह चिपकाए रहने की वजह से भी? कैसे? और      

इंसानो के केसों में भी ऐसा ही है। 

जानने की कोशिश करते हैं ऐसे ही कुछ एक आसपास के केसों से। जैसे कोई Mistaken Identity Or Identity Crisis?    

Micro Media Lab (Social Tales of Social Engineering)

जब आप आसपास या खुद पर घटित होती हुई, किसी आम-सी घटना या घातक दुर्घटना को सूक्ष्म तौर पर देख या समझ पाने की काबिलियत रखते हैं, तो क्या होता है? बहुत-सी ऐसी घटनाओं या दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है या उनका बुरा असर कम किया जा सकता है। 

जैसे जो पालतू जानवर पालते हैं, उन्हें पता होता है, की उन्हें कब खिलाना-पिलाना है। कब उनकी साफ़-सफाई करनी है। कब नहलाना है। कब वो वयस्क होंगे। उसके क्या लक्षण होंगे। जल्दी वयस्क करना है, तो क्या खिलाना-पिलाना है? या कैसे माहौल में रखना है? उनके बच्चे पैदा करवाने हैं, तो क्या करना है? और भी कितनी ही तरह की जानकारी पशु पालने वालों को होगी। आप कहेंगे शायद की कोई खास बात नहीं?    

ऐसे ही जो किसान हैं या जिन्हें बागवानी का शौक है, उन्हें मालूम होगा पेड़ पौधों के बारे में। कितनी मेहनत करते हैं ना पशु पालक या किसान? और कितना वक़्त लगाते हैं, अपने पालतू जानवरों पे या पेड़-पौधों पे? जितनी मेहनत करते हैं या जितना ज्यादा वक़्त लगाते हैं, उतना ही ज्यादा कमा पाते हैं? ऐसा ही? 

या शायद कभी-कभी ऐसा नहीं होता? क्यों? 

कभी मौसम की वजह से? तो कभी बीमारियों की वजह से? या शायद कभी लापरवाही की वजह से? या शायद कभी इधर-उधर की रंजिश की वजह से भी? कभी गलत पहचान की वजह से? तो कभी गलत पहचान को खुद से किसी स्टीकर की तरह चिपकाए रहने की वजह से भी? कैसे? और      

इंसानो के केसों में भी ऐसा ही है। 

जानने की कोशिश करते हैं, ऐसे ही कुछ-एक आसपास के केसों से। जैसे कोई Mistaken Identity Or Identity Crisis?    

Thursday, May 9, 2024

Blonde और Acidified पोस्ट का "एसिड अटैक version"?

हूबहू किसे कहते हैं?

Simulations?

Best Template 

Ingredients, conditions  

Process, Reaction 

Almost Ditto, Copy 

ये Bioinformatics में Protein 3D prediction हो सकता है। Molecular में PCR भी हो सकता है। और 3D प्रिंटिंग भी। या 3D Google Earth View भी। आपके घर का 3D डिज़ाइन भी। 

और?

Blonde और Acidified पोस्ट का "एसिड अटैक version"?  

ये फोटो गूगल बाबा ने दी हैं 



Acidified? 
Who? 
Sam Uncle?
Sam Pitroda?
AC? ID?
Delhi LG?

या फिर DD O DD ब्रिगेड? 

पोस्ट inspiration or what they call, prompt? Some social pages.     

हूबहू नकल कैसे होती है? Mind Wash या Mind Control ट्रैनिंग?

या हूबहू नकल कैसे होती है? क्या उसके लिए कोई Mind Wash या Mind Control ट्रैनिंग होती है? 

या कोई इंसान हो 20 या 22 का, मगर दिखाना हो 30 या 40?

40 या 50 का, मगर दिखाना हो 60 या 70?

बच्चा, मगर दिखाना हो बड़ा या बुजुर्ग?

हडियल, मगर दिखाना हो मोटा?

मोटा, मगर दिखाना हो हट्टा-कट्टा या हडियल?

छोटा, मगर दिखाना हो लम्बा?

हो लम्बा, मगर दिखाना हो छोटा?


ऐसे ही हो ठीक-ठाक, मगर दिखाना हो बीमार?


