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Thursday, April 11, 2024

पानी और सभ्यता?

किसी भी जीव-जंतु को कहीं भी रहने के लिए पानी, खाना, सुरक्षा, रहने की जगह और फलने-फूलने के अवसर अहम हैं। इनमें सबसे पहले है, पानी। अगर आप किसी भी मानव-सभ्यता या जीव-जन्तुओं या पेड़-पौधों के कहीं रहने या विस्थापन का अध्ययन करेंगे, तो पता चलेगा की पानी के स्त्रोतों के आसपास झुंडों के रुप में बसना अहम है। वो पानी का स्त्रोत कैसा है? मीठा है, कड़वा है, कितना कड़वा है? या प्रयोग करने लायक ही नहीं है? झीलों और नदियों के किनारे पुरानी सभ्यताओँ और शहरों का बसना यूँ ही नहीं है। ऑस्ट्रेलिया जैसे देश (महाद्वीप) को जानकार, इसे और अधिक समझा जा सकता है। जो महाद्वीप क्षेत्र के हिसाब से तो बहुत बड़ा है।  मगर, उसके बहुत ही थोड़े-से हिस्से पर ही, उसकी ज्यादातर आबादी या शहर बसते हैं। पानी के स्त्रोतों के आसपास। नदियों, झीलों या समुन्द्र के किनारे ज़्यादातर। पृथ्वी के बाकी महाद्वीपों में भी कुछ-कुछ ऐसा ही है। हालाँकि, सभ्यता और टेक्नोलॉजी के विकास के साथ-साथ, जहाँ पानी के स्त्रोत कम है या तक़रीबन रेगिस्तान जैसी जगहों पर भी, इंसान ने बस्तियाँ और बड़े-बड़े शहर बसाए हैं।      

इसमें ख़ास क्या है? कुछ भी नहीं। ये सब तो स्कूल जाने वाले बच्चे भी समझते हैं। समझते हैं? या सिर्फ़ पढ़ते हैं? दोनों में बहुत फर्क है। ठीक ऐसे ही, जैसे किसी भी समाज या देश की ज़्यादातर समस्याओँ के समाधान, स्कूल स्तर के ज्ञान-विज्ञान में ही हैं। उसके लिए आपको डॉक्टरेट या पोस्टडॉक्ट्रेट होने की जरुरत नहीं। मगर विड़ंबना ये, की उसके बावजूद, समाज का इतना बड़ा हिस्सा या तो गरीब है, या गरीबी के आसपास। जिसके पास आज तक मुलभूत सुविधाएँ तक नहीं हैं। क्यों? लालची पढ़े-लिखे और उसपे कढ़े शतीरों की वज़ह से? मीठे पानी के स्त्रोतों की जगहों को तो ये हड़प लेते हैं। या शायद कुछ कह सकते हैं, की इतना आसान नहीं है? बहुत कॉम्प्लेक्स विषय है? कुछ-कुछ ऐसे, जैसे आसान से आसान तथ्योँ या विषयों को भी खिचड़ी बना कर पेश करना, और कहना ये विषय सीधा-साधा नहीं है?  

पानी से ही खाना जुड़ा है और कृषि और उधोगों के फलने-फूलने के राज भी। पानी अपने आप में बहुत-सी बिमारियों की वज़ह भी है। पानी? या पानी का साफ़ ना होना? ये साफ़ ना होना, सिर्फ़ आपके घर के पानी की बात नहीं है। बल्की, आपके आसपास के पानी की बात भी है। वो पानी, जिसे आपके पशु-पक्षी या जीव-जंतु पीते हैं। वो पानी, जिसे आपके पेड़-पौधे लेते हैं। इन सबसे, ये किसी ना किसी रुप में आप तक भी पहुँचता है। हमने ज़मीन और उसके पानी को साफ़ रखने की बजाय, सिर्फ अपने घर के प्रयोग के पानी को साफ़ करने या रखने के साधन तो ढूँढ लिए। मगर भूल गए, इस सिर्फ़ अपने घर तक साफ़ पानी के चक्कर में, बाकी आसपास को भूल गए। हमने अपने घरों में जमीन से पेड़-पौधे उखाड़ कर, गमले रख लिए। और तालाब, जोड़ों को खत्म कर या सुखा कर या घेर कर, अपने मुँडेरों या छत्तों पर, पक्षियोँ के लिए छोटे-छोटे कटोरे रख दिए। कितने दानी हो गए ना हम? कुछ-कुछ ऐसे, जैसे, किसी का घर छीन कर, जेल में धकेलना।  

मगर भूल गए। ऐसा करके हमने कितनी बिमारियाँ पाल ली? वातावरण को कितना नुकसान पहुँचा दिया? गमले में आप पेड़-पौधे तो सजा लेंगे, लेकिन क्या वो वैसे ही पनप पाएँगे या फल-फूल पाएँगे, जैसे जमीन के पेड़-पौधे? गमलों में उनको अपने आप फैलने या फलने-फूलने की जगह कहाँ है? वो बड़े होकर भी, आप पर ही आश्रित होंगे। कुछ तो और भी महान हैं। बहुत ही छोटे-छोटे से गमलों में ही, कई-कई, पेड़-पौधे लगा दिए। कईयों ने एक ही गमले में कई तरह के। अरे महान किसानों, आप भूल गए की पेड़-पौधों को एक दूरी पर क्यों लगाया जाता है? कैसे पेड़-पौधों को एक साथ लगा सकते हैं और वो एक दूसरे को बढ़ाने में सहायता करेंगे? और कैसे पेड़-पौधे एक साथ लगाने पर, एक-दूसरे को पनपने नहीं देंगे? अब इसके लिए डॉक्टरेट या पोस्ट-डॉक्टरेट की डिग्री कहाँ चाहिए? ये तो स्कूल बच्चोँ तक को पढ़ाया जाता है। नहीं? मगर शायद समझाया नहीं जाता? ज्यादातर टीचर्स भी सिर्फ रटवाने का काम करते हैं और बच्चों को चूहा-दौड़ का हिस्सा बना देते हैं। बच्चे एक-दो नंबर कम आने पे स्ट्रेस लेते हैं, मगर उसे सिर्फ पेपरों तक ही याद रख पाते हैं। जैसे किसी इंजीनियरिंग की Night Before Fight हो। 

