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Just another human being. Trying to understand molecules of life. Lilbit curious, lilbit adventurous, lilbit rebel, nature lover. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct. Sometimes feel like to read and travel. Profession revolves around academics, science communication, media culture and education technology. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Tuesday, October 10, 2023

R in g!? अखाड़ा? जुआ? या सिर्फ खेल?

 R in g!?

अखाड़ा?

जुआ? 

या सिर्फ खेल?  

अगर आप यहाँ, यहाँ घुमेंगे (online), जैसे मैं करती हूँ, तो फलाना-धमकाना website grey ही grey मिलेगी। Grey, मतलब, कुछ-कुछ स्लेटी? Silver के आसपास? मतलब वो कहना चाह रहे हैं, या शायद कह रहे हैं, कोई अभद्रता, किसी तरह की छेड़छाड़ या बलात्कार नहीं हुआ? जो हुआ, सब सामने वाले की इजाजत से हुआ? यही ना? हो सकता है, मुझे कुछ गलत समझ आया हो? आप सही कर सकते हैं। ऐसा कहने वाले मैथ्स प्रयोग करते हैं, शायद?  

(और भी कई तरह के कलर और चिन्ह या सिगनल हो सकते हैं, अलग-अलग वेबसाइट पे। जानेंगे उसके बारे में भी आगे किसी पोस्ट्स में)  


मैथ्स के साथ और भी बहुत कुछ प्रयोग होता है। वो भी पुलिस और न्ययालय की निगरानी में? दोनों तरफ, नीचता और गिरे हुए स्तर के उस पार का जुआ? जुआ या सिर्फ और सिर्फ खेल? ये कैसे न्ययालय या कैसी पुलिस? टेक्नोलॉजी के प्रयोग और दुरुप्रयोग (Use and Abuse of Tehnology). मतलब, पैसा और टेक्नोलॉजी हो तो कितना भी और कितनी भी तरह का गिरा हुआ, चु *@#$%^&+_ बना सकते हैं?    

कुछ गलत तो नहीं कह दिया मैंने साहब लोगो?  साहब लोगों से ही सीखा है, ऐसे लिखना भी। धन्यवाद करूँ क्या उनका ? या शायद अपनी औकात से बाहर जाकर, साहबों के खिलाफ, उन्हीं की जुबाँ में लिखना, एक अच्छे शिष्य की सही पहचान है। पढ़ा है कहीं।  लिखाई प्रभावित होती है, हर उस लिखाई से, जिसे हम पढ़ते हैं। शायद वैसे ही जैसे, जो हम देखते हैं, सुनते हैं या अनुभव करते हैं? हो सकता है, थोड़ा ज्यादा लिख दिया हो। क्यूँकि, इन सबके दुरूपयोग और इतने बड़े स्तर पर, इस राजनीतिक, टेक्नोलॉजी और पैसे के कंट्रोल को काबु न कर पाने की विवशता भी, काफी लोग यहाँ-वहाँ, जताते मिलते हैं।   

कई पोस्ट होंगी आगे, ऐसी-ऐसी टेक्नोलॉजी के आम-आदमी पर दुस्प्रभावोँ की। और क्यों जरूरी है, उन कंपनियों पर कम से कम, कुछ हद तक नकेल कसना। खासकर बड़ी-बड़ी कम्पनियों के शोषण पर। मुझे पढ़ने-लिखने की जगह पसंद है। तो ज्यादातर, ऐसी ही जगहों की ONLINE सैर पे होती हूँ। मुझे साफ-सुथरी, हरी-भरी, उन्नत और विकसित जगहें और देश पसंद हैं। उसके साथ-साथ, सीधा-सपाट बात करने वाले लोग। सही को सही और गलत को गलत कहने वाले लोग। चाहे फिर वो खुद आप ही क्यों न हों। हाँ। कुछ ऐसी ही जगहों की ONLINE सैर पे होती हूँ, मैं। आप खुद जब कम विकसित और पुरानी सदी में रहने वाले इलाके से आते हों, तो शायद और भी जरूरी हो जाता है। वक्त से ताल मिलाने के लिए, खुद आगे बढ़ने और आसपास को भी रस्ता दिखाने के लिए। 

आपकी ज्यादातर ज़िंदगी, जब एक खास तरह के माहौल में पली-बढ़ी हो तो शायद थोड़ा सा मुश्किल भी होता है, कभी-कभी तो शायद संवाद तक कर पाना, उसके विपरीत माहौल में। खासकर ऐसे विषयों पर, जिनका उन्हें ABC तक ना पता हो और कहें ना पता करना। या ऐसा कुछ है ही नहीं। तो शायद, ये माध्यम अच्छा है। Science Communication, आम-आदमी की भाषा में, ऐसे इलाकों के लिए ज्यादा जरूरी है। ऐसे लोगों को बताने और दिखाने के लिए, की दुनियाँ का बहुत बड़ा हिस्सा, आपकी दुनियाँ से बहुत अलग दुनियाँ में रहता है। और उसका कुछ हिस्सा, दूर बैठकर भी आप लोगों को कंट्रोल करता है। आपका शोषण करता है, वो भी आपकी जानकारी के बैगर। ऐसे में अज्ञानता नहीं, बल्की जानकारी ही उस कंट्रोल और शोषण से बचा सकती है। जैसे ऐसी बीमारियों के जाल में उलझ जाना, जो हों ही ना। और फिर खामखाँ के इलाजों पर घर लुटाना या अपने आदमी ही खो देना। ऐसे वाद-विवादों और झगड़ों का हिस्सा हो जाना, जो आपकी ज़िंदगी को उसी में उलझा के रख दें। आगे बढ़ाने की बजाए पीछे धकेल दें या धकेल रहे हों। 

सामान्तर केस मतलब, सामान्तर, हकीकत के नहीं। इसलिए, जो यहाँ खो गया या खत्म हो गया, वो वापस नहीं मिलता, हकीकत वालों की तरह। इसलिए बार-बार कहा जा रहा है, अपने आपको सामान्तर केस बनाने से बचाएँ। आप वो नहीं हैं, जो वो आपको बना रहे हैं या अनुभव करवा रहे हैं। दूर बैठकर भी, वो सब अनुभव करवाना ही रिमोट-कंट्रोल है, जिसकी ज्यादातर को जानकारी ही नहीं। इन रिमोट कंट्रोल के तौर-तरीकों और टेक्नोलॉजी की समझ या जानकारी ही उस शोषण से बचा सकती है। कैसे? जानते हैं आगे आने वाली पोस्ट्स में।      

(मुझे 15 वाले 2% में भी कोई रुची नहीं है, खासकर कोरोना को जान, देख और समझ कर। बल्की कहना चाहिए की नफरत हो गई है, ऐसे लोगों से।)  

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