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Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Thursday, June 13, 2024

अलग-अलग स्तर, अलग-अलग प्रभाव या दुस्प्रभाव?

इस पोस्ट में सिर्फ पहले प्रश्न पे आते हैं। या जो कुछ चल रहा था, उसे जानने की कोशिश करते हैं। 

ट्रैनिंग

किसकी ट्रैनिंग? कैसी ट्रैनिंग? बच्चों की? बुजर्गों की? युवाओं की? कैसे देते हैं, वो ये ट्रैनिंग? कौन हैं ये लोग, या समुह जो ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी ट्रैनिंग देते हैं, लोगों को? और बच्चों और बुजर्गों तक को नहीं बक्शते? इन्हें कोई रोकने-टोकने वाले नहीं हैं क्या?   

राजनीती और राजनीती से जुड़े लोग?

बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ?

और?        

मैं अभी गाँव अपना सामान नहीं उठाकर लाई थी। मगर 26-29 April, 2021 का खास जेल ट्रिप हो चुका था। वहाँ जो कुछ देखा, सुना या अनुभव किया, उसमें काफी-कुछ ऐसा था, जिसपे शायद ध्यान कम दिया। या शायद थकान, गर्मी और सिर दर्द की वजह से ध्यान कम गया। ऐसा ही कुछ, जब यहाँ गाँव आने पे बच्चों या बुजर्गों को किसी ना किसी रुप में कहते सुना या भुगतते सुना, तो शुरु-शुरु में तो कुछ खास पल्ले नहीं पड़ा, शिवाय चिढ़ के। या ये क्या हो रहा है, और क्यों, जैसे प्रश्नों के। मगर धीरे-धीरे शायद समझ आने लगा। बच्चों और युवाओं की अजीबोगरीब ट्रैनिंग चल रही थी, उनकी समझ के बैगर। और बुजुर्ग भुगत रहे थे। कहीं ना कहीं युवा भी। और बच्चों की ऐसी ट्रैनिंग का मतलब? वो भविष्य में भुगतेंगे? और ऐसा भविष्य, शायद बहुत दूर भी ना हो, अगर वक़्त रहते रोका ना जाय तो?   

क्या थी ये ट्रैनिंग?

जैसे --

"जेल में औरतें अपना टाइम पास करने के लिए गाने गा रही थी। कुछ नाच भी रही थी। और कुछ दूर से सुन रही थी। मैं जो एक दिन पहले ही वहाँ पहुँची थी, सिर दर्द और गर्मी से हाल-बेहाल थी। मेरे सिर दर्द का मतलब, मुझे आसपास बिलकुल शाँत चाहिए और लाइट भी नहीं। मगर यहाँ तो उल्टा था। जैसे जबरदस्ती का दुगना अत्याचार। ऐसे में दवाई भी असर नहीं करती। ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? वक़्त तो काटना था। आँख बंद कर, कानों को जैसे बंद कर, एक कोने में दुबकने की कोशिश? मगर इतना जबरदस्त शोर, एक छोटा-सा कमरा और इतनी सारी औरतें, सुनेगा तो फिर भी। उसपे गानों के नाम पे भद्दे आइटम नंबर्स और बेहुदा एक्शन्स। वो वक़्त तो आप काट आए।" 

यहाँ गाँव में ये क्या चल रहा था? कोई पियक्कड़ एक बुजुर्ग माँ को हद से परे, बेहुदा गालियाँ दे रहा हो और महाबेहुदा एक्शन कर रहा हो? इधर-उधर आसपास भी कुछ-कुछ ऐसा-सा ही। मगर वैसा ही कुछ CJI भी कह रहा था, शायद? सिर्फ भाषा और तरीके का फर्क था? या कहो समाज के अलग-अलग हिस्से के स्तर का? बात तो वही थी।     

दूसरी तरफ, कोई 5-6 साल की छोटी-सी बच्ची, "मेरा नाड़ा खोलन आवै स... "  जैसे बेहुदा आइटम नंबर पर अजीबोगरीब एक्शन कर रही हो और उस गाने या ऐसे-ऐसे गानों पर गुनगुना रही हो? और आसपास के बड़े बच्चे या बच्चियाँ या युवा वर्ग उसके मजे ले रहे हों? बच्चे को समझाने या रोकने की बजाय या ये तमाशा बंद करवाने की बजाय? बच्चा तो बच्चा है, अपरिपक्कव। मगर बड़े?   