पहले तो कल्पना के पँख लगाओ और जैसा बनाना है वैसा सोचो। अब उसे वैसा बनाने के लिए क्या-क्या करना है या चाहिए वो सोचो। और हो जाओ शुरू। चलो बनाते हैं हुबहु कॉपियाँ।          

बहुत-सी, बहुत तरह की घड़ाईयाँ मिलेंगी। ज्यादातर घड़ाईयोँ में बहुत ही आम बोलचाल के जैसे कोड होते हैं। वो आम आदमी के पास कैसे आते हैं? वही कोड बताते हैं की वो सामान्तर घड़ाई या घड़ाईयाँ किस पार्टी ने घड़वाई होगी और किसके खिलाफ? वो किसी हक़ीक़त के आसपास भी हो सकती हैं और उसके बहुत दूर भी। जैसे in-out वाले महान। ये रोजमर्रा की छोटी-छोटी या अदृश्य-सी चीजें ही बड़े कारनामें करने या करवाने में कारगार होती हैं। 

माइक्रो मीडिया लैब (Micro + Media + Lab)      

Wednesday, May 8, 2024

What makes a University, University?

University represents 

Knowledge?

Ideas?

Information?

Views?

Independance?

Trends?

True representation of that society?

Or maybe more than that?




कल्पना को पँख दो?

Give Imagination A Fly? 

Or Let's Your Imagination Fly?

मान लो किसी ने आपको कोई बॉक्स गिफ़्ट किया। Fly in Imagination? Or Maybe Mirror, Cosmatic Box and Fly? 

कल्पना में उड़ो? नहीं शीशे में? या आईने में उड़ो?   

दोनों में कोई फ़र्क है क्या?

निर्भर करता है। बुरी बात तो नहीं, कल्पना में उड़ना? या सपनों में उड़ना? या अपने सपनों को हवा देना? मगर, हवा देने से पहले तो, वो सपना दिमाग में आना चाहिए। नहीं? अब वो सपना अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी। 

दिमाग में कैसे आएगा?   

फिर हवा कैसे मिलेगी?

और उड़ान, कल्पना की ही चाहे, कैसे लगेगी?

अब कल्पना की हवा लग गई, तो साकार करना क्या मुश्किल है?

निर्भर करता है, की आपके पास उसे साकार करने का सारा सामान उपलभ्द भी है की नहीं?

ठीक वैसे, जैसे आपको कोई पेज कॉपी करना है। क्या चाहिए उसके लिए? पेज और प्रिंटर, अगर पेपर पे कॉपी करना करना है? कैमरा, अगर सिर्फ सॉफ़्ट कॉपी चाहिए?

अगर आप किसान हैं तो, गेहूँ उगाने हैं? चावल या बाजरा उगाना? ऐसे ही, कुछ और भी हो सकता है। 

अगर आप खाना बनाना जानते हैं तो, आटा गुंथना है? गेहुँ की रोटी का, या बाजरे की रोटी का या बेसन की रोटी का? या दही जमानी है? या घी बनाना है या लशी बनानी है? या शायद ब्रेड बनानी है? या केक बनाना है?

अगर गाएँ या भैंस रखते हैं तो, अगर दूध निकलना है? कब निकालना है? कितनी बार निकालना है? कौन सी गाएँ या भैंस, बकरी या ऊँट कितना दूध देंगे? उनके गोबर के उपले या खाद बनानी है? कैसे बनेगी?

बाथरुम में या रसोई में सिंक के आसपास या कहीं भी जहाँ ज्यादातर पानी ठहरता है, काई लग गई, तो कैसे साफ़ होगी? 

ज़ुकाम हो गया या बुखार हो गया या थोड़ा बहुत कहीं से जल गया या कट गया तो आपको उनके घरेलु इलाज़ भी मालूम हैं। 

आपको अपने बच्चों को कैसे बोलना सिखाना है या चलना सीखाना है,  कैसे रखना है या आगे बढ़ाना है या पढ़ाना है, शायद ये भी मालूम है। ऐसे ही पालतु जानवरों का भी?   

ये काम और ऐसे ही कितने ही काम जो आप रोज करते हैं, कोई रॉकेट विज्ञान या जैनेटिक इंजीनियरिंग नहीं है।  मालूम है, कैसे करना है। अगर आप इन्हें करते हैं तो? जो आसपास होते या लोगों को करते देखते हैं, उन्हें भी ज्यादातर आ ही जाते हैं। 

मगर, अगर कोई ये सब नहीं करता या अपने आसपास किसी को करते ध्यान से नहीं देखता या सुनता तो? 

