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Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Tuesday, October 3, 2023

रैली निकालना (राजनीतिक-विज्ञान वाली)

Degrading, meanness, demeaning, goonish, pejorative, offensive, criminal mindset and conduct, puzzling tricks to score in demeaning way? सीधी-सीधी भाषा में बोलें तो गुंडों वाली भाषा और तरीके, या शायद शातीर राजनीतिक, नीचा दिखाने के तरीके? 

ऐसी-ऐसी, वैसी-वैसी और ना जाने कैसी-कैसी रैलियाँ, खासकर आम आदमी की। यहाँ-वहाँ और न जाने कहाँ-कहाँ, निकलती ही रहती हैं।  

हर नेता का अपना खास एरिया और उसके लिए खास तरह के प्रोग्राम या specialty मिलेंगी। जानने-समझने की कोशिश करें उन्हें, शायद सिस्टम का कोढ़ कुछ समझ आए। उन्हीं में कहीं न कहीं, छिपे होते हैं, अपमानजनक, तुच्छ बताने या दिखाने वाला या बनाने वाला, बेहुदा तरीके से नीचा या छोटा दिखाना, तिरस्कार करने की या इस तरह की मोहर ठोकने की अपनी ही तरह की कोशिश। शायद ऐसे ही कुछ अच्छा भी होता होगा। आएंगे उसपे भी, किसी और पोस्ट में। 

जैसा आप सोचते हैं या आम आदमी को दिखता या समझ आता है, वैसा नहीं, बल्की उसके बिलकुल उल्टा। भद्दा और बेहुदा भी। जले पे नमक जैसे? और आपको दिखे या समझ आए? 

राजनीती वाली रैलियाँ   

Digital and graves (3D)? 

एक दिन ऐसे ही क्लास में किसी टॉपिक पर बात हो रही थी। हर क्लास में कुछ ऐसे तत्त्व हमेशा होते हैं, जो हद से ज्यादा झल्लाहट पैदा करने वाले हों। हालाँकि, वक़्त और तजुर्बे के हिसाब से टीचर ऐसे तत्वों से निपटना भी सीख जाते हैं। वक़्त के साथ, ये भी समझ आता है की well behaved and soft spoken students की बजाए, ऐसे rude तत्वों से ज्यादा सीखने और समझने को मिलता हैं। Life Sciences या BioSciences में ऐसा, शायद ही देखने-सुनने को मिले। मगर साथ में जहाँ Engineering मिल जाता है, वहाँ कुछ भी संभव है। शायद इसीलिए, इस डिपार्टमेंट को मैं कभी अपना नहीं पाई। हमेशा ऐसा अनुभव होता रहा, की आप गलत जगह हैं। सबसे बड़ी बात, यहाँ पे joining ही बड़े बेमन से की थी। पहले ही दिन का अनुभव ही ऐसा था। खैर, वापस क्लास पे आते हैं। किसी स्टुडेंट ने कुछ बड़ा अजीब-सा शब्द प्रयोग किया। Indirectly, जो गिरे हुए स्तर का था। और पता नहीं क्यों मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आ गया, जो कम ही होता है। और मैंने कुछ वैसे से ही शब्द प्रयोग कर दिए, जो शायद एक टीचर को नहीं करना चाहिए, चाहे जो भी परिस्थिति हो। मैंने बोला, "ज्यादा बकवास की तो यहीं गाड़ दुंगी। हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी?" और उसने वापस बोला, "मैडम गाड़ा हुआ तो आपको already स्टूडेंट ने ही है। आपको पता ही नहीं, उस ग्रेवयार्ड का?" एकदम सही शब्द ध्यान नहीं, पर कुछ-कुछ ऐसा ही। हालाँकि बाद में, कुछ स्टूडेंट्स ने सॉरी भी फील किया, उस स्टूडेंट के behalf पे। क्यूँकि उसे मैं क्लास से निकाल चुकी थी। पर वो शब्द जाने मुझे कैसी-कैसी graveyards पे ले गया। 

उसके बाद तो ये graveyard, कई जगह, कई तरह से सुनने-समझने को मिली। ईधर-उधर की, कुछ पोस्ट में, एक खास तरह की सोशल फोटो में, जहाँ हड़ियाँ ही हड़ियाँ पड़ी हैं और कोई कुत्ता जैसे कह रहा हो, और ये सब बिल्ली (या बिल्ला शायद?)  ने किया है (And cat did it all)? तब तक भी मुझे किसी छद्द्म-युद्ध का अंदाजा नहीं था। हाँ। ये सब चल क्या रहा था, जानने की जिज्ञासा जरूर बढ़ गई थी। मेरे दिमाग में कोई 16 घुम रहा था। या कहना चाहिए की घुमाया गया था, शायद? 