किसी पियक्कड़ ने कोई दरवाजा तोडा हुआ हो। और कोई बुजुर्ग माँ, उसे जोड़ियों से यहाँ-वहाँ बाँधे हुए हो? या नाडों को या नवार जैसे गुच्छों से जैसे, यहाँ-वहाँ कहीं खूँटी, तो कहीं किसी पोल से बाँधे हुए हो? क्यों? दरवाज़ा ही ना ठीक करवा लें? 

कितना अंतर है ना बड़े लोगों (?) के नाड़े वाले जॉक्स में और आम लोगों, मध्यम वर्ग या गरीबों की ज़िंदगियों की सामान्तर घड़ाइयों में? ये सब अंतर देख नफ़रत नहीं होने लगेगी, ऐसे so-called बड़े लोगों से? मगर नफरत क्यों? वो उनकी ज़िंदगी है? उन्हें समाज के किन्हीं तबकों में ऐसी-ऐसी सामान्तर घड़ाईयोँ की शायद खबर तक ना हो? और हो भी, तो उन्हें क्या मतलब? या शायद से मतलब होना चाहिए? खासकर तब, जब आप ऐसे-ऐसे लोगों की वजह से ही शायद, कहीं चुनकर पहुँचते हैं?        

और फिर मैं ऐसे-ऐसे प्रश्नो पे, अपनी ही आवाज़ सुन रही हों जैसे? 

"हाँ! वैसे ही जैसे, तुने कितने लैपटॉप, कूलर या AC या गाड़ी, और कितना ही सामान ठीक करवा लिया? खाती वो खिड़की कर गया क्या ठीक? किसने रोका हुआ है, उसे? और उसके अलावा, कोई और नहीं है क्या, ठीक करने वाला? बड़े लोग भी ऐसे ही, इतने-इतने दिन AC, Coolers के बावज़ूद, यूँ गर्मी में मरते हैं? या यूँ आग लग जाती हैं? उनका आसपास यूँ गँवार या खुद so-called बड़े लोगों के जाल में नहीं होगा ना? वो भी तब, जब इतनी सारी एजेंसियाँ और मीडिया हाउस, देख, सुन और रिकॉर्ड तक कर रहे हों? वैसे ही जैसे, आपने कोई memoir या आपके साथ हुआ क्राइम, किन्हीं मीडिया हाउस को मेल किया हो और वो उसे इग्नोर के डस्टबिन में डाल चुके हों? अब कैसे मीडिया को किया, ये भी एक वजह हो सकता है, उसके डस्टबिन में जाने की? या शायद, आप इन मीडिया हाउसेस के बारे में अभी तक भी बहुत कम जानते हो? या शायद कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी? नहीं तो ऐसी-ऐसी खबरों को तो मीडिया हाउसेस ..... ? शायद अभी काफी कुछ जानना बाकी है, मीडिया हाउसेस के बारे में भी?"  

"ठीक ऐसे ही जैसे, यूनिवर्सिटी में GB (General Branch) वालों ने घर ठीक करके दिया था? XEN, JS Dahiya ने सब तो करवा दिया? कौन है ये JS Dahiya? रिपेयरिंग के नाम पे यूनिवर्सिटी में कट तो सबका बराबर लगता है ना? नहीं शायद? कुछ का ज्यादा लगता है? हद से ज्यादा? ऐसे लोगों की जहाँ नौकरी से छुट्टी होनी चाहिए और उनकी बचत पे चपत लगनी चाहिए, वहीं आप ना सिर्फ ऐसी जगह को छोड़ के चलना ही मुनासिब समझते हैं, बल्की ये तक कहते हैं, काट लो जितना बनता है। बुरी जगहों से और बुरे लोगों से जितनी जल्दी पिंड छुड़ा लो, उतना ही अच्छा?"  