जैसे जो किसानों के बच्चे पढ़ते हैं, ज्यादातर खेती नहीं करते, मगर फिर भी शायद बहुतों को बहुत कुछ आता है या कम से कम पता होता है। जिनके घर में या आसपास भी कोई खेती नहीं करता, उन्हें भी बहुत-सी साधारण-सी बातों का भी शायद ना पता हो खेती के बारे में। ऐसे ही खाना बनाना है या कोई भी और काम। 

ऐसे ही आपके बच्चे कितना आसानी से या अच्छे से पढ़ पाते हैं या उन्हें मुश्किल लगता है, खासकर स्कूल के बाद? ये आपके घर का और आपके आसपास का वातावरण तय करता है। और राजनीती, ऐसे बच्चों को कहाँ धकेलती है? ये भी आपके यहाँ का राजनीती का मौहाल बताता है। वो नेता खुद कितने काबिल है और कैसे माहौल में पले-बढ़े हैं या पढ़े-लिखे हैं?  

कल्पना को पँख दो मगर?

मगर, सोच-समझ कर। बहुत तरह के कल्पना के पँख, आपकी जानकारी के बिना भी लग सकते हैं। कैसे? जैसे 

कोई आपसे या आपके आसपास किसी से 

लठमार की प्रैक्टिस (नौटंकी) तो नहीं करवा रहा? चाहे झुठी-मुठी ही सही? 

कोई आपसे या आपके बच्चों या बुजर्गों से नाली में स्लेटी डलवाने की? 

यहाँ-वहाँ पॉलिथीन डलवाने की? 

या कोई भी फ़ूड पैकेट्स, यहाँ-वहाँ किसी खाली घर या प्लॉट में डलवाने की? 

मैंने तो सुना है की अच्छी जगहों पे लोगबाग, ये सब डस्टबिन या कूड़ा डालने की जगह डलवाने की आदत डालते हैं, खुद भी और अपने बच्चों को भी। 

और आप? फिर भी आप चाहते हैं की आप अपने बच्चों को किन्हीं ऐसी जगहों के बच्चों से बराबरी या पर्तिस्पर्धा करवाएँ? जबकि दिमाग उन्हें उल्टे काम सिखाने में व्यस्त है?      

चाहे वो कल्पना के पँख गलत आदतें हों या रोज-रोज की नौटंकियाँ। वो नुकसान आपका ही करती हैं। रिश्तों में दरारें या बीमारियों के रुप में। मार-पिटाई के केस या इससे भी आगे कहीं-कहीं तो लग रहा है, मछली पकड़ने की, या पिस्तौल, देशी-कट्टा या गन के संकेत भी हो सकते हैं। आपके आसपास भी कहीं दिख रहे हैं क्या? 

सुना है या पढ़ा है यहाँ-वहाँ, की जो कुछ संकेत जहाँ कहीं हैं, वो या तो वहाँ (उन घरों में) उस वक़्त चल रहा है या ऐसा करने की कोशिशें हो रही हैं। तो आपके घर में या आसपास क्या चल रहा है? खुद आपसे ही ये राजनीतिक पार्टियाँ या इधर-उधर के राजे-महाराजे क्या करवा रहे हैं? और आप कर भी रहे हैं? सोचके देखो, ये आपके कितने भले में हैं? क्या वो साथ में ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी सामान्तर घड़ाईयोँ के दुष्परिणाम भी बता रहे हैं? या सिर्फ छोटे-मोटे लालच दे रहे हैं? इन सबको और ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी नौटंकियों को नहीं करोगे तो क्या इन पार्टियों की ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी घड़ाईयाँ नहीं होंगी? शायद? जानते हैं, अगली पोस्ट में।   

कटपुतली का शो? जादू कोई?

कोई कहे छह, मगर एक?

या कोई कहे सात, मगर एक?

जैसे 16 या 17?

या शायद कोई कहे एक या दो। उसके बाद जितना आगे, उतना ही ज्यादा प्रैक्टिकल या व्यवहारिक? या टेक्नोलॉजी और ज्ञान-विज्ञान? जब आपको थोड़ा बहुत भी सिस्टम का कोढ़ समझ आने लगता है तो शायद आप जहाँ-कहीं उसी नज़र से देखने लग जाते हैं। जैसे  

जादू कोई? 