ठीक ऐसे ही, जैसे जब आपने अपने आसपास के पानी के खुले संसांधनों, जैसे तालाब-जोड़ों को सूखा दिया या हड़प लिया, तो वातावरण में जो अपने आप वाष्प बनकर पानी जाता था और आपके आसपास के वातावरण के तापमान को कम रखता था। साफ़-सुथरा होकर वापस बरसता था, उसे बंद कर दिया। इसका प्रभाव? सूरज का तीख़ापन भी बढ़ गया। वातावरण बिल्कुल सूखा होगा तो क्या होगा? सूरज की वही पहले वाली किरणे, अब चुभने लगेंगे। शरीर के लिए घातक होंगी और कितनी ही बीमारियाँ आप तक मुफ़्त में परोसेंगी। इनमें न सिर्फ़ तवचा की बीमारियाँ अहम हैं, बल्की, बहुत-सी ऐसे सूखे और धूलभरे मौसम की एलर्जीज़ भी। जो पहले या तो थी ही नहीं, या बहुत ही कम होती थी और बहुत ही कम वक़्त के लिए होती थी।   

इन सबमें तड़के का काम किया है, आज की टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग ने

और बढ़ते सुख-सुविधाओँ के गलत तौर-तरीकों ने। व्हीकल्स, ए.सी. (AC), घर बनाने में सीमेंट और लोहे का बढ़ता चलन। मगर, घर की ऊँचाई का कम और दिवारों का पतला होते जाना। खिड़की, दरवाजों का छोटा और कम होते जाना। बरामदों का खत्म होना। घरों का छोटा होना। पेड़-पौधों का घरों में ख़त्म होना। घरों में खुले आँगनों का छोटा होते जाना। सर्फ़, साबुन, शैम्पू, कीटनाशक, अर्टिफिशियल उर्वरक, हार्पिक, डीओज़, ब्यूटी पार्लर प्रॉडक्ट्स आदि का बढ़ता तीखा और ज़हरीला असर। और भी ऐसे-ऐसे कितने ही, गलत तरीक़े या बुरे प्रभाव या ज़हर। तो क्या इन सबका प्रयोग ना करें? जँगली बनकर रहें? करें, मग़र सही तरीके-से और सोच-समझ कर। ये जानकर, की कितना और कैसे प्रयोग करें। इतना प्रयोग ना करें, की वो जहर बन जाए। जितना इनका प्रयोग करें, उतना ही इनके दुस्प्रभावोँ को कम से कम करने के उपाय भी करें। कैसे? आगे पोस्ट में। 

इकोलॉजी (Ecology) और बिमारियों की जानकारी?

इकोलॉजी (Ecology), आपका अपने आसपास से रिस्ता या यूँ कहो, की जिस किसी जीव या निर्जीव के संपर्क में आप आते हैं, या जो कुछ भी आपके आसपास है, उसका आप पर या उस पर आपका प्रभाव। इसमें आपके आसपास जो कुछ भी है, वो सब आ जाता है। हवा, पानी, खाना-पीना, इंसान, जीव-जंतु, कीट-पतंग, पेड़-पौधे, घर या बाहर का सामान, अड़ोस-पड़ोस, मोहल्ले, समाज में कैसे भी बदलाव। जीव या निर्जीवों का आना या जाना। और भी कितना कुछ। यही सब सोशल मीडिया कल्चर है। किसी भी जगह के जीव-जंतुओं का आगे बढ़ने का या रुकावट का माध्यम। बड़ी-सी माइक्रोबायोलॉजी लैब। या कहीं का भी सिस्टम।      

मैंने अपने घर और आसपास के बच्चों की कुछ बिमारियों (या लक्षणों?) को जानने की कोशिश की थी, कुछ साल पहले। ये सब शुरू हुआ था, की पैदाइशी अगर किसी बच्चे के बाल सीधे, सिल्की और भूरे हैं, तो कुछ साल बाद ही, वो घुँघराले, खुरदरे (Rough) जैसे, और काले हो सकते हैं? और ऐसा होते ही, बच्चे का हुलिया ही कुछ और ही नज़र आने लगेगा? ऐसे ही जैसे, अगर किसी बच्चे के बाल पैदायशी घुँघराले और काले हैं, तो कुछ साल बाद ही वो सीधे, कम काले और सिल्की हो सकते हैं? यहाँ फिर से हुलिया अलग ही नज़र आने लगेगा। अब जितना जैनेटिक्स पढ़ी हुई थी, उसके हिसाब से तो ऐसा नहीं हो सकता। हाँ। वातावरण में बदलाव, खाने-पीने में बदलाव या आर्टिफिसियल तरीके से ऐसा संभव है। अर्टिफिशियल तरीके से कैसे? इनके माँ-बाप ही पार्लर नाम मात्र जाते हैं, वो भी किसी ख़ास प्रोग्राम पे ही। तो बच्चोँ का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। ये मेरी अपनी भतीजी और भांजी का केस था, तो तहक़ीकात थोड़ी और शुरू कर दी। 

भाभी ज़िंदा थे उन दिनों। माँ और भाभी से बात हुई, तो माँ ने बोला, ऐसे ही थे बचपन से। भाभी ने बोला, नहीं थोड़े बदल गए लगता है। उसपे माँ ने थोड़ा और जोड़ दिया, की भाई के भी शायद ऐसे ही हैं। जब मैंने कहा, की घर में तो ऐसे किसी के नहीं है, तो कैसे हो सकता है? जितना मुझे मालूम है, तो रिश्तेदारों में भी नहीं है। यहाँ सीधे से, घुँघराले होने लगे थे। भाभी ने इसपे कहा, शायद मेरी माँ पे हैं। उनके जड़ों से तो सीधे हैं, मगर थोड़े बड़े होने पे घुँघराले होने लगते हैं। मुझे भाभी और माँ, दोनों के ही तर्क, बेतुके लग रहे थे। माँ को बोला, आपको इतना तक पता नहीं, की आपके लाडले के बाल कैसे हैं? और उन्होंने डाँट दिया मुझे, जैसे हैं, ठीक हैं। दिमाग़ मत खाया कर, हर बात पे, खामखाँ में। भाभी हंसने लगे। और कर लो बहस। मैंने भाभी को कहा, की एक बार एल्बम लाना। माँ ने मेरी तरफ घूर कर देखा। और भाभी ने कहा, पता नहीं दीदी कहाँ पड़ी है एलबम,  ढूँढ़नी पड़ेगी। 

