हर इंसान कोड? हर कुर्सी कोड? हर रस्ता, हर जीव और निर्जीव एक कोड? खाने-पीने, पहनावे से लेकर, बोलचाल की भाषा तक, जन्म-मरण से लेकर, बीमारियों और उनके ईलाज़ों तक। दवाईयों, डॉक्टरों, हस्पतालों, स्कूलों, विद्यालयों और यूनिवर्सिटी तक, सब कोढ़ से कोड। आपका ईलाज क्या और कैसे होगा, इसके भी थोंपे हुए से कोड, इधर के या उधर के। तो आपके आसपास जो कुछ भी है, वो सब आपके आसपास का, एक खास तरह का काम्प्लेक्स राजनीतिक कोड। कौन सा कोड कहाँ बैठेगा, कौन किससे बोलेगा या नहीं बोलेगा, ये भी अक्सर रंगमंच पे दिखाना है, बताना नहीं, जैसा-सा ही कोड होता है। ज्यादातर गुप्त रूप से, लोगों की मनोस्थिति घड़कर या जानभूझकर करवा के भी।
और ये सब वहाँ की राजनीति, उस वक्त का राजनीतिक माहौल बताएगा। ठीक ऐसे ही जैसे, नेता लोग विधानसभा या राज्यसभा में बैठते हैं। ऐसा-सा ही, कुछ-कुछ नेता लोग कोशिश करते हैं, अपने रोजमर्रा के कार्यकर्मों में दिखाने या सुनाने का। ऐसा ही कुछ, जब वो मंच पर बोल रहे होते हैं, तब चल रहा होता है।
कौन-सा कोड कहाँ बैठेगा, ये भी ये गुप्त सिस्टम बताता है। पढ़ा, यहाँ-वहाँ और फिर देखा-समझा भी। आप भी जानने-समझने की कोशिश कर सकते हैं।
जैसे किसी के कान बिंधे हों, कुछ भी बेतुका-सा बताकर और एक तरफ मतलब हो "पीट दी संगीतमय रैली-सी"। और दूसरी तरफ हो, रीती-रिवाज़। एक तरफ शौक, और दूसरी तरफ, अपना एजेंडा लागू करवाना। या अपनी ही तरह की मोहर ठोकना।
ऐसे ही बीमारियों और ईलाज़ों का है। कैसे बेतुके से इन जालों से, बाहर निकलने में फायदा है या इनके साथ समावेश बनाने और अपने आपको ढाल लेने में। वैसे ढल तो हम खुद ही जाते हैं क्यूंकि ज्यादातर का सही अर्थ और उदेश्य या छिपा हुआ फायदा या नुकसान पता ही नहीं होता। आएंगे उसपे भी, किसी और पोस्ट में।
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