 कटपुतली का शो?

या ज्ञान-विज्ञान?


2019 जादू था। उसके बाद तो दुनियाँ बदल चुकी? 

Let's Fly?
Or Let's Go?

Shout Out Cowboys?
Or O Duck O?
Go Gatots?

Or 
Machines?
Mascots?
Terrains?
Specialities?
Wonders?
And?
Thunders?

Blonde or Acidified?

आपने कहीं लिखा, Blonde or Acidified?

What's it to do with 7X? If any? 70? 

आप अंग्रेज हैं?

नहीं, शायद एसिड अटैक का दुष्प्रभाव है? जहाँ की ID AC LG blah blah है? या शायद TRUMP i fied की कोशिश भी कह सकते हैं? 

अब आप कहें, की ये क्या है? किसी को vitiligo है? मगर कोई कहे, ये तो acid attacks हैं? हो सकता है, high dose pesticides या ऐसी ही कोई और poisioning? यहाँ, वहाँ, वहाँ से? और जाने कहाँ-कहाँ से?   

ये आपका पर्यावरण है। जिसमें आपके आसपास जहर है और जहरीले लोग? जरुरी नहीं, ये सब साफ़-साफ़ दिखाई दे। मगर शायद, Ecology studies के लिए अहम हो सकता है।   

7X कब-कब और कहाँ-कहाँ और कैसे-कैसे रुप में आपके आसपास दिख सकता है? 

वैसे ये 7X वाले 7X तक पहुँचे कैसे? ये किसकी और कैसी गिनती है? थोड़ी अज़ीब गिनती नहीं है?

खैर। ये कॉउंटिंग कितनी ही तरह के उत्पादों में हो सकती है। जैसे?

कॉस्मैटिक्स? टॉइलेट्रीज़? या किसी भी तरह के साफ़-सफाई के उत्पाद या खाद-पदार्थ। जैसे?

7 in 1? कहाँ-कहाँ पढ़ा है?      

या 7X? 

दोनों अलग हैं या एक ही तरह के उत्पाद हैं?

मान लो 08. 05. 2024 को कोई आपको 7X दे गया? मतलब? 

अरे कुछ नहीं। आप फर्श साफ़ करें। 

ऐसे ही जैसे कोई स्लेटी रंग के तसला-बाल्टी बेच रहा हो? तसला को TESLA से मत जोड़ देना अब। ELON MUSK नाम तो सुना होगा? TWITTER X से पता नहीं क्या लेना-देना है?

वैसे स्लेटी रंग के तसले-बाल्टी या टब और नाली में सफ़ेद स्लेटी बहाना, से भी कोई लेना-देना हो सकता है? और किसका? ये महान पार्टियाँ, समाज को कहाँ व्यस्त रखती हैं? थोड़ा और जानना चाहो तो कुछ भी खरीदने या प्रयोग करने से पहले, उन्हें बेचने वालों के नाम, पते और जानना शुरू कर दो। और ये भी, की वो जहाँ फ़िलहाल रह रहे हैं, वहाँ कहाँ से आए हैं? ये उत्पाद किन और और कैसी फैक्टरियों में बन रहे हैं? इन सबको अगर किसी रिकॉर्ड की तरह नोट भी कर पाओ, तो पता है वो क्या कहलायेगा? आपका अपना और आपके आसपास का बचाव। गाँवों जैसी जगहों पे या ऐसी कॉलोनियों में जहाँ कौन आता है और कौन जाता है, या क्या बेचता है की कोई एंट्री या निगरानी नहीं होती, शायद वहाँ भी कोई तो प्रतिबंध होना चाहिए?   

वैसे किसी भी उत्पाद पर उसके नाम के साथ-साथ, कंपनी का नाम और वो उत्पाद किन-किन केमिकल्स से मिलकर बना है, ये भी लिखा होता है। उन्हें और उनके प्रभावों या दुस्प्रभावों को जानना शुरू कर दें तो काफी बिमारियों से बचा जा सकता है। 

कोई भी उत्पाद कब तक और किस-किस जगह या बाजार में रहता है, ये वहाँ के सिस्टम का कोढ़ बताता है। कोई उत्पाद टिकाऊ तो कोई कब आया और कब गया, पता ही नहीं। इसीलिए टिकाऊ भरोसेमंद होता है। और आया राम, गया राम तो? आया राम, गया राम ही होता है। मतलब, ये आया राम, गया राम जैसे नए-नए उत्पाद बेचने वाले आते हैं ना, जहाँ तक हो सके, इनसे बचें।       

Friday, May 3, 2024

पहचान भूल जाना या गलत पहचान बताना?