मैं घर आ गई, भाई के घर से। अपनी एल्बम निकाली, जिसमें भाई और गुड़िया की अलग-अलग वक़्त की फोटो थी। अब शक और बढ़ गया, की कुछ तो गड़बड़ घोटाला है। क्यूँकि, दोनों में से किसी के बाल घुँघराले नहीं थे।      


अब पहुँची मैं ऑन्टी के पास। जिनका घर भाई के साथ ही लगता है। उनसे भांजी के बारे में बात हुई तो बोले, हाँ बचपन में तो ऐसे नहीं थे, अब बदलने लगे। यहाँ घुंघराले से, सीधे होने लगे थे। जाने क्यों, अब मुझे छोटी बहन (चाचा की लड़की) के बालों पे भी शक होने लगा। जिसके बाल घुँघराले जैसे-से हैं। मगर मेरे पास उसकी बचपन की कुछ फोटो हैं, जिनमें सीधे हैं। ये भी कुछ-कुछ ऐसा था शायद, जैसे भाभी ने अपनी माँ के बालों के बारे में बोला? इसी दौरान ऑनलाइन कुछ सर्च कर रही थी और किसी फ़ोटो को देखकर फिर से थोड़ा शंशय। ये अंकल की फोटो थी, जिसमें उनके बाल घुँघराले लग रहे थे। मुझे ऐसा कुछ ध्यान नहीं। शायद कभी ध्यान ही नहीं दिया। 

फिर से एक दिन अंकल के घर थी और वही फोटो सामने देख रुक गई। पर ये तो यहाँ बहुत सालों से थी। मतलब, हम बहुत-सी बातों पर सामने होते हुए भी, ध्यान नहीं देते। क्यूँकि, जरुरत ही नहीं होती। ये तो जब जरुरत महसूस हो, तभी ध्यान जाता है। मैंने फिर से ऑन्टी से पूछा, की अंकल की ये फोटो कब की है? क्या अंकल के बाल घुँघराले थे? वो फोटो शायद, उनके आखिरी दिनों के आसपास की होगी। और उन्होंने बताया की घुँघराले तो नहीं थे। 

टेक्नोलॉजी का गलत प्रयोग?  

क्यूँकि, खुद की मेरी कितनी ही फोटो, पता ही नहीं कैसे-कैसे ख़राब की हुई थी और ऐसा ही बहुत-सी गुड़िया के केस में था। चलो फोटो में बदलाव तो समझ आते हैं, वो भी आज के युग में। मगर, जो वो सामने गुड़िया और भांजी के बालों के साथ हो रहा था, वो क्या था? ये उस दुनियाँ की सैर करवाने वाला था, जो कितने ही चाहे-अनचाहे बदलावों के और बिमारियों के राज खोलने वाला था।  

जानकारी या ज्ञान-विज्ञान का गलत प्रयोग? और राजनीती के तड़के। 

मतलब, छोटी से छोटी चीज़, जो आपके आसपास बदल रही है, वो कहीं ना कहीं, किसी ना किसी रुप में आपको और आसपास के जीवों को प्रभावित कर रही है। वो फिर चाहे खाना-पीना है या ऐसा कोई भी उत्पाद, जो आप नहाने-धोने में या अपनी या अपने आसपास की किसी भी प्रकार की सफ़ाई में प्रयोग कर रहे हैं। और भी अहम, उसे आप किससे या कहाँ से ले रहे हैं? वो चाहे आपके कपड़ो का या बालों का स्टाइल का तरीका है या उनमें प्रयोग होने वाले उत्पादों के किस्म और प्रकार। वो चाहे आपकी हवा का रुखा-सूखा, धूल-भरा या साफ़ होना है या उसमें पानी की अलग-अलग मात्रा। वो आपके आसपास के तापमान का तीख़ापन है या सुहावना होना। वो आपके घर की शाँति है या लड़ाई-झगड़ों का बढ़ना। वो आपके ज़मीनी पेड़-पौधों का बदलना है या अच्छे से फलना-फूलना। वो आपके घर के पेड़-पौधों का इस जगह से, उस जगह खिसकना है या बाहर कहीं जाना। वो आपके ज़मीनी पेड़-पौधों का मरना है और सिर्फ गमलों वाले पौधों का ही जीवित रह जाना। वो आपके छोटे से छोटे गमलों में भी एक पौधे का होना है या उसमें भी दो, तीन या ज्यादा पेड़-पौधों का होना। वो एक ही, वो भी छोटे से गमले में भी, एक ही तरह के पेड़-पौधे का होना है या उसमें भी कई तरह के पेड़-पौधों का एक साथ लगा देना। वो आपके आसपास के कीट-पतंगों का बदलना है? या कुत्ते, बिल्लियों का सिर्फ एक, दो ना होकर कई सारे, पता ही नहीं कहाँ-कहाँ से अचानक आना शुरू हो जाना। और फिर अचानक से ग़ायब हो जाना। इनमें से बहुत कुछ अपने आप नहीं होता। बल्की, धकाया हुआ या जबरदस्ती लाया हुआ होता है। वो फिर बंदरों के झुंड हों या गाय-भैंसों के। वो फिर टिड़ियों के दल हों या अलग-अलग तरह की चिड़ियों के। अपने आसपास में हो रहे या किए जा रहे बुरे या भले बदलावों को समझना शुरू करो। बहुत कुछ समझ आएगा। बिमारियों को होने से रोकने के या होने पर ईलाज के समाधान डॉक्टरों के पास नहीं, आपके अपने पास या आसपास हैं। डॉक्टर तो तब के लिए होते हैं, जब बीमारी लाईलाज हो जाए। और वहाँ भी ज़्यादातर केसों में, जाने या अंजाने बढ़ती हैं, कम नहीं होती। 

