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Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Tuesday, January 16, 2024

आप किसके लिए काम कर रहे हैं?

Part of Culture Media and Social Engineering 

आप किसके लिए काम कर रहे हैं?

अपने लिए?

अपने बच्चों के लिए?

आसपास या दूर किसी के लिए?

समाज के लिए?

या राजनीतिक पार्टियों या बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए? 

या किसी और के लिए? 

या ये भी कह सकते हैं की आप किसके लिए जी रहे हैं?   

अपने लिए?

अपने बच्चों के लिए?

आसपास या दूर किसी के लिए?

समाज के लिए?

या राजनीतिक पार्टियों या बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए?   

या किसी और के लिए?   

ज्यादातर, शायद यही कहेंगे की अपने लिए या अपने बच्चों के लिए? क्या वो सच है?  

कहीं ऐसा तो नहीं की आपकी जानकारी के बिना, किसी ने आपको अपना गुलाम बनाया हुआ है? ऐसे ही आपके बच्चों को भी? और आपकी जानकारी के बगैर, आप उनका काम कर रहे हैं? उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, की उनका वो काम करने में आपका या आपके बच्चों का कोई फायदा है या नुकसान। उन्हें अपना काम निकालने से मतलब। 

मगर आपको कैसे पता चले की कोई आपके साथ ऐसा कर रहा है या कर रहे हैं? इसे कुछ-कुछ जिसे आप भूत कहते हैं, उससे भी समझ सकते हैं। जिसमें आपकी परिभाषा के अनुसार, भूत आते हैं वो आदमी क्या करता है? आपके अनुसार, वो खुद कुछ नहीं करता, उसमें आया हुआ भूत ही सब करता है। ऐसा ही ना?

अगर मैं कहूं की किसी भी इंसान में किसी का भूत लाने के बहुत से तरीके होते हैं। शायद आप कहोगे कैसे? उसके लिए किसी भी इंसान को ये trick करने के लिए काफी जानकारी चाहिए। ठीक ऐसे ही, जैसे जादूगर को कोई जादू करने के लिए। जादूगर प्रयोग या दुरुपयोग, विज्ञान के सिद्धांतों का करता है। मगर जिन्हें जादू दिखाता है, उन्हें क्या बताता है? ये जादू है। ऐसा ही ना? 

मान लो, कोई कहे की मैं पानी में आग लगा सकता हूँ। आप लगा सकते हैं? अगर हाँ, तो आपको किसी रसायन की जानकारी है, और उसके पीछे के विज्ञान के सिद्धांत की भी। अगर नहीं, तो ये एक जादू है। ऐसे ही कितनी ही तरह के जादू हो सकते हैं। 

एक जादू है की एक इंसान ने छलाँग लगाई और गाँव से शहर होते हुए, बड़े शहर और फिर दूर किसी दूसरे देश पहुँच गया। संभव है? अगर हाँ, तो आपको तरीके पता हैं और कोई जादू नहीं है। 

अगर नहीं, तो शायद आपसे ऐसा करने के नाम पे लाखों रुपए भी ले ले और फिर चम्पत हो जाय। हो गया जादू? 

या शायद कोई आपको किसी दूसरे देश भी पहुँचा दे और आपके हिसाब-किताब का कोई काम भी दिलवा दे। मगर कुछ वक़्त बाद आपको लगे, अपने घर ही अच्छे थे। कितनों के साथ हुआ है, आसपास ऐसा?