वहीं कुछ दूसरी साइड भी हैं। जो देखते-देखते कुछ ना आते हुए भी, ना सिर्फ प्रमोशन के पायदान नापते हैं, बल्की एक से दूसरा सरकारी घर ऐसे बदलते हैं, जैसे आप जैसे लोग काम ही उनके लिए करते हैं? SLAVE कहीं के। कहीं दूर क्यों जाएँ, मेरे अपने डिपार्टमेंट का डायरेक्टर। ऐसे लोग जिनके खिलाफ शिकायत हों और वही शिकायत निवारण committees के चेयरपर्सन या मैम्बर? जहाँ तकरीबन सब शिकायत निवारण committees के यही हाल हों, जाना चाहेंगे आप वहाँ वापस?          

"वो यूनिवर्सिटी थी। ये तो तेरा अपना घर और अपना आसपास या गाँव है ना?"  

बड़बड़ाना खुद से ही जैसे?

हर जगह की अपनी समस्याएँ हैं। कुछ से आप थोड़ा आसानी से निपट सकते हैं। और कुछ से थोड़ा मुश्किल से? और कुछ को हाथ जोड़ चलते बनते हैं, जैसे गुनाह आपने ही किए हों? कुछ समस्याएँ वक़्त के साथ, अपने आप ठीक हो जाती हैं। कुछ वक़्त माँगती है। और कुछ वक़्त से आगे, थोड़ी-बहुत मेहनत भी और कसमकस भी या इधर-उधर की खटपट और चकचक, पकपक भी। गाँव का कुछ-कुछ ऐसा ही लगा। कुछ ऐसे नुकसान या भुगतान हो गए, जो वक़्त रहते रोके जा सकते थे। मगर नहीं रुके। कुछ धीरे-धीरे ही सही, मगर कुछ हद तक सही दिशा में चल पड़े शायद? कुछ को, कुछ और वक़्त और थोड़ी बहुत मेहनत चाहिए। और इधर-उधर का साथ और थोड़ी-बहुत समझ  भी। 

जैसे शराब कहाँ से और कैसे सप्लाई होती है और कौन करता है या करते हैं? पीने वाला कब पीता है और कब-कब नहीं? सिस्टम या राजनीती से इस सबका क्या लेना-देना है? क्या कहीं का सिस्टम लोगों को जबरदस्ती कोई दिशा या दशा देता है? जी हाँ। हकीकत यही है। जैसे एक पार्टी आपको यूनिवर्सिटी से बाहर का रस्ता दिखाए, तो दूसरी गाँव से बाहर का या देश से ही बाहर का। चाहे ऐसा करने के लिए उन्हें, खून-खराबा ही क्यों ना करना पड़े। या जेलम-जेल ही क्यों ना खेलना पड़े। समाज का अलग-अलग स्तर, अलग-अलग जगह पे, काफी कुछ एक जैसा-सा दिखता हुआ भी, बहुत कुछ अलग कहता है। इसीलिए शायद सबसे सही वो समाज हैं, जहाँ ये फर्क कम है। जहाँ समाज का एक बड़ा हिस्सा, कम से कम, मूलभूत जरुरतों के लिए तो तरसता नहीं नज़र आता।  

जहाँ की सरकारें अपने समाज की मूलभूत आवश्कताओं तक की जरुरतों को पूरा नहीं कर पाती, क्या करती हैं वो सरकारें? किसके लिए बनती हैं, ऐसी सरकारें? मंदिर-मस्जिद के गोबर के नाम पे लोगों को मानसिक तौर पर जकड़े रहने के लिए? या नाडों या बेल्टों के नाम पे तमासे करते रहने और करवाते रहने के लिए? 

शायद, इसका एक ही समाधान है, सरकारों से उम्मीदें ही क्यों? आप इतने काबिल क्यों नहीं हैं की आपका समाज कम से कम ऐसी सरकारों पे निर्भर ना हो? अगर ऐसा होने लगेगा, तो ऐसी सरकारें अपने आप खत्म होने लगेंगी। और सिर्फ वही सरकार बना पाएँगे, जो तमाशों के लिए नहीं या किसी cult में लोगों को मानसिक-तौर पर जकड़ने के लिए नहीं, बल्की समाज को आगे बढ़ाने का काम करेंगे।          

सीधे-रस्ते या घुमाऊ-रस्ते और सामान्तर घड़ाईयाँ ? 1

सीधे रस्ते और घुमाऊ रस्ते में फर्क क्या है?

