त्यौहारों के रंग, राजनीती के संग? तथ्य, अपने-अपने तो रीती रिवाज़ भी अपने-अपने?
कहानियाँ, जो लिखी किसी ने। फिर पढ़ी किसी ने। फिर बढ़ी आगे ऐसे ही, पीढ़ी दर पीढ़ी। त्यौहार, जिनमें छुपी होती है, अच्छाई की जीत, बुराई पे। त्यौहार जिनपे होती है, साफ-सफाई घरों की, दफ्तरों की, आसपास की, मोहल्ले की। त्यौहार, जिनपे होती है साज-सज्जा, बनते हैं अच्छे-अच्छे पकवान। त्यौहार, जिनपे होते हैं लोगबाग खुश, और बँटती हैं खुशियाँ चारों और। यही जानते हैं ना हम सब, त्यौहारों के बारे में?
या फिर कुछ और भी?
त्यौहार जिनके बदलते हैं, किस्से और कहानियाँ वक़्त के साथ? त्यौहार, जिनकी बदलती हैं तारीखें, सत्ताधारी पार्टी के अनुसार? त्यौहार, जो सजते हैं और ढलते हैं, बाज़ारी ताकतों के अनुसार? त्यौहार, जिनके शुभ और अशुभ मुहूर्त निकलते हैं, सत्ताधारी पार्टी के अनुसार? त्यौहार, जिनके रीती-रिवाज़ बदलते हैं, राजनीतिक तथ्यों के अनुसार? त्यौहार, जिनके रूप, स्वरूप, किस्से होते हैं, अलग-अलग,अलग-अलग राज्यों या देशों में। कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे, जो हमारे भगत सिंह हैं वो उनके आतंकवादी? या जो उनके आतंकवादी हैं वो हमारे भगत सिंह? हम पूजें राम को और वो रावण को? हमारे मंदिरों में राम, तो उनके मंदिरों में रावण? इनका दश हरा तो उनका विजय दशमी? त्यौहार, रीती-रिवाज़ और बाजार? त्यौहार, रीती-रिवाज़ और राजनीती? हर त्यौहार पे, हर रीती-रिवाज़ पे, थोड़ा-सा संवाद जरूरी है, शायद? उनके बदलते रूप-स्वरूपों और उनके रीती-रिवाज़ों के, ढलते बाजारू ताकतों के इर्द गिर्द या राजनीती के अनुसार? जैसे किसी इंसान के दश सिर होना, तर्कसंगत नहीं है। वैसे ही, जैसे देवी या देवताओं के दो से अधिक हाथ होना। लिखने वालों ने कहानियों के किरदारों में कितनी कल्पना का प्रयोग किया होगा? और वक़्त के अनुसार, उनमें क्या-क्या नया जुड़ गया होगा? या जोड़ दिया गया होगा? या शायद कुछ पुराना मिट गया होगा या मिटा दिया गया होगा? शायद, धर्म या रीती-रिवाज़ पढ़ाते वक़्त, तर्कशील होना भी, शिक्षा का अहम उद्देश्य होना चाहिए।
तो आज जब आप रावण, मेघनाथ या कुम्भकरण के पुतले फूंकेंगे, उसके साथ अपने बच्चों को, उनके बारे में क्या बताएँगे? रावण के दश मुँह क्यों? या उन दश मुँहों से लेखक ने क्या कहना या बताना चाहा होगा? या हमें उनसे क्या शिक्षा लेनी चाहिए या अपने बच्चों को देनी चाहिए? श्री लंका या दक्षिण भारत या कई और देशों में रावण को क्यों पूजते हैं? और बाकी भारत या और कई और देशों में राम को क्यों? और भी कितने ही ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे, कितने ही तो प्रश्न हो सकते हैं। अगर आपको मौका मिले, तो आप किन-किन के पुतले फूँकना चाहेंगे? आपके भी अपने ही राम और रावण हो सकते हैं?
क्या फायदा इतने पुराने पुतलों के फुंकने का? आज के रावण ढूंढों और उनके पुतले फूंको। या शायद उन बुराईयों के, जो आप फूँकना चाहते हैं। ये सदियों पुराने तो कबके फुंके नहीं जा चुके?
तो इंटरनेट का एक फायदा ये भी है की हम, हर त्यौहार के बारे में कितना ही तो जान सकते हैं। और अपने बच्चों को सिर्फ अपने यहाँ वाला ज्ञान ना पेलकर, उनके, उनके और कितने ही तरह के ज्ञानों को पेलकर, हकीकत उनमें से खुद निकालो, वाले निचोड़ पे छोड़ सकते हैं।
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