Wrong Identity, Forgotton Identity Or Identity Crisis 

क्या हो अगर आप अपना नाम भूल जाएँ?

घर का पता भूल जाएँ?

आपके घर में कौन-कौन हैं, आपको पता ही ना हो?

या वो आपके क्या लगते हैं? 

आपके अड़ोसी-पड़ोसी कौन हैं, यही भूल जाएँ?    

वो आपके क्या लगते हैं, ये भी भूल जाएँ?

आपका स्कूल, कॉलेज कहाँ है, ये भूल जाएँ?

या कहीं कोई नौकरी करते हैं, उसका पता भूल जाएँ?

कोई पूछे 

नाम क्या है?

पता नहीं। 

माँ का नाम?

पता नहीं। 

बाप का नाम?

पता नहीं। 

भाई-बहन?

पता नहीं। 

घर का पता?

पता नहीं। 

अड़ोसी-पड़ोसी?

पता नहीं? 

मौहल्ला, गली?

पता नहीं। 

गाँव, शहर का नाम?

पता नहीं। 

करते क्या हो?

पता नहीं। 

शादी हो रखी है?

पता नहीं। 

बीवी बच्चे?

पता नहीं।

या गलत पहचान 

जैसे 

नाम क्या है?

फलाना-धमकाना 

माँ का नाम?

फलाना-धमकाना

बाप का नाम?

फलाना-धमकाना

भाई-बहन?

फलाना-धमकाना 

घर का पता?

फलाना-धमकाना 

अड़ोसी-पड़ोसी?

फलाना-धमकाना

मौहल्ला, गली?

फलाना-धमकाना 

गाँव, शहर का नाम?

फलाना-धमकाना 

करते क्या हो?

फलाना-धमकाना 

शादी हो रखी है?

फलाना-धमकाना 

बीवी बच्चे?

फलाना-धमकाना

क्या है ये, फलाना-धमकाना?

पहचान भूल जाना या गलत पहचान बताना?

आपके साथ ऐसा-सा तो कुछ नहीं हो रहा? या शायद इससे भी ज्यादा कुछ? आपके बच्चों, युवाओँ, बुजर्गों तक के साथ? और आपको मालूम भी नहीं? या अहसास तक नहीं? ऐसा ही कुछ आपके रिश्तों या शरीर के साथ होने लगे तो? 

Identity Crisis? Diseases?    

पहचान संकट? या संक्रमण? या बीमारियाँ?

Thursday, May 2, 2024

ओ बीमारी! गोरी या है काली?

ओ बीमारी!

तू गोरी है? 

या है काली?

ऐसे जैसे राज्य या देश, गोरे या काले? 

ऐसे ही जैसे, ऊँची और नीची जातियाँ? 

ऐसे ही जैसे, कड़वा या मीठा पानी? 

ऐसे ही जैसे, घूप और छाँव?

ऐसे ही जैसे?

आप सोचो, आते हैं इसपे भी।         

गुलामी की मानसिकता और आपकी पहचान ?

जब आपकी मानसिकता गुलाम होती है तो आपकी अपनी कोई पहचान या कोई स्टैंड नहीं होता। जो होता है, वो जिसकी आप गुलामी कर रहे हैं, उन्हीं का होता है। कौन-सी पार्टी आपके काम की है? कितनी काम की है? आपके अपनों, आसपास के लोगों से भी ज्यादा?  

जो कोई पार्टी, आपसे जितना छिपा रही है या पारदर्शी नहीं है, वो आपके काम की नहीं है। जनता का भला करने वालों को छिपाने की क्या जरुरत? ऐसे में तो कोई भी पार्टी जनता की हितेषी नहीं है, शायद। सभी कुछ ना कुछ, नहीं, बल्कि, बहुत कुछ छिपा रही हैं। कोढ़ के अनुसार काम कर रही हैं। सविंधान या देश नाम की कोई चीज़ है ही नहीं। फिर ये सेनाएँ क्या है और किसके लिए लोगबाग लड़ते-मरते हैं? बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए? राजे-महाराजों के लिए? 