इकोलॉजी (Ecology) और बिमारियों की जानकारी? (Social Tales of Social Engineering)

इकोलॉजी (Ecology), आपका अपने आसपास से रिस्ता या यूँ कहो, की जिस किसी जीव या निर्जीव के संपर्क में आप आते हैं, या जो कुछ भी आपके आसपास है, उसका आप पर या उस पर आपका प्रभाव। इसमें आपके आसपास जो कुछ भी है, वो सब आ जाता है। हवा, पानी, खाना-पीना, इंसान, जीव-जंतु, कीट-पतंग, पेड़-पौधे, घर या बाहर का सामान, अड़ोस-पड़ोस, मोहल्ले, समाज में कैसे भी बदलाव। जीव या निर्जीवों का आना या जाना। और भी कितना कुछ। यही सब सोशल मीडिया है। किसी भी जगह के जीव-जंतुओं का आगे बढ़ने का या रुकावट का माध्यम। बड़ी-सी माइक्रोबायोलॉजी लैब। या कहीं का भी सिस्टम।      

मैंने अपने घर और आसपास के बच्चों की कुछ बिमारियों (या लक्षणों?) को जानने की कोशिश की थी, कुछ साल पहले। ये सब शुरू हुआ था, की पैदाइशी अगर किसी बच्चे के बाल सीधे, सिल्की और भूरे हैं, तो कुछ साल बाद ही, वो घुँघराले, खुरदरे (Rough) जैसे, और काले हो सकते हैं? और ऐसा होते ही, बच्चे का हुलिया ही कुछ और ही नज़र आने लगेगा? ऐसे ही जैसे, अगर किसी बच्चे के बाल पैदायशी घुँघराले और काले हैं, तो कुछ साल बाद ही वो सीधे, कम काले और सिल्की हो सकते हैं? यहाँ फिर से हुलिया अलग ही नज़र आने लगेगा। अब जितना जैनेटिक्स पढ़ी हुई थी, उसके हिसाब से तो ऐसा नहीं हो सकता। हाँ। वातावरण में बदलाव, खाने-पीने में बदलाव या आर्टिफिसियल तरीके से ऐसा संभव है। अर्टिफिशियल तरीके से कैसे? इनके माँ-बाप ही पार्लर नाम मात्र जाते हैं, वो भी किसी ख़ास प्रोग्राम पे ही। तो बच्चोँ का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। ये मेरी अपनी भतीजी और भांजी का केस था, तो तहक़ीकात थोड़ी और शुरू कर दी। 

भाभी ज़िंदा थे उन दिनों। माँ और भाभी से बात हुई, तो माँ ने बोला, ऐसे ही थे बचपन से। भाभी ने बोला, नहीं थोड़े बदल गए लगता है। उसपे माँ ने थोड़ा और जोड़ दिया, की भाई के भी शायद ऐसे ही हैं। जब मैंने कहा, की घर में तो ऐसे किसी के नहीं है, तो कैसे हो सकता है? जितना मुझे मालूम है, तो रिश्तेदारों में भी नहीं है। यहाँ सीधे से, घुँघराले होने लगे थे। भाभी ने इसपे कहा, शायद मेरी माँ पे हैं। उनके जड़ों से तो सीधे हैं, मगर थोड़े बड़े होने पे घुँघराले होने लगते हैं। मुझे भाभी और माँ, दोनों के ही तर्क, बेतुके लग रहे थे। माँ को बोला, आपको इतना तक पता नहीं, की आपके लाडले के बाल कैसे हैं? और उन्होंने डाँट दिया मुझे, जैसे हैं, ठीक हैं। दिमाग़ मत खाया कर, हर बात पे, खामखाँ में। भाभी हंसने लगे। और कर लो बहस। मैंने भाभी को कहा, की एक बार एल्बम लाना। माँ ने मेरी तरफ घूर कर देखा। और भाभी ने कहा, पता नहीं दीदी कहाँ पड़ी है एलबम,  ढूँढ़नी पड़ेगी। 

मैं घर आ गई, भाई के घर से। अपनी एल्बम निकाली, जिसमें भाई और गुड़िया की अलग-अलग वक़्त की फोटो थी। अब शक और बढ़ गया, की कुछ तो गड़बड़ घोटाला है। क्यूँकि, दोनों में से किसी के बाल घुँघराले नहीं थे।      


अब पहुँची मैं ऑन्टी के पास। जिनका घर भाई के साथ ही लगता है। उनसे भांजी के बारे में बात हुई तो बोले, हाँ बचपन में तो ऐसे नहीं थे, अब बदलने लगे। यहाँ घुंघराले से, सीधे होने लगे थे। जाने क्यों, अब मुझे छोटी बहन (चाचा की लड़की) के बालों पे भी शक होने लगा। जिसके बाल घुँघराले जैसे-से हैं। मगर मेरे पास उसकी बचपन की कुछ फोटो हैं, जिनमें सीधे हैं। ये भी कुछ-कुछ ऐसा था शायद, जैसे भाभी ने अपनी माँ के बालों के बारे में बोला? इसी दौरान ऑनलाइन कुछ सर्च कर रही थी और किसी फ़ोटो को देखकर फिर से थोड़ा शंशय। ये अंकल की फोटो थी, जिसमें उनके बाल घुँघराले लग रहे थे। मुझे ऐसा कुछ ध्यान नहीं। शायद कभी ध्यान ही नहीं दिया। 

फिर से एक दिन अंकल के घर थी और वही फोटो सामने देख रुक गई। पर ये तो यहाँ बहुत सालों से थी। मतलब, हम बहुत-सी बातों पर सामने होते हुए भी, ध्यान नहीं देते। क्यूँकि, जरुरत ही नहीं होती। ये तो जब जरुरत महसूस हो, तभी ध्यान जाता है। मैंने फिर से ऑन्टी से पूछा, की अंकल की ये फोटो कब की है? क्या अंकल के बाल घुँघराले थे? वो फोटो शायद, उनके आखिरी दिनों के आसपास की होगी। और उन्होंने बताया की घुँघराले तो नहीं थे। 

टेक्नोलॉजी का गलत प्रयोग?  

