मानव रोबोट बनाना कितना आसान या मुश्किल?
शायद बहुत आसान तो नहीं। खासकर जब आप या आसपास के लोग सजग हों। मगर जिस तरह राजनीति ने अपने जाले फैलाए हुए हैं, उसे देखकर लगता है की बहुत मुश्किल भी नहीं है। खासकर एक्सपर्ट लोगों के लिए।
सामान्तर केसों का अगर आप अध्ययन करेंगे तो समझ आएगा की तथ्यों को रखने में बहुत ज्यादा हेरफेर है। हर पार्टी अपनी-अपनी तरह के तथ्य घड़ने की कोशिश करती है। और उन तथ्यों को पेश करने में वो सामने वाले को किसी भी हद तक चौंधिया सकती है, बेवकूफ बना सकती है। इस तरह की हेराफेरियाँ कैंपस क्राइम केसों में आसानी से देखी-समझी जा सकती हैं। क्युंकि वहाँ सिर्फ लोगों की कही गयी जुबानी बातें नहीं है, बल्की official documents है, जो कहानी खुद-ब-खुद गा रहे हैं। जैसे हस्ताक्षर करने वाले विधार्थी उस दिन उस शहर में ही न हों। या छुट्टी वाले दिन (जिस दिन हरियाणा बंद हो) टीचर ने नहीं पढ़ाया, की लिखित में कम्प्लेन हो। दिवाली पे हॉस्टल बंद हो और लिखित में टीचर की कम्प्लेन हो, क्लास नहीं ली। एक-दो को छोड़ बाकी विधार्थियों के हस्ताक्षर उन एक-दो ने ही कर दिए हों। ऑफिस के बाद ताला खोल, लैब से dissertation चुरा लें और अगले ही दिन final viva भी हो जाए। वो भी जब वो टीचर, किसी केस की तारीख पे कोर्ट में बुला लिया हो और officially छुट्टी पे हो और डिपार्टमेंट कोऑर्डिनेटर खुद छुट्टी पे हो। ये सब आप कभी भी साबित कर सकते हैं।
मगर जहाँ सिर्फ कहे सुने गए तथ्योँ के आधार पे कहानियाँ घड़ी जाएँ, वहाँ तो क्या कुछ तो सम्भव नहीं है?
हेराफेरी
Trickeries: Setting narratives are like setting news-agendas by different parties media. टीवी खबर देने वाले चैनल कैसे ब्रेकिंग न्यूज़ देते हैं?
अलग-अलग चैनल्स पे, एक ही वक़्त में अलग-अलग ब्रेकिंग न्यूज़ क्यों होती है? ज्यादातर खबर चैनल इसलिए नहीं चल रहे की आम इंसान को दुनियादारी की असली खबर हो। बल्कि इसलिए चल रहे हैं, की उन्हें और उनकी पार्टियों को फायदा हो। इसीलिए अगर एक चैनल पे तबाही-तबाही मची हो, तो भी दूसरे चैनल पे यहाँ सब शांति-शांति है, हो सकती है। ऐसे ही आम लोगों की ज़िंदगियों के साथ अलग-अलग पार्टी खेल रही होती है। खासकर, जब सामांतर केस घड़ाई की बात हो।
अपना पक्ष रखना, किसी बात या पहलु को अपने हिसाब से रखना, बताना या दिखाना (Narrative)
किसी भी विषय के कितने पहलु हो सकते हैं? जितने आदमी हों, उतने ही। जितनी पार्टी उतने ही। जितने मुहँ, उतनी बात। या शायद उससे भी ज्यादा? क्युंकि कुछ पक्ष उनसे इधर-उधर भी हो सकते हैं।
एक पक्ष
2019 में मार-पिटाई, एक सामांतर घड़ाई, और सज्जन की पत्नी (?) का सज्जन ज्ञान। मतलब, ऐसे लोग जिनसे आप पहली बार मिल रहे हों, सिर्फ आपके बारे में ही नहीं, आपके माँ-बाप के बारे में भी कुछ गा रहे हों। जाहिल इंसान ही किसी के माँ-बाप तक जा सकता है। फिर जो मार-पिटाई तक चले गए, वहाँ बदजुबान क्या महत्व रखती है? कहा क्या उसने और क्यों, उसपे क्या सोचना? वो एक तरह का तरीका (Narrative) था किसी बात को रखने का, किसी सामांतर घड़ाई में, किसी एक पार्टी का।
उस औरत ने जो कहा, क्या वो अहम था? हाँ! वो एक पुरुष प्रधान समाज का बेहुदा रूप दिखा और बता रहा था।
कितने ही पक्ष
गाँव में आई तो और कई तरह के सामान्तर केसों को समझने का मौका मिला। ये भी की माँ को ऐसा कुछ या इस तरह का बोलने वाले लोग कौन हैं? खासकर किस पार्टी के हैं? गाँव में ऐसे-ऐसे नमूनों की नुमाईश ज्यादा ही दिखेगी। क्युंकि, यूनिवर्सिटी में वो जो स्तर पहुंचा हुआ है, वो ऐसी ही किसी जगह से पहुंचा हुआ है। ऐसे कुछ लोगों को आप बचपन से जानते होते हैं। कुछ वक़्त के साथ अपना रंग दिखाते हैं। उनमें से कुछ वक़्त की अलग-अलग तरह की मार भी झेल चुके होते हैं। तो शायद, कुछ हद तक थोड़ा सभ्यता, विनम्रता और सौम्यता की तरफ भी मुड़ चुके होते हैं।