सबसे बड़ी बात, आप भी अपने या अपनों के लिए काम ना कर, कहीं इन्हीं की गुलामी तो नहीं कर रहे? इसीलिए आज भी छोटी-मोटी गोटियाँ (so-called), कीड़े-मकोड़ों की तरह यहाँ से वहाँ, उठा कर पटक दी जाती हैं। या ख़त्म कर दी जाती हैं। राजे-महाराजों द्वारा? या आपकी राजे-महाराजों की गुलामी की मानसिकता द्वारा? अपने छोटे-मोटे लालच की वज़ह से? या हक़ीक़त से दूर, अँधे-बहरे होने की वजह से? अपनों से दूर और औरों के पास होने की वजह से?

ये सब सामान्तर घड़ाईयोँ से समझ आता है। आसपास के कुछ लोगों ने अपना या अपने किन्हीं आसपास वालों का भला करने के लिए, पता ही नहीं, कैसे-कैसे नुकसान कर डाले। आसपास वालों के तो किए जो किए, अपने भी। क्यूँकि, इन पार्टियों ने उन्हें अँधा और बहरा बनाया हुआ है। जहाँ कहीं से इन्हें सचाई पता लग सकती है, वहीं से भगा देते हैं। या उस इंसान को कहीं दूर पटक देते हैं या दुनियाँ से ही उठा देते हैं। पार्टियों के स्क्रिप्ट्स के अनुसार, सामान्तर घड़ाईयाँ घड़ने के लिए, ऐसी दूरियों या दीवारों का होना बहुत जरुरी होता है। क्यूँकि, आम इंसान इतना बुरा नहीं होता, जितनी निर्दयी और क्रूर राजनीतिक पार्टियाँ होती हैं। ज्यादातर, कोई खास बेईमान या लालची नहीं होते। मगर, इन पार्टियों के पास उन्हें ऐसा बनाने के तरीके होते हैं। इसलिए आम-आदमी के पास सूचनाएँ सिर्फ वो पहुँचती हैं, जिससे इन पार्टियों का काम आसान हो जाता है। जितना ज्यादा इस सही सूचना को छिपाने या तोड़ने-मरोड़ने वाली दिवारें (shield) को ख़त्म किया जाएगा, उतना-ही इन पार्टियों के बुरे जालों से मुक्ति मिलेगी। और आपकी पहचान, इनके चिपकाए स्टीकरों की गुलाम नहीं रहेगी।  

इन्हें हम बीमारियों से या कहना चाहिए की राजनीतिक बीमारियों की हकीकतों से ज्यादा अच्छे से समझ सकते हैं।   

आपकी पहचान और इधर-उधर के स्टीकरों का प्रभाव

आपकी पहचान पर इधर-उधर से चिपकाए जाने वाले स्टीकरों से पहले, आपको खुद की पहचान को जानना जरुरी है। किन्हीं भी इधर-उधर के स्टीकरों से ज्यादा अहम वो है। इधर-उधर के स्टीकर ज्यादातर हमेशा के लिए नहीं होते। ज्यादातर बहुत ही अस्थायी होते हैं। ज्यादातर बेअसर होते हैं। क्यूँकि, इंसान की याददास्त का बहुत कम हिस्सा स्थाई  होता है। ज्यादातर अस्थाई होता है। 

इस स्थाई और अस्थाई में फेरबदल करके बहुत कुछ बदला जा सकता है। Mind Wash या Mind Control में यही अहम होता है। जैसे किसी बच्चे या पालतु जानवर की ट्रैनिंग। 

फ़र्क इससे पड़ता है, की आपको आपकी असली पहचान मालूम भी है, की नहीं? आपका दिमाग उसे पहचानने में ही गड़बड़ तो नहीं करने लगा? आपको या आपके अपनों को उस पहचान में, उलटफेर की ट्रेनिंग तो नहीं दी जा रही? क्या हो अगर ये जबरदस्ती स्टीकर चिपकाने वाली या चिपकाने की कोशिश करने वाली पार्टियाँ, आपके खून तक के रिश्तों में बेहुदगी लाने की कोशिश करने लगें? वो खून के रिश्ते करीबी भी हो सकते हैं या थोड़ा दूर के भी। आपको इस या उस राजनीतिक पार्टी ने कुछ करने को बोला है? चाहे छोटी-मोटी नौटँकी ही? या असलियत में कुछ ऐसा, जिसका प्रभाव या कहो दुस्प्रभाव, वक़्त के साथ बहुत बुरा हो सकता है। आप पर भी और आपके आसपास वालों पर भी।