सीधा रास्ता आपको जल्दी कहीं पहुँचायेगा या घुमाऊ?

आम आदमी बहुत ही सीधा और सरल सोचता है। मगर राजनीती के खिलाडियों के पास ऐसा कोई रस्ता नहीं। क्यूँकि, वो जुआ है। खतरनाक जुआ। कोई भी पार्टी उस जुए को कैसे घुमाती है, ये सिर्फ वही बेहतर जानते हैं। 

घुमाऊ रस्ते का मतलब बहुत ही टेढ़ा-मेढ़ा, उलझ-पुलझ और बहुत-कुछ छुपा हुआ है। इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं। आपके अपने कौन हैं? वो जिन्हें आप हकीकत में जानते हैं? जो आपके आसपास रहते हैं? जिनसे आप अक्सर बात करते हैं? जिनके आप अक्सर काम आते हैं या जो आपके काम आते हैं? 

या वो जिन्हें आप किसी के द्वारा जानते हैं? जिनसे आप शायद ही कभी मिलते हैं? जो शायद ही कभी आपके आसपास होते हैं? आपका उनके या उनका आपके काम आना तो बहुत दूर की बात।   

सामान्तर घड़ाईयाँ, इन्हीं टेढ़े-मेढ़े रस्तों और छुपम-छुपायियों की देन हैं। इसीलिए, इनमें राजनीती खुद आपको आपके अपने खिलाफ या आसपास के खिलाफ प्रयोग कर पा रही है।   

Common Sense को भूलकर, जब आप स्मार्ट बनने या दिखने या दिखाने की कोशिश करते हैं, तो अक्सर धरे जाते हैं। या शायद ये भी कह सकते हैं की अपने दिमाग का जब आप थोड़ा-सा भी प्रयोग नहीं कर पाते, तो दिमाग का थोड़ा ज्यादा प्रयोग करने वाले, आपको अपना रोबॉट बना देते हैं। वो भी ऐसे, की आपको पता तक नहीं चलता की ऐसा हो रहा है। 

मान लो आपको अपने घर से किसी जगह जाना है। तो एक तो होगा सीधा-सा रास्ता। और ढेरों होंगे उल्टे पुल्टे या टेढ़े मेढ़े रास्ते। कहाँ से जाएंगे आप? कौन सा रास्ता कम वक़्त लेगा और कम संसाधनों या पैसे में होगा? टेढ़ा मेढ़ा रास्ता कब प्रयोग करेंगे? जब सीधे रस्ते में कोई रुकावट हो? या रुकावट ना हो और किसी के कहने पर बेवकूफ बन गए हों? या किसी ने थोड़ी देर की कहीं रुकावट कर, आपको घुमाने के लिए या तंग करने के लिए ऐसा कर दिया हो। समझदार भी एक-दो बार तो बेवकूफ बन सकता है। मगर पता लगने के बावजूद कितनी बार? सामान्तर घड़ाइयों में खास है, झूठ, धोखा, हकीकत से दूर दिखाना या बताना, छुपम-छुपाई और फूट डालो, राज करो। 

Tuesday, June 11, 2024

Different Levels of Pyramid and Different Level Plays Differently?

समाज के अलग-अलग स्तर पर, एक जैसी-सी कहानियाँ जैसे? मगर अलग-अलग स्तर पर लोग, भुगतते अलग-अलग हैं? ऐसा क्यों?