16, Type-3   

16. 04. 2010 

16. 06. 2010 

उसके बाद तो पता ही नहीं, ऐसी-ऐसी कितनी ही तारीखें या नंबर थे, दिमाग को घुमाने के लिए। जिनमें से ज्यादातर के बारे में, मेरी समझ बहुत कम थी। 

इस सबके कुछ साल बाद, एक किताब मिली पढ़ने को, किसी जानकार की लिखी हुई। और फिरसे graveyards दिमाग में घुमने लगी। दो पैराग्राफ, उसमें काफी कुछ गा रहे थे। एक किसी शादी का scene और दूसरा किसी की grave। तीन किताबों में से, ये ज्यादा interesting थी, शायद। पढ़कर ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे, किसी बहुत ज्यादा नफरत करने वाले इंसान ने लिखी हो। छोटी-सी, मगर, बड़ी-ही, अजीबोगरीब-सी किताब। एक मैंने किसी सलाह पे खरीदी। किसी ने पढ़ने को माँगी। मगर जिस हिसाब से उसे लेने कोई आ रहा था, वो जाने क्यों और भी ज्यादा अजीब था। और मैंने बहाना बना, की मैं तो घर पे हूँ ही नहीं, वो नहीं दी। शायद ही कभी हुआ हो, की किसी ने कोई किताब माँगी हो और मैंने मना कर दिया हो। चल क्या रहा था, ये सब? राजनीतिक रंगमंच? अब तक शायद थोड़ा-बहुत समझ आने लगा था, की इन्हें राजनीतिक रंगमंच कहा जाता है। फिर उस इंसान का तो थिएटर से शायद खास लगाव रहा है।      

उस अजीबोगरीब किताब में, शायद एक ऐसी शादी थी, जिसमें दूल्हे ने अपनी सगाई की फोटो फाड़ कर, FB पे चिपकाई थी, हकीकत में। और शादी की फोटो में पति और पत्नी को एक दूसरे के विपरीत दिशा में मुँह किए। उस FB पे काफी कुछ आता है आज तक। थोड़ा-बहुत समझ आता है शायद, और थोड़ा-बहुत नहीं भी। इतने सालों के उतार-चढ़ावों का आईना जैसे। कुछ ज़िंदगियों की, कोई अजीबोगरीब कहानी गाता हुआ जैसे।  

अब असली वाली राजनीती वाली रैलियों पे आते हैं।   

Digital and graves, कहाँ सुनने को मिलता है? DIGITAL libraries के यहाँ वहाँ पैसे बाँटते और उदघाटन करते? और श्मशान घाटों के रखरखाव के लिए ? किसानों की रैलियाँ?   

हर नेता का अपना खास एरिया और उसके लिए खास तरह के प्रोग्राम या specialty मिलेंगी। जानने-समझने की कोशिश करें उन्हें, शायद सिस्टम का कोढ़ कुछ समझ आए। 

एक रैली वो जिनमें आम आदमी जाता है, और राजनीतिक नेता करते हैं। 

एक वो, जिसे किसी की रैली निकालना कहते हैं। या और ठेठ या लठमार भाषा में कहें तो, "या किस की रैली-सी पीट-री है"? ये ठेठ लोग (सिर्फ ठेठ? या जाहिल-गँवार?), ऐसा किसी भी माहौल और मौके पे कह या कर सकते हैं। क्यूंकि यहाँ मौका नहीं, राजनीतिक चौके-छक्के देखे जाते हैं। ये लगा चौका, इस पार्टी के खिलाफ। ये लगा छक्का, उस पार्टी के खिलाफ। अरे, पार्टी की बजाए, देश बोलना था ना शायद?  जितनी भी रैलियाँ होती हैं, उनमें किसी न किसी की रैली निकल रही होती है, गुप्त रूप से। राजनीती के लोगबाग, राजनीतिक रंगमंच पर रैलियाँ निकाल रहे होते हैं, हम उसे क्या सोचते हैं? और वो वहाँ नौटंकी, क्या कर रहे होते हैं? या शायद उनसे भी कोई करवा रहे होते हैं ? 

और ये अजीबोगरीब रैलियाँ सिर्फ राजनीतिक रैलियों में ही नहीं निकलती बल्की जोकरों की तरह यहाँ-वहाँ, जाने कहाँ और कौन-कौन लगे ही रहते हैं। 

कभी सोचा रैलियों में कौन जाते हैं? इतने ठाली भला कौन होते हैं? आओ किसान रैली पे ही आते हैं किसान रैली मतलब? किसान की रैली निकाल रखी है। खासकर ऐसी रैली, जैसे लालकिले पे 26 जनवरी को किसानों का रैली में ट्रेक्टर प्रदर्शन। उसी रैली में किसी किसान की मौत भी। ऐसे ही जैसे, इससे काफी पहले अरविंद केजरीवाल की रैली और किसी किसान का उसी रैली में फांसी लगाना। ऐसे-ऐसे, सिर्फ किसान ही नहीं बल्की और भी कितनी ही तरह की रैलियाँ और उनके कितनी ही तरह के कारनामे मिल जाएँगे। एक बार जानने-समझने तो लगो, इस गुप्त सिस्टम और राजनीती के गुप्त कोड़ों को। 