किसी ने आपको कुछ ऐसा बोला क्या, की कोई माँ, बहन, बेटी या बुआ या भाभी या ऐसा कोई और रिस्ता भी हो सकता है, कहीं आसपास हो या आए तो फलाना-धमकाना पानी की पाइप उठाना और पौधों में या ज़मीन में पानी देने लग जाना? या खुरपा या कस्सी लेकर कहीं खोदने लग जाना? या अपने किसी बच्चे या बच्ची को लेकर वहाँ से गुजरना या कुछ खास बोलना? या किसी खास जगह जाकर बैठ जाना या वहाँ ले जाकर उनके साथ खेलना? कभी-कभी तो ऐसे वक़्त भी जब देखने वालों को लगे, अरे ये पागल तो नहीं हो गए? इतनी धूप में? या इतनी ठंड में? या बारिश तो पहले ही आ रही है? या आंधी चल रही है या लू चल रही हैं? या रात का या बहुत सुबह का वक़्त है। ऐसे में तो अपने घर नहीं होना चाहिए? आपको शायद किसी को वो सब दिखाने या चिढ़ाने के लिए बोला हो। वो भी किसको? आपका अपना कोई, माँ, बहन, बेटी, बुआ, भाभी, दादी जैसे रिश्तों को क्या दिखाना या चिढ़ाना चाहते हो? समझ नहीं आ रहा, की आप खुद अपनी और साथ में अपने बच्चे तक की रैली पीट रहे हैं? सामने वाले पे हो सकता है, उसका कुछ असर ही ना हो या उसे समझ तक ना आए। मगर, 

मगर, आपकी और आपके बच्चे की कोई बेहुदा ट्रैनिंग जरुर शुरू हो गई है। जिसके दुर्गामी परिणाम अच्छे नहीं होंगे। ये किसी पार्टी का, किसी तरह का छुपा हुआ स्क्रिप्ट चल रहा है, खुद आपके और आपके अपनों के ख़िलाफ़। आपपे, आपके बच्चों पे या आसपास पे वो कोई स्टीकर चिपकाने की कोशिश कर रहे हैं। आपको और आपके बच्चे को अपनी असली पहचान से दूर करने की कोशिश हो रही है। आपकी असली पहचान क्या है वहाँ? क्या रिस्ता है, आपका या आपके बच्चे का वहाँ पे? उसकी कोई सीमाएँ हैं? कहीं वो ऐसी कोई सीमाएँ तो नहीं लंघवा रहे आपसे? इसका मतलब ये है, की आपकी या आपके बच्चे की आने वाली ज़िंदगी में ऐसे रिश्ते घड़े जा रहे हैं। जिनको आप चिढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, वो शायद उस वक़्त तक आपके आसपास भी ना हों। तो आपके साथ-साथ और कौन शिकार होगा या होंगे? 

अगर अभी तक थोड़ा बहुत भी आपको सामान्तर घड़ाईयोँ वाला ये राजनीति और बड़ी-बड़ी कंपनियों का जुआ समझ आया हो, तो अपने आसपास ही नज़र दौड़ा लो। बहुत-सी, बहुत तरह की घड़ाईयाँ मिलेंगी। ज्यादातर घड़ाईयोँ में बहुत ही आम बोलचाल के जैसे कोड होते हैं। वो आम आदमी के पास कैसे आते हैं? वही कोड बताते हैं की वो सामान्तर घड़ाई या घड़ाईयाँ किस पार्टी ने घड़वाई होगी और किसके खिलाफ? वो किसी हक़ीक़त के आसपास भी हो सकती हैं और उसके बहुत दूर भी। जैसे in-out वाले महान। कोई किसी एक्सीडेंट के बाद बैड रिडन हो और कोई दिखाना चाहें live- in रह रहा है या रह रही है कहीं। अश्वथामा मारा गया जैसे-से किस्से-कहानियाँ। वो तो मर गया या मर गई और उसका सब किसी को दान हो गया या बाँट दिया। या वो सबका खा गया और बताते हुए भी शर्म आए की उसके पास ऐसा खाने को क्या है? ऐसा गाने वालों के खेतों में मजदूरी? या किसी के स्कूल की दिहाड़ी?     