क्यूँकि, खुद की मेरी कितनी ही फोटो, पता ही नहीं कैसे-कैसे ख़राब की हुई थी और ऐसा ही बहुत-सी गुड़िया के केस में था। चलो फोटो में बदलाव तो समझ आते हैं, वो भी आज के युग में। मगर, जो वो सामने गुड़िया और भांजी के बालों के साथ हो रहा था, वो क्या था? ये उस दुनियाँ की सैर करवाने वाला था, जो कितने ही चाहे-अनचाहे बदलावों के और बिमारियों के राज खोलने वाला था।  

जानकारी या ज्ञान-विज्ञान का गलत प्रयोग?

मतलब, छोटी से छोटी चीज़, जो आपके आसपास बदल रही है, वो कहीं ना कहीं, किसी ना किसी रुप में आपको और आसपास के जीवों को प्रभावित कर रही है। वो फिर चाहे खाना-पीना है या ऐसा कोई भी उत्पाद, जो आप नहाने-धोने में या अपनी या अपने आसपास की किसी भी प्रकार की सफ़ाई में प्रयोग कर रहे हैं। और भी अहम, उसे आप किससे या कहाँ से ले रहे हैं? वो चाहे आपके कपड़ो का या बालों का स्टाइल का तरीका है या उनमें प्रयोग होने वाले उत्पादों के किस्म और प्रकार। वो चाहे आपकी हवा का रुखा-सूखा, धूल-भरा या साफ़ होना है या उसमें पानी की अलग-अलग मात्रा। वो आपके आसपास के तापमान का तीख़ापन है या सुहावना होना। वो आपके घर की शाँति है या लड़ाई-झगड़ों का बढ़ना। वो आपके ज़मीनी पेड़-पौधों का बदलना है या अच्छे से फलना-फूलना। वो आपके घर के पेड़-पौधों का इस जगह से, उस जगह खिसकना है या बाहर कहीं जाना। वो आपके ज़मीनी पेड़-पौधों का मरना है और सिर्फ गमलों वाले पौधों का ही जीवित रह जाना। वो आपके छोटे से छोटे गमलों में भी एक पौधे का होना है या उसमें भी दो, तीन या ज्यादा पेड़-पौधों का होना। वो एक ही, वो भी छोटे से गमले में भी, एक ही तरह के पेड़-पौधे का होना है या उसमें भी कई तरह के पेड़-पौधों का एक साथ लगा देना। वो आपके आसपास के कीट-पतंगों का बदलना है? या कुत्ते, बिल्लियों का सिर्फ एक, दो ना होकर कई सारे, पता ही नहीं कहाँ-कहाँ से अचानक आना शुरू हो जाना। और फिर अचानक से ग़ायब हो जाना। इनमें से बहुत कुछ अपने आप नहीं होता। बल्की, धकाया हुआ या जबरदस्ती लाया हुआ होता है। वो फिर बंदरों के झुंड हों या गाय-भैंसों के। वो फिर टिड़ियों के दल हों या अलग-अलग तरह की चिड़ियों के। अपने आसपास में हो रहे या किए जा रहे बुरे या भले बदलावों को समझना शुरू करो। बहुत कुछ समझ आएगा। बिमारियों को होने से रोकने के या होने पर ईलाज के समाधान डॉक्टरों के पास नहीं, आपके अपने पास या आसपास हैं। डॉक्टर तो तब के लिए होते हैं, जब बीमारी लाईलाज हो जाए। और वहाँ भी ज़्यादातर केसों में, जाने या अंजाने बढ़ती हैं, कम नहीं होती। 

Wednesday, April 10, 2024

शक्ति की रैली पीटना?

शक्ति, औरत है? पुरुष है? या LGBT? वैसे, ये LGBT कोढ़ क्या है?

बच्चा या बच्ची है? युवा है, या बुज़ुर्ग? इंसान है? शैतान है? भगवान है? भगवानी है? कोई देव या देवी? आप शक्ति को किस रुप में मानते या जानते हैं? पवित्र है? अपवित्र है? पूजनीय है या अपूजनीय? किसी का बेटा है या बेटी? किसी की माँ है या बाप? किसी की बहन है या भाई? किसी की पत्नी है या पति? किसी एक की है या अनेक की? और भी कितने ही ऐसे प्रश्न हो सकते हैं। 

राजनीती वाले, इधर वाले या उधर वाले, किस शक्ति की रैली पीट रहे हैं? इधर वाले या उधर वाले? आप राजनीती के गढ़े भगवानों, अवतारों, छलियों, शैतानों या इंसानों को मानते हैं? या आपका अपना भी कोई मत है? या उनके कहने या उकसाने पर लोगों की रैलियाँ पीटते हैं ? (जो ज़्यादातर जाने-अंजाने, आप अपनी खुद की पीट रहे होते हैं।)

या ऐसे उकसावों और भडावों से दूर रहते हैं?

मान लो, कोई शक्ति पुरुष है और अपनी पत्नी को लेकर कहीं जा रहा है। तो कोई कहे, ये दो को कहाँ ले चला? या ये आधे-आधे टुकड़े कहाँ ले चला? हकीकत में वो चाहे, एक को ही ले जा रहा हो। क्यूँकि, शायद ऐसे लोगों के लिए शक्ति पुरुष नहीं औरत है। शायद माँ है, बहन है, बुआ है या बेटी है। या शायद पत्नी है। इधर वालों ने भी शक्ति की रैली पीट दी और उधर वालों ने भी। सिर्फ़ किसी राजनीतिक पार्टी के भड़काओं या उकसावों पे। क्यूँकि, राजनीती का काम यही है। नहीं तो किसी के भगवानों या भगवानियों, देव या देवियों या आमजन के निजी रिश्तों से राजनीती का क्या लेना-देना? 

