Search This Blog

About Me

Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Friday, October 27, 2023

टेक्नोलॉजी की नंग-धड़ंग दुनियाँ

आपको लगे घर की लाइट खराब हो गई और आप किसी बिजली वाले को बुला लें, ठीक करने? वो कहे, लाइट तो बदलनी पड़ेगी। वो पुरे घर की भी हो सकती है, और किसी खास कमरे या एरिया की भी। और कोई एक-आध प्लग की भी। ऐसा 2012 या 2013 में हुआ था, H#16, टाइप-3 में। बिजली विभाग के बन्दे ने बोला, कॉपर तार है, बहुत पुरानी। इसलिए बार-बार, शार्ट-सरकट हो रहा है। आप पुरे घर की बदलवा लो, सही रहेगा। वैसे भी आजकल यूनिवर्सिटी ये खुद करवा रही है, पुराने घरों में, जहाँ वायरिंग बहुत पुरानी हो चुकी। आपको भी लगे, की ये भी सही है। रोज-रोज शिकायत करने से तो। और हो गई नई वायरिंग, पुरे घर की। मगर उसके साथ-साथ, दूसरे तरह की समस्याएँ भी। Privacy Rights Violations और उसपे हद बेहुदा दर्जे की गिरी हुई bullying (बेहुदा साँड़ सिंड्रोम)।आप क्या करोगे? शिकायत, जहाँ कहीं होनी चाहिए। VC ऑफिस के माध्यम से SP, रोहतक। जब वहाँ से कोई जवाब ना मिले, तो DGP, हरियाणा। जब वहाँ से भी कोई खास कारवाही ना होती लगे, तो महिला आयोग, दिल्ली। मानवाधिकार आयोग, दिल्ली। जब वहाँ भी ढुलमुल रवैया लगे, तो CM, PM, MPs इस पार्टी के, उस पार्टी के, न्यूज़ चैनल्स और सुप्रीम कोर्ट।          

इसके साथ-साथ जानकारी जुटाना भी शुरू हो चुका था, यहाँ-वहाँ से, की आखिर ये निगरानी टेक्नोलॉजी (Surveillance) बला क्या है?

इसी जदोजहद में आपको खबर होती है, एक नंग-धड़ंग दुनियाँ की। टेक्नोलॉजी की दुनियाँ, जो दूर बैठे कंट्रोल होती है। इसी दौरान, बहुत से दोस्ताने दूर होने लगते हैं। लोगों के फोन नंबर बदलने लगते हैं। कुछ के शहर और देश भी। बहुतों से आप दूरी बनाने लगते हैं, या शायद दूसरी तरफ से लोगबाग दूर होने लगते हैं, जिस किसी वजह से। कोड की भाषा में इन्फेक्शन का खतरा? जो कोरोना के दौरान समझ आया। अगर आप कोई गुप्त जानकारी बाहर निकालने लगें तो उससे कुछ लोगों को इंफेक्शन का खतरा हो जाता है। इसलिए बहुत से अंजान और अनभिज्ञ लोगों को भी, आपसे दूर कर दिया जाता है। ताकी सही जानकारी उन तक ना पहुँचे। सिर्फ उतनी ही जानकारी दी जाए जो उन पार्टियों के अपने स्वार्थ के लिए जरूरी हो। यही है राजनीती का रंगमंच। 

इसी दौरान कुछ और फिल्में  इधर-उधर से हिंट के रूप में आती हैं। उनमें से एक है, DEJA VU। जब इंवेस्टीगेशन ही, या भी, जुर्म बन जाए?   

सोचो इतना कुछ होने पर भी news channels, वो सब सीधा-सीधा ना दिखाके, गुप्त भाषा में ही प्रशारित करें? धीरे-धीरे, एजेंडा-सेटर्स का भी जाल समझ आने लगता है। ये इधर हैं, वो उधर हैं, वो उधर हैं और वो उधर। कौन-सी दुनियाँ है ये? किस तरह के संसार में हैं, हम? और उस संसार की खबर भी, कहीं न कहीं, इन्हीं माध्यमों से होती है। मतलब दुनियाँ इतनी भी बुरी नहीं, मगर फिर भी इतनी गुप्त क्यों है और उसमें बदलाव उतना क्यों नहीं हो रहा, जितना होना चाहिए?

दुनियाँ एक कोढ़ है। कोडॉन वाला कोढ़। आपसे पहले भी शिकार हुए हैं और आपके बाद भी। और अगर कहीं न कहीं, इस गंदे धंधे वाले गुप्त युद्ध को रोका नहीं गया, कहीं न कहीं टेक्नोलॉजी पे लगाम नहीं लगी, तो आम-आदमी जैसे मरता रहा है, कीड़े-मकोड़ों की तरह, मरता ही रहेगा। और अहम बात ये, की उसे खबर भी नहीं होगी की हकीकत, "दिखाना है, बताना नहीं" से परे है। सीधा-सीधा षड्यंत्र (Implanting) के तरीके या गुप्त तरीकों से मानव-रोबोट घड़के या दोनों साथ-साथ प्रयोग करके।      

No comments:

Post a Comment