अच्छे खासे पढ़ते-पढ़ते बच्चे कॉलेज तक आते-आते पढ़ाई क्यों छोड़ देते हैं? या 10-12 के बाद ही, अजीबोग़रीब केसों में क्यों उलझ जाते हैं? या ज़िंदगी ही खो देते हैं? या कुछ जेल की हवा खाने के बाद, वापस ज़िंदगी की तरफ क्यों नहीं मुड़ पाते? शायद आप कहेंगे, माहौल? जी हाँ। माहौल। मगर वो मौहाल कौन बना रहा है? आप? आपका आसपास? या शायद शातीर राजनीती? वही पार्टियाँ, जिनके आप भक़्त हैं? वो उसमें आपको शामिल कर रही है? सिर्फ आपको नहीं, बल्कि आपके बच्चों तक को? और आप जाने या अंजाने शामिल हो रहे हैं? 

सिर्फ रैली पीटने तक हो तो भी चल जाए, यहाँ तो ज़िंदगियाँ ही ख़त्म हो रही हैं या दाँव पर लग रही हैं। वो भी पैदाइशी? या बचपन में ही, जब बच्चे को बोलना, चलना तक नहीं आता, तभी? उन्हें दाँव पे रख दिया जाता है। कहीं इस पार्टी द्वारा, तो कहीं उस पार्टी द्वारा? या खुद उसके अपनों द्वारा भी? जाने या अन्जाने में? क्यूँकि, उन्हें लगता है की इतनी छोटी-छोटी बातों या नौटंकियोँ से क्या होता है? 

बड़े लोग (so-called) अपनी पहचान नहीं छोड़ते। उल्टा, अपने स्टीकर हर किसी पे चिपकाने की कोशिश में रहते हैं।  छोटे लोगों (so-called) की कोई पहचान ही नहीं होती? जिस किसी का स्टीकर अपने पे चिपकवा लेते हैं? और अपना सब, उन स्टीकर वालों के हवाले कर देते हैं? इन स्टीकरों को पहचाने कैसे? आपके चारों तरफ फैले पड़े हैं, ये स्टीकर। 

ये रोजमर्रा की छोटी-छोटी या अदृश्य-सी चीजें ही बड़े कारनामें करने या करवाने में कारगार होती हैं। कैसे? इसे माइक्रो मीडिया लैब (Micro + Media + Lab) बेहतर समझा सकती है। जिसे आप अपने रसोईघर, बाथरुम, खेत-खलिहानों, घर के या आसपास के लॉन या बाग़-बगीचों या तालाबों या छोटी-मोटी झीलों (गंदे या साफ़ पानी की) और खुद के या अपने पालतु जानवरों के शरीर और स्वास्थ्य तक से जान सकते हैं।           

वैसे इन छोटी-छोटी सी बातों की, बड़े लोग (?), बड़ी-बड़ी रैलियाँ भी पीटते हैं। क्यूँकि, उनकी औकात है। जैसे, किसी ने कहीं, किसी पाइप से, किसी के यहाँ या अपने यहाँ, पेड़-पौधों या ज़मीन में पानी दिया। वो भी किसी के कहीं घुमने पे या आने पे। और किन्हीं चैनल्स पे DUBAI में बाढ़ आ गई। आप अगर इतने ही ठाली हो, तो कम से कम, झुठे-मुठे विडियो बनाना ही सीख लो। वो सब आपके काम तो आएगा। ये मुफ्त में खुद सिर दर्द लेना और औरों को देने की कोशिश करना, किस काम का? ऐसे लोगों की बहुत से क्षेत्रों में बहुत जरुरत है। फिर चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो, राजनीती का, मीडिया का या मनोरंजन का। सिविल हो या डिफ़ेन्स। सबसे बड़ी बात, ये सब करना बहुत मुश्किल भी नहीं है। और बोरिंग भी नहीं है। 

जानते हैं आगे, ऐसी ही कुछ, हुबहु-सी कहानियों के बारे में, जहाँ एक जैसी-सी टेक्नोलॉजी का ईधर भी प्रयोग होता है, और उधर भी। जिनका सदुपयोग भी हो सकता है और दुरुपयोग भी।