और आपको पता है, की ऐसे-ऐसे भड़कावे या उकसावे आपकी जानकारी के बिना, आपके अपने घरों में लड़ाई-झगड़ों की ही वजह नहीं बनते, बल्कि बीमारियों की अहम कड़ियाँ (प्रकिर्या का हिस्सा) भी बनते हैं। कैसे? जानते हैं आगे कुछ पोस्ट में।   

चुनाव या धंधा-प्रदर्शन, बहिष्कार।

1. On 

2. Off (Experimented) 

3. Over (Experimented) 

4. Control Freak (Elections?) (Experimented, hence prooved?) 

या छलावों और बेहुदगी की सब हदें पार? इनके एक्सपेरिमेंट्स कभी ख़त्म नहीं होते। लोगों की ज़िंदगियाँ ख़त्म हो जाती है।  

ऊप्पर दी गई सीरीज कहीं और, कुछ और भी हो सकती है।  

अगर आपको समझ आए की चुनाओं का मतलब ये है? मानव सभ्यता की सब हदें पार करके भी, लोगों को बेहुदा एक्सपेरिमेंट्स की तरफ धकेलना? तो आप आमजन, क्या ऐसे बेहुदा धंधा-प्रर्दशन का हिस्सा होना चाहेंगे? वो चाहे फिर Remote Controlled EVM हों या बैलट पेपर।  

ऐसे चुनाओं का बहिष्कार करो। वो जो कुर्सियों पर तानाशाह विराजमान हो गए हैं, उनको उनसे उतारने के कोई और रस्ते ढूँढो। वो जो कोई भी पार्टी, ऐसे या वैसे धंधे में शामिल है, उनसे भी मुक्ति के रस्ते तलाशो।   

मुझे जबसे ये बेहुदा धंधा समझ आया है, मैंने तो वोट डालने जाना ही छोड़ दिया। ऐसे बेहुदा धंधों और ऐसे बेहुदा धंधों के माध्यम से, अपने प्रतिनिधि चुनने का वक़्त मेरे पास तो नहीं है। आपके पास है, इतने घटिया धंधे का हिस्सा होने का वक़्त? और फिर ऐसे चुने गए प्रतिनिधियों को झेलने का वक़्त? ऐसे चुनकर आए प्रतिनिधि क्या करेंगे? सिर्फ और सिर्फ तमाशे। ऐसे चुनावों ने पुरे समाज को तमाशाघर बना दिया है। एक ऐसा तमाशा समाज, जो बच्चों को बक्श रहा है ना बुजर्गों को।            

आपका सिस्टम क्या है? और कैसा है? (Social Tales of Social Engineering 41)

आप कहाँ रहते हैं? और कैसे लोगों के बीच रहते हैं? 

कितना फर्क पड़ता है इससे? सारा फर्क इसी से पड़ता है। 

अगर आप ठाली लोगों के बीच हैं, जिनके पास करने-धरने को कुछ नहीं है। इतना तक नहीं की वो अपना काम ही खुद कर सकें या घर में ही कोई सहायता करते हों। तो मान के चलो, की आप बहुत ख़तरनाक लोगों के बीच हैं। ऐसे लोग खुद तो Use और Abuse होते ही हैं। अपने आसपास वालों को भी करते हैं, या करवाते हैं। इतने ठाली वाले लोगों का, भद्दी और बेहुदा राजनीतिक पार्टियाँ, बड़ी ही आसानी से दुष्प्रयोग करती हैं। 

मान लो, किसी घर या घरों को ख़त्म करना हो। उसमें ऐसे लोग, बड़ी अहम भुमिका निभाते हैं। वो भी ज़्यादातर युवा। पढ़े-लिखे शातीर और उसपे किसी भी तरह की खुंदक रखने वाले लोग, ऐसे लोगों को अपने कब्ज़े में कर लेते हैं। वो भी ज्यादातर दूर बैठे, कुछ सुरंगों के माध्यम से। अगर आप पढ़े-लिखे हैं, तो लोगों को आगे बढ़ाने का भी काम कर सकते हैं। मगर, भद्दी और बेहुदा राजनीती में ऐसा नहीं होता। वो जो उन्हें आगे बढ़ाने की बात करें, उन्हीं से दूर कर देते हैं। यही नहीं, ऐसे लोगों को उल्टे-सीधे कामों में भी प्रयोग करते हैं। और ज़्यादातर घरों में बेवज़ह के लड़ाई-झगड़े की वजह भी यही होते हैं। ज़्यादातर घरों को आर्थिक रुप से कमज़ोर रखने की वजह भी यही लोग होते हैं। मतलब, ये वो भद्दी और बेहुदा राजनीती है, जो समाज को आगे बढ़ाने का नहीं, बल्की पीछे धकेलने का काम करती है।       

आपका घर कहाँ है?

आपका घर कहाँ है?

ये प्रश्न 

"बेचारे तबकों" में शायद हर औरत का है? 

नहीं। 

हर बेहद गरीब इंसान का है? 

फिर इससे फर्क नहीं पड़ता 

की आप लड़की हैं या लड़का 

अगर लड़की हैं तो 

इससे भी फर्क नहीं पड़ता 

की आप दादी हैं?

माँ हैं?

बुआ हैं?

बहन हैं?

बेटी हैं?

या बहु? 

अगर आप लड़का हैं तो भी 

कुछ-कुछ ऐसा ही है। 

फिर किससे फर्क पड़ता है?

दादागिरी से?

गुंडागर्दी से?

सभ्यता से?

संस्कारों से? 

रीती-रिवाज़ों से?

या? 

आप कहाँ रहते हैं? 

और कैसे लोगों के बीच रहते हैं, शायद इससे?

Tuesday, April 9, 2024

आप कहाँ पे हैं? (Geolocation?)