26 जनवरी वाली लाल किले पे ट्रैक्टरों वाली रैली और किसान की मौत। मगर कैसे? या थोड़ा और पीछे चलें? अरविंद केजरीवाल की रैली और किसी किसान का उस रैली में ही फाँसी लगाना। मगर कैसे? और क्यों? अभी पीछे कुछ विडियो देखे, दुष्यन्त चौटाला की FB पेज पे और दीपेंदर हुडा के FB पेज पे। स्टेज पे कितना कुछ स्टेज होता है ना? कोई गाए, उन्होंने पीटा और कोई ये बताए की इसे क्यों पीटा और उसे क्यों पीटा। और भी काफी कुछ आता ही रहता है, कभी अरविंद केजरीवाल के पेज पे तो कभी मोदी के। बड़ी कुर्सियों पे बैठे लोग और बड़ी-बड़ी बातें ? या शायद बड़ी कुर्सियों पे बैठे लोगों की, कितनी छोटी-छोटी सी बातें? हमेशा तो नहीं, पर शायद बहुत बार। राजनीती के इस स्टेज को आम-आदमी भला कैसे समझे? अब उसे क्या पता है की पिटने का यहाँ मतलब क्या है? खुद मुझे बहुत वक़्त के बाद समझ आया।  

विज्ञान वाली रैलियाँ 

जैसे? अभी पीछे वो कोई चंद्रयान को किसी कक्षा में बिठा रहे थे, अपने कौन-से वाले नेता लोग? मतलब ये वैज्ञानिक सिर्फ stand up कॉमेडी ही नहीं करवाते या करते, बल्की चाँद-सूरज को भी कक्षाओं में बिठाते हैं। या चंद्र और सूरज-ग्रहण भी खास वाले और खास तरीके से करवाते हैं। जब वैज्ञानिक ऐसा कर सकते हैं तो नेताओँ को क्या बोलें? 

कहने वाले तो युं भी कह दें, पता है ये DIGITAL और GRAVE का क्या रिस्ता है? और इनका दुष्यंत चौटाला से क्या लेना-देना हो सकता है ? नेताओँ के प्रॉपर्टी, घर, खेती या व्यवसाय वाली जमीन, कितनी और कौन-कौन सी गाड़ियाँ और किसके नाम हैं ? सबकुछ जानकार ऐसे लगेगा, राजनीतिक कोढ़-सा जैसे।  

अब कहने वाले तो ये भी कह दें की DLF और वाड्रा का क्या कनेक्शन? वो भी राजनीती से? या हुडा का गुडगाँव की प्रॉपर्टी के झमेलों से? एक तरफ राजनीती है, तो दूसरी तरफ, इधर और उधर का मीडिया। ऐसे-ऐसे और भी पता नहीं कैसे-कैसे, राजनीतिक किस्से-कहानियों वाले कोढ़ हर नेता के मिलेंगे। 

अब अरविंद केजरीवाल, अपने साथ ये शराब के घोटाले वालों को क्यों लिए घुमता है? जरूरी है, इतने शराब के ठेके खुलवाना, वो भी इतनी रात तक? एक तरफ प्रचार-प्रसार स्कूल और दूसरी तरफ शराब और ठेके? हज़म नहीं हो रहा ना? वैसे ही जैसे, एक तरफ DIGITAL, किसान और दूसरी तरफ GRAVES के लिए खास पैसे देने में रूची? शायद जाने वालों के लिए सम्मान की भावना? और तो क्या ही कहें?

राजनीती भी और विज्ञान भी। हो गया राजनीती-विज्ञान?  

ऐसे ही, किसी भी नेता के स्पेशल राजनीती वाले interests को जानने और समझने की कोशिश करें। और जिन्हें थोड़ा ज्यादा पता है, वो अपना ज्ञान इधर बाँटते रहें। 

ये तो हुआ राजनीतिक-विज्ञान वाली खास तरह की रैलियाँ। ऐसे ही आम आदमी भी, ऐसी-ऐसी रैलियाँ पीटता ही रहता है। मगर उससे ऐसा ज्यादातर, अनजाने में होता है। और शातीर लोग करवा रहे होते है, छल-कपट से।  उसके खुद के खिलाफ, अपनों के खिलाफ और भी ना जाने किस-किस के खिलाफ। उसमें हमारे आसपास की हर वस्तु, जीव, निर्जीव, रीती-रिवाज और भी पता नहीं क्या-क्या होता है। जानेंगे उसे भी आने वाली कुछ पोस्ट में।         

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