क्यूँकि, स्तर अलग-अलग है। लोग अलग-अलग हैं। उनके आसपास का समाज या तबका भी अलग है। उनका शिक्षा का स्तर, सोच, रहन-सहन, पैसा, घर, जमीन-जायदाद सब अलग-अलग है। जिसके पास ये सब जितना ज्यादा है, वो उतना ही कम भुगतता है। ज्यादातर फाइल्स तक का खेल रहता है। जिनके पास ये सब कम है या कहो, जो इस स्तर पर जितना कमजोर है, वो उतना ही ज्यादा भुगतता है। जिसका समाधान, अपने विरोधियो पर फोकस करना नहीं, बल्की अपनी और अपने आसपास की स्तिथि को सुधारना है। so-called बड़े लोग, अक्सर वही नहीं होने देते। वो एक तरफ, आपकी अच्छाईयों को डुबोने में लगे होते हैं तो बुराईयों को बढ़ाने-चढ़ाने में। क्यूँकि, उन्हें पता होता है, की आपकी strenghts क्या हैं और weaknesses क्या। और आपको ये तक नहीं पता होता, की आपके ये so-called विरोधी हैं कौन। इसलिए, सामान्तर घड़ाईयाँ दिखती एक जैसी-सी हैं। मगर परिणाम? 

दूसरा, बड़ों के किस्से कहानियों को अगर बच्चों पे या बुजर्गों पे थोंपने की कोशिश होंगी तो सोचो वहाँ क्या होगा? नाड़े की कहानी से जानते हैं। 

मैं अभी गाँव अपना सामान नहीं उठाकर लाई थी। मगर 26-29 का खास जेल ट्रिप हो चुका था। वहाँ जो कुछ देखा, सुना या अनुभव किया, उसमें काफी-कुछ ऐसा था, जिसपे शायद ध्यान कम दिया। या शायद थकान, गर्मी और सिर दर्द की वजह से ध्यान कम गया। ऐसा ही कुछ, जब यहाँ गाँव आने पे बच्चों या बुजर्गों को किसी ना किसी रुप में कहते सुना या भुगतते सुना, तो शुरु-शुरु में तो कुछ खास पल्ले नहीं पड़ा, शिवाय चिढ़ के। या ये क्या हो रहा है और क्यों, जैसे प्रश्नों के। मगर धीरे-धीरे शायद समझ आने लगा। बच्चों और युवाओं की अजीबोगरीब ट्रैनिंग चल रही थी, उनकी समझ के बैगर। और बुजुर्ग भुगत रहे थे। कहीं ना कहीं युवा भी। और बच्चों की ऐसी ट्रैनिंग का मतलब? वो भविष्य में भुगतेंगे? और ऐसा भविष्य, शायद बहुत दूर भी ना हो, अगर वक़्त रहते रोका ना जाय तो?   

क्या थी ये ट्रैनिंग?

कौन और कैसे चला रहे थे इसे? 

क्या अभी भी ऐसा कुछ चल रहा है? 

सिर्फ यहाँ या हर जगह?   

जानते हैं ऐसे और कैसे-कैसे प्रश्नो के उत्तर, हकीकत में जो देखा, सुना या अनुभव किया उससे। आगे पोस्ट्स में। 

बुझो तो जाने जैसे?

POD?
कैसा और कौन-सा?
कोई माइक्रोफोन जैसे? 
या मटर वाला?
या भिंडी वाला?
या चाय के साथ स्नैक कोई जैसे? 
या और भी कितने ही जैसे हो सकते हैं। 
आपकी सभ्यता और रीती-रिवाज़ों के हिसाब-किताब से?  
और धर्म- कर्म के या ज्ञान-विज्ञान के हिसाब से?
  
ऐसे ही जैसे CAST? 
कौन-सी और कैसी?
Casting जैसे?
एक फोन में होती हैं?
और एक मुखौटों वाली?
या शायद वैक्स म्यूजियम वाली?
और?
कितनी ही?
 आपकी सभ्यता और रीती-रिवाज़ों के हिसाब-किताब से?
या छूना ना, छूना ना मुझे?
या किसी अछूत को जैसे?
या? 
"Touch me not" plant? 
या इम्प्लांट?
या छूआ-छूत की बीमारी जैसे?
और कोई कहे, इसपे तो मेरा पेटेंट है?
यो डैड-गिफ्ट तो सालों पहले आ चुका? 
ये गड़बड़ घोटाला नहीं?
एक ही टैक्स, कितनी बार?  
 