आप कहाँ पे हैं?

आप किस पोज़िशन में हैं?

क्या कर रहे हैं?

बैठे हैं? खड़े हैं? लेटे हैं? क्या काम कर रहे हैं? आपके साथ या आसपास कौन-कौन हैं? आपसे कितनी दूरी पर या कितना पास हैं? वो क्या कर रहे हैं? आपने क्या पहना हुआ है? या नहीं पहना हुआ है? जो पहना हुआ है, वो साफ़ है या गन्दा है? कब पहना था? आपके आसपास का तापमान क्या है? आपके शरीर का तापमान क्या है? उसमें किस वक़्त कितना हेरफेर होता है? आपका ब्लड प्रेशर क्या है? आपको कितना पसीना आता है या नहीं? कब आता है और कब नहीं? आप कितनी देर में नहाधो के बाथरुम से बाहर निकलते हैं? कितना हगते हैं या मूतते हैं और कितनी देर? आपके पसीने, पोट्टी, या मूत का रंग या कॉन्टेंट कॉम्बिनेशन कैसा होता है? आप पुरे दिन में क्या कुछ खाते या पीते हैं? कितनी बार और किस मात्रा में? आप कितनी बार ब्रश या गार्गलेस करते हैं या मुँह साफ़ करते हैं? अपने शशीर की हर तरह की साफ़-सफाई के लिए कैसे-कैसे और कौन कौन से उत्पादों का प्रयोग करते हैं? आपके यहाँ का हवा, पानी या खाना कैसा है? साफ है या प्रदूषित है? 

आपको कौन-कौन सी बीमारी हैं? 

आप कौन सी भाषा बोलते हैं? या कितनी भाषाओँ का प्रयोग करते हैं या जानते हैं? आपका बोलने का तरीका या लहज़ा क्या है? धीरे बोलते हैं, तेज बोलते हैं? आराम से बोलते हैं या गुस्सा करते हैं? सभ्य भाषा का प्रयोग करते हैं या गाली-गलौच भी आपकी भाषा का हिस्सा है? आप प्यार से बोलते हैं या डाँट-डपट के? किन्हें प्यार से बोलते हैं और किन्हें डाँट-डपट के? आपके यहाँ या आसपास झगड़ा भी होता है? किसका? क्यों? और किन बातों पे? आपका झगड़ा जुबानी बहस तक रहता है या मार-पिटाई भी अक्सर उसका हिस्सा होता है? अगर हाँ तो क्यों? और किसके या किनके साथ? 

आपका पहनावा या वेश भूषा क्या है? कहाँ से लेते हैं या सिलवाते हैं?  

आप कितने पढ़े लिखे हैं? क्या करते हैं? कितना वक़्त खाली बिताते हैं और कितना किसी काम-धाम में व्यस्त रहकर? कौन-से और कैसे कामों में आपका ज्यादातर वक़्त बितता है? अपने घर आसपास या रिश्तेदारों से या दोस्तों के कितना सम्पर्क में रहते हैं? कितना वक़्त अपने अहम रिश्तों को देते हैं? और कितना उससे बाहर के लोगों को? आप अपने या आसपास के लोगों का भला चाहते हैं या बुरा? किससे या किनसे खुंदक रखते हैं? कितना वक़्त उस खुंदक को देते हैं? कितना अपना या आसपास का भला करने में? खुद के लिए कितना वक़्त होता है? होता भी है, या नहीं होता? कितना वक़्त औरों को देते हैं? 

आप कितना कमाते हैं? उसका कितना हिस्सा खुद पे खर्च करते हैं और कितना औरों पे? आप कितना आत्मनिर्भर हैं और कितना दूसरों पर निर्भर? या कितने दूसरे आप पर निर्भर? कितना आप औरों के काम आते हैं या और आपके काम आते हैं? आप लेते अधिक हैं या देते अधिक हैं? या कोई बैलेंस ही नहीं है? जिनके आप काम आते हैं, वो आपके कितना काम आते हैं? या जो आपके काम आते हैं, उनके आप कितना काम आते हैं?

इसमें और कितना भी जोड़ सकते हैं। वो सब भी जो खुद आपको या आपके अपनों को भी अपने बारे में नहीं पता। दुनियाँ जहाँ में दूर बैठे कितने ही लोग आपके बारे में इतना कुछ जानते हैं। क्यों? इससे उन्हें क्या फायदा? किसी भी आम आदमी के बारे में इतना कुछ जानना? वो भी इतनी बड़ी जनसँख्या के बारे में? क्या करते होंगे दुनियाँ के इतने सारे लोग, इतनी बड़ी जनसंख्याँ का डाटा इक्कट्ठा करके?

क्या ये सब सिर्फ़ Geolocation के बारे में है? या उससे आगे बहुत कुछ है?    

इसीलिए कहा है। राजनीती को ज्ञान-विज्ञान से थोड़ा अलग करना होगा। वो राजनीती, जिसको आपने जाने-अन्जाने अपना हिस्सा बना लिया है या अपने घरों में घुसेड़ लिया है। या वो राजनीती आपकी जानकारी के बिना जबरदस्ती घुसी हुई है, उसे बाहर निकालो अपने घरों से, अगर अपना भला चाहते हो तो। गाँव आकर ये भी समझ आया की यहाँ की ज़्यादातर समस्याओँ की जड़ भद्दी और बेहुदा राजनीती है। इन लोगों के पास जो कुछ भी है, उसे Autoimmune Disorder की तरह खा रही है। घर वालों को आपस में लड़ा-भिड़ा के बाहर निकालो और अपने लोगों को उन घरों में घुसा दो। फुट डालो, राज करो। उसपे उनको हर तरह से लूट कर ऐसे दिखाओ, जैसे तुम्हारा भला कर रहे हैं।  

संदेशवाहक, गुप्तचर, गुप्तदूत? (Social Tales of Social Engineering 40)