मगर कुछ, कुछ और ऐसे ही और सामान्तर घड़ाईयों में प्रयोग या दुरूपयोग हो रहे होते हैं। उन प्रयोगों या दुरुपयोगों में सामने वाले के पास जानकारी क्या है और क्या नहीं है, अहम भुमिका निभाती है। क्युंकि, जैसे ही जानकारी बदलती है, वैसे ही सामने वाले का व्यवहार भी। Narratives change with information. जानकारी बदलना मतलब व्यवहार बदलना, मतलब mind programming . व्यवहार बदलना, मतलब, मानव रोबोट घड़ना।
Hide some information, feed some information. मतलब Deceptive Designs, चालबाज़ी। इसीलिए हेराफेरी आसान हो जाती है। क्युंकि जो दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वो दिखता नहीं।
मेरे गाँव आने के बाद किसी और सज्जन की कहानी सामने आई। बताने वाले जैसे बता रहे थे, उससे यूँ लगा (लगा मतलब आभाषी, जरूरी नहीं हकीकत ही हो) की कहीं-कहीं थोड़ा बहुत मिलता-जुलता सा केस है। थोड़ा बहुत, बस। बाकी कुछ नहीं मिलता। ये बताएँगे तो केस घडाई ऐसे है और वो बताएँगे, तो ऐसे।
उसके कुछ महीनों बाद भाभी की मौत और एक और ड्रामा शुरू होना। या कहना चाहिए की ऐसा लग रहा था, जैसे ड्रामा ज़िंदगी के हर कदम पर साथ-साथ चल रहा हो। पर मैं तो कभी इन ड्रामों की या रंगमंच की कभी इतनी शौकीन नहीं रही। जिनके आसपास था या जो अब उस ड्रामे का हिस्सा थे, वो शायद ये तक न जानते हों, ये रंगमंच क्या होता है? फिर ये लोग क्यों शामिल हो गए थे? इन्हें क्या कहके शामिल किया गया था? इनके पास किस तरह की जानकारियाँ थी? अहम, कौन-सी जानकारियाँ इनसे छुपाई जा रही थी? सबसे बड़ी बात, क्या-क्या तोड़मोड़-जोड़घटा कर पेश किया गया था?
आईये, आभाषी दुनियाँ को हकीकत में कैसे परोसते हैं ये जानने की कोशिश करें
भाभी की मौत के अगले ही दिन एक ex MLA और उसके स्टैनगन वाला ड्रामा। उसके अगले ही दिन औरतोँ की पिटाई, कुटाई, लुटाई और खरीद फरोक्त कर दूर-दूर से लायी गयी औरतों की कहानियाँ। सबसे बड़ी बात, कौन तबका किस दिन आ रहा था या शायद कहना चाहिए की किस पार्टी से संभंधित था। और उनकी बातें (कहानियाँ, narratives), किन-किन विषयों के आसपास घुम रहे रहे थे। मैंने इस गाँव को या इन कहानियों को इस रूप में पहले शायद ही कभी देखा-सुना हो। ऐसा नहीं है की ऐसी-ऐसी कहानियाँ पहले नहीं सुनी थी। यहाँ इस रूप से मतलब, राजनीतिक चेहरे और मोहरे और उनके दिए पक्ष (narratives). जो मानो आपको खास दिखाने और बताने को ही पेश किय जा रहे हों। या शायद, अब इस राजनीति को थोड़ा बहुत समझना शुरू कर दिया था। इससे पहले ये वाली समझ न थी। तीसरे ही दिन शायद, थोड़ा दूर और एक और औरत की मौत और उसके आसपास घुमते Narratives के ये पक्ष, वो पक्ष।
कुछ-कुछ वैसे ही चल रहा था, जैसे news media करता है? इस पार्टी के एजेंडा को दबाने के लिए, अपने चैनलों पे अपना एजेंडा जोरशोर से शुरू करदो। शोर ही शोर। ब्रेकिंग ही ब्रेकिंग (न्यूज़)। शायद इसीलिए इन न्यूज़ का नाम ब्रेकिंग (Breaking) पड़ा हो? ऐसा ही कुछ ये छदम युद्ध वाले, आम लोगों की ज़िंदगियों में शुरू कर देते हैं। करता दिखता है कौन? आम आदमी। मगर, हकीकत में इन विषयों और narratives को divert कौन करता है? ज्यादातर केसों में राजनीति। शायद इंसान ही धरती पे एक ऐसा प्राणी है, जिसके लिए ऑक्सीजन तक खत्म हो जाती है। ऑक्सीजन के लिए भी मारामारी होती है? सोचो, इससे बेहुदा राजनीति और क्या हो सकती है?
यही होते हैं, Deceptive designs, एक तरह का छदम युद्ध। छुपम-छुपाई। इसका सबसे आसानी से देखा जाने वाला उदाहरण, कहीं न कहीं आपके आसपास ही मिल सकता है। जैसे किसी इंसान का अचानक से चले जाना या आ जाना। किसी इंसान का अचानक से इतना व्यस्त हो जाना की आपको मिलने, बोलने, बैठने या साथ खेलने (बच्चे के केस में) या साथ खाने-पीने तक का वक़्त न हो। ये सब अक्सर अपने आप नहीं होता। ये तरीके होते हैं लोगों को, रिश्तों को पास या दूर करने के, शातिर लोगों द्वारा। आम आदमी, वक्त रहते जिन्हें कम ही समझ पाता है। इसे कहते हैं, संशाधन आपके, चाहे इंसान हों या भौतिक चीज़ें और फायदा शातिर लोगों का?
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