या touch screen वाली?
या?
और भी कितनी ही तो किस्में हो सकती हैं?
PO, किसका PO?
अबे PA होता है?  
DC, घणा DC लाग रहा स?
या YO वॉशिंगटन DC है?   
और 
     AST जैसे?   

अर GOOD LUCK? 
ऐसे जैसे, कोई गवान्ड के चाचा, ताऊ 
या 
फलाना-धमकाना प्रोफ बोल रहे हों?
और मतलब?
गाज़ियाबाद का गुड़-शक्कर जैसे?
अर छोरी, तू के बोले-स?
गुड़-गोबर जैसे? 

An Interesting Interview

कहाँ, क्या और कैसे होता है?

समाज की उस उप्परी सतह से, 

समाज के नीचले हिस्से तक? 

जब आपको लगे,

ये उसके साथ हो रहा है? 

यहाँ तुम्हारे साथ भी हो रहा है?

और वहाँ, बच्चोँ या बुजर्गों के साथ भी?

शायद कुछ-कुछ ऐसा ही? 


कहीं हो चुका?

कहीं कोशिशें, कुछ-कुछ वैसी ही?

जिसे शायद रोका जा सकता है?   

कोई एक स्क्रिप्ट-सा जैसे, मगर बिन लिखा?

कोई एक कहानी-सी जैसे?

मगर बिन कही? 

और हकीकत लोगों की ज़िंदगियों की 

वहाँ, उस तबके के साथ?

यहाँ, इस तबके के साथ?

और फिर आगे,

 किसी और तबके के साथ?  

खेल जैसे, एक जैसा-सा ही 

मगर, स्तर अलग-अलग होते हुए भी?

कितने एक जैसे-से ही?

और फिर भी कितने अलग जैसे-से?



क्या-क्या है, इस एक छोटे-से इंटरव्यू में?
और कहाँ-कहाँ है?
ऐसा-सा ही कुछ?   
कहानी किसी सरकारी मकान की?
कहानी, उस मकान को खाली करने की?
कहानी किन्हीं XYZ की?

कहानी, किसी ट्रम्प err Trump Up की?
कहानी, हमारे, आपके सिस्टम की?
और उसे चलाने वाली ताकतों की?
या भुगतने वाले तबकों की?

कहानी, किस पाजामे की?
या किस नाड़े की?
कहानी, किस भगवान की या भगवानों की?
और उनके इर्द-गिर्द घुमते रीती-रिवाज़ों की?
कहीं लड़ाई पैसों वालों की?
तो कहीं गरीबों की?
या शायद किसी मध्यम वर्ग की भी कहीं?

References Please?

Game of Probability?

जहाँ, आशँका का दायरा रहता है। जहाँ ज्ञान कम होता है?  

Game of Confirmity?

जहाँ, आशँका के लिए कोई जगह नहीं होती। जहाँ सिर्फ और सिर्फ विस्वास होता है। या ज्ञान-विज्ञान?  

अब पता नहीं, यहाँ Game of Probability है या Confirmity? आपने कहीं References के  लिए request की और किसी ईमेल ने दे दिए? मान लो, वो आपकी यूनिवर्सिटी बचत के कुछ-कुछ ऐसे नंबर दे रहे हों --  

References Please?

इसमें से एक पार्टी कहे 7 लाख काटेंगे। मान लो कट गए। दूसरी कहे 5 लाख। मान लो वो भी कट गए। तो कितने बचे? आम आदमी के हिसाब-किताब से तो शायद, गुजारे लायक फिर भी हों? मगर, इधर-उधर से आवाज़ आए, जीरो बच गए। ख़त्म। धेला नहीं बचा। सब खा गए वो तेरा और साथ में किसी और का भी। शायद? 