Diversity of Messaging 

संदेशवाहक, गुप्तचर, भेदिया, विभिषण, गुप्तदूत, गुप्तचर? और भी कितने ही नाम हो सकते हैं ना? वो जो सब्ज़ी देने आते हैं। वो जो गुड़-शक्कर बेचने आते हैं। वो जो कटड़ा, भैंस बेच लो वाले आते हैं। वो जो बैडशीट बेचने आते हैं? वो जो शर्फ़ बेचने आते हैं? वो जो रद्दी लेने आते हैं। वो जो सूट बेचने आते हैं। वो जो झाड़ू, वाइपर बेचने आते हैं। वो जो चुन्नी बेचने आते हैं। वो जो शाल बेचने आते हैं। वो जो टीशर्ट, पायजामा बेचने आते हैं। 

उसपे वो जो मंदिर में सुबह-शाम भजन सुनाते हैं। या कोई खास मैसेज बताते हैं। वो जो ट्रैक्टर-ट्राली, गाड़ी, झोटा-बग्गी या कोई और व्हीकल्स आते हैं। वो जो पेड़-पौधे बेचने आते हैं। वो जो किसी के घर या दुकान के बनाने का सामान लेकर ईधर या उधर जा रहे होते हैं। वो जो साफ़-सफाई वाले आते हैं। या कब-कब आना बंद हो जाते हैं। वो जो फलाना-फलाना जाती से कुछ बुजुर्ग महिलाएँ, जो अब काम-धाम करने की हालत में नहीं हैं, सिर्फ़ खाना या कपड़े वगरैह के लिए कभी-कभार आते हैं। वो जो चप्पल-जूते बेचने वाले या ठीक करने वाले आते हैं। वो जो कुकर, गैस चूल्हा ठीक करने वाले आते हैं। 

वो जो, और भी कितनी ही तरह के पशु-पक्षी, कीट-पतंग, कीड़े-मकोड़े, सबके सब जैसे, संदेशवाहक कोई। आप जहाँ रहते हैं, उस सिस्टम की गवाही के। गुप्तचर या कोढ़ कोई, ठीक आपके सामने होते हैं। कुछ ऐसा बता रहे होते हैं, जिनका अर्थ या अनर्थ उन्हें खुद नहीं पता होता। 

ये आपके आसपास के जीवन के बारे में और उनसे जुड़ी बिमारियों या रिश्तों की दरारों या कड़वाहटों, उनसे उपजे उत्पादों, कारकों के बारे में कितना कुछ बता रहे होते हैं? उनकी उत्पत्ति या प्रकिर्या के बारे में? और शायद उनके समाधानों के बारे में भी? कौन-सा जहाँ है ये? मुझे ये सब किसने और कैसे बताया? दुनियाँ के हर कोने में है, ये जहाँ। एक दुनियाँ के स्तर की बड़ी-सी लैब। जिसे जितने चाहो, उतने छोटे या बड़े स्तर पे अध्ययन के दायरे में रख सकते हैं। इससे भी मज़ेदार बात, ये लैब किसी भी विषय के लिए बंद नहीं है। जो चाहे, जिस विषय से चाहे या जिन विषयों की चाहे मिश्रित खिचड़ी (Interdeciplinery) पका सकता है। और अध्ययन कर सकता है। आप आर्ट्स से हैं तो आपको अपने लायक बहुत कुछ मिल जायेगा। विज्ञान से हैं तो भी। और अर्थशास्त्र से हैं तो भी। मर्जी आपकी की कैसे और क्या जानना चाह रहे हैं।                          

OSLO UiO 

सोफ़े के कवर लो 

गद्दे के कवर लो 

मेज के कवर लो 

मुझे बालकनी में देख ठहर गई वो। मेरी तरफ देखा, सोफ़े के कवर ले लो। 

कहाँ से हो?

सुनारियाँ चौक से 

अरे आप कहाँ से आए हो? 

रोहतक, सुनारिया चौक 

अच्छा रहते हो वहाँ? 

हाँ! झोपड़ी है। 

वहाँ कहाँ से आए हो?

UP 

सोफे के कवर ले लो 

अरे मैं तो मेहमान हूँ यहाँ। ऐसे ही पूछ रही थी। 

माँ आसपास होती तो सुनाती। पागल हो गई शुरू। किसी भी, कुछ भी बेचने वाले को रुकवाकर, पूछने लग जाती है। क्या मतलब हुआ, खामखाँ में? और फिर कोई भी कहानी घड़ देगी उसकी।   

जैसे हरी-भरी टोकरी और गई भैंस पानी में? या  "Don't Cross, Police Zone GAI Inspection"?

मतलब कुछ भी :)    

राजनीती और विज्ञान को अलग-अलग समझना क्यों जरुरी है? (Social Tales of Social Engineering 39)

जब अरविंद केजरीवाल जेल जा रहा होता है, तो भी कुछ खास संदेश दे रहा होता है। सिर्फ हाव-भाव से ही। मंच तो फिर, सब नेताओं का है ही, युद्धरण जैसे। 

 अभी दो-एक दिन पहले एक एंडी बड़बड़ावे था किम्मै?

वो के कहया करें?

भाई कस्सी ठाली? 

किसे न ते कही ए, अर हामने ठाली? मतलब कती अ ते ठाली?

 


बड़बड़ाने वाले को कोई दिखाना ये पोस्ट, की कहाँ-कहाँ और कैसे-कैसे, क्या कुछ, उसी वक़्त जाता है। जब हमें पता ना हो की क्या, कैसे और क्यों हो रहा है? और सामने वाले सुनना भी ना चाहें? तो इसे किस बीमारी के लक्षण कहते हैं? अनपढ़? गँवार? ना पढ़ेंगे और ना पढ़ने या पढ़ाने देंगे?

यहाँ ज़्यादातर लोगों तक ना इन इस ब्लॉग की पहुँच और ना ही किताबों की? ऐसा क्यों? बस इधर-उधर से उन तक जो पहुँचाया जाता है, जिस किसी फॉर्म में उतना ही जाता है। ये मीडिया घपला है? ब्लॉकेज घपला है ? या उससे भी आगे कुछ? जानते हैं आने वाली पोस्ट्स में।