वो खा गए पर्सनल लाइफ? स्टेबिलिटी? कैरियर? प्रोफेशनल लाइफ? घर, परिवार, आसपास रिश्तों की तोड़फोड़ और बहुत से लोग? लेकिन इस बचे-कुचे के साथ, फिर से उसी गुंडागर्दी के माहौल में टिक गई, तो क्या बचेगा? क्या गॉरन्टी है, वहाँ फिरसे वही सब शुरु ना होगा? मेरे लिए शायद ये बचत कोड़ी के बराबर हो, मगर शायद कहीं छोटी सोच के लोग,  इधर-उधर से लालच के छोटे-मोटे टुकड़े देकर, बचे हुओं को अपने कुत्ते बनाते तो नज़र नहीं आएँगे? और उसमें बच्चों और बुजर्गों तक को नहीं बक्सा जाएगा? उस सबसे बचने के लिए इतना- सा बहुत है। इस दौरान इधर-उधर, जो देखने-सुनने को मिला, वो सब वही था। 
उसपे आमजन की कैरियर और स्टेबिलिटी की परिभाषा ही गलत है शायद। या शायद सबके लिए एक नहीं। 

बाकी इस पर्सनल भड़ास के अलावा, इस रेफेरेंस में और बहुत कुछ है। ऐसे ही जैसे, इस दौरान देखी और अनुभव की गई ज़िंदगी में। वो आगे आने वाली पोस्ट में मिलेगा।        

खँडहर और धरोहर का फर्क

सँभाल के रखते हो जिसे आप, 

वो धरोहर बन जाते हैं। 

उसकी आपको, जरुरत चाहे हो ना हो 

मगर कद्र जरुर होती है।  

क्यूँकि, वहाँ लगाव, जुड़ाव होता है। 


वहाँ साफ़-सफाई ही नहीं, 

बल्की, टूट-फुट की भी मरमत

पुराने और चमक खोते का भी 

रंग-रोगन होता है। 

और किसी ना किसी बहाने, 

उसका अस्तित्व और महत्व भी  

बना रहता है। 

Sunday, June 9, 2024

आओ आदमी को कुत्ता बनाएँ?

भारत जैसे देशों की राजनीती का खेल? 
बस इतना-सा ? 


( ये तस्वीर इंटरनेट से ली गई है )

और सपने दिखाते ये नेता? 

अपने ये ताले और ये चाबियाँ कहीं और बेहतरी के लिए बनाओ। 

Friday, June 7, 2024

सोए हुए को जगाना या जागते हुए को सुलाना जैसे?

Amplifying the latent or dormant?

बुल्लेट? 

पिस्टल? 

डंडा? 

चाकू? 

झगड़े या गुंडा-गर्दी वाले पैसे?  

झगड़े या गुंडा-गर्दी वाली ज़मीन? 

टूटे-फूटे से रिश्ते? 

बदहाली? 

ज़ंजीरें, चाहे सोने की ही क्यों ना हों? 

लड़ाई-झगड़े?

खंडहर?

 

या 


शांति? 

खुले रस्ते? 

खुशहाल ज़िंदगी? 

समृद्धि? 

खुला आसमां और उड़ते पंछी ?

धरोहर? 


किसको सुलाना चाहते हैं, आप?

और किसको जगाना?

ये सब निर्भर करता है की आप व्यस्त कहाँ हैं? अपनी और आसपास की ज़िंदगी को सवाँरने में? या लूटपाट में, एक दूसरे का बुरा चाहने और करने में?

रुकावटों, अवरोधों को खड़ा करने में? या बंद रस्तों को भी खोलने में? बीमारियाँ पनपाने में, मंदिर-मस्जिद के नाम का गोबर (गोबर क्यों कहा?) फैला, मारकाट करने में? खुशहाल ज़िंदगियों को उजाड़ने में? या बदहाल ज़िंदगियों को भी सँवारने में? अपना ना कमाकर, दूसरों का भी हड़पने के चक्कर में? कुछ ज्ञान बाँटने में? या ज्ञान-विज्ञान का दुष्प्रयोग कर, कम पढ़े लिखे लोगों में अंधविश्वास और अज्ञान फैलाने में? अपने आसपास कचरा फ़ैलाने में या साफ़-सफाई करने में? आपकी और आपके आसपास की ज़िंदगी, उसी हिसाब से आगे बढ़ेगी।              

ऐसे खंडहरों में क्या रखते होंगे? 4 (Social Tales of Social Engineering)

कबाड़    




कूड़े के ढेर 





और कबाड़ 

कूड़े के ढेर?