थोड़ा-सा और ज्ञान हो, तो आज के वक़्त में किसी को पैसे देने की जरुरत ही नहीं। सबकुछ ऑनलाइन है। घर बैठे नौकरी भी कर सकते हैं और पढ़ाई भी। और चाहें तो वो सब करने दूसरे देशों में जा भी सकते हैं। ये तो कोई जादू नहीं है।

ऐसे ही बहुत-सी सामान्तर घड़ाईयाँ हैं। वो बड़े स्तर पे भी होती हैं। और छोटे स्तर पे भी। मतलब, स्कूल के स्तर पे भी और यूनिवर्सिटी के स्तर पे भी। गाँव के कम पढ़े लिखे लोगों के स्तर पे भी और शहरों के ज्यादा पढ़े लिखे लोगों के स्तर पे भी। जब यूनिवर्सिटी के स्तर पे सामान्तर घड़ाईयाँ होती हैं, तो क्या होता है? और जब गाँव या स्कूल के स्तर पे सामाजिक घड़ाईयाँ होती हैं, तो क्या होता है? जानना चाहोगे?

मान लो, वहाँ स्टूडेंट्स ने कुछ क्लास या लैब्स में किसी टीचर के खिलाफ उल्टा-पुल्टा कुछ किया। वो भी किसी का करवाया हुआ। शायद किसी टीचर या डायरेक्टर या जिसको उस टीचर से खुंदक हो? उन स्टूडेंट्स के शायद थोड़े नंबर ज्यादा आ जाएंगे, किन्हीं विषयों में। या कहीं अच्छी ट्रेनिंग मिल जाएगी। और भी बड़ा मामला होगा, तो शायद कहीं अच्छी नौकरी। मगर ऐसा सबके साथ नहीं होता। उसमें भी बहुत सी Terms और Conditions होती हैं। कहीं आप भी हो जाओ शुरू। 

अगर टीचर्स की बात हो तो? उन्हें शायद कोई additional membership या किसी committee की सदस्य्ता। और भी बहुत तरह के फायदे हो सकते हैं। जल्दी promotion, बढ़िया वाले घर, गाड़ी आदि सुविधाएँ जैसे। जिस किसी के खिलाफ चल रहा हो, उसके साथ इसके विपरीत व्यवहार भी हो सकता है। किसी को कम करके भी बहुत ज्यादा और किसी को बहुत करके भी बहुत कम। 

मतलब, हम गलत सिस्टम में हैं। उससे बचने और निकलने में ही भलाई है? या लड़ना चाहोगे ऐसे सिस्टम से? हो सकता है, इस लड़ाई में वो तुम्हारा घर-परिवार ही खा जाएँ। आखिर सिस्टम से लड़ना, इतना आसान कहाँ होता है? राजा खुद कुर्बानी नहीं देता। वो हमेशा और हमेशा कुर्बानी माँगता है, आम आदमी से।  

अब यूनिवर्सिटी से दूर, थोड़ा गरीब वाले आम आदमी पे आते हैं। जानते हैं अपने गाँव के हाल। हालाँकि, अपने ये महान लोग, खुद को गरीब नहीं मानते। चाहे बाहर वालों को इनके हालात ऐसे नजर आ रहे हों, जैसे कॉकरोच जब संसाधन कम हों, तो एक-दूसरे को ही खाने लगते हैं। वैसे दुनियाँ की ज्यादातर लड़ाईयाँ दो ही तरह की हैं। या तो संसाधनो की कमी की वजह से या वर्चस्व की। कमी की बजाए लिखना चाहिए, मानव संसांधन के दुरुपयोग की वजह से। क्यूँकि, उन्हें मानव संसाधन का प्रयोग नहीं आता। 

जैसे यूनिवर्सिटी में जो भी लड़ाई होती हैं, वो या तो फाइल्स के द्वारा होती हैं। या किताबें, Dissertation, Thesis के द्वारा। या Projects  या Publications से सम्बंधित। प्रमोशन या कुछ खास कुर्सियाँ पाने के लिए, इधर-उधर से पॉइंट्स इक्कठा करने की।  मतलब, वहाँ ज्यादातर दिमाग चलते हैं। इसलिए शिकायतें भी ज्यादातर ऐसी ही होती हैं। ज्यादातर। क्यूँकि, इंसान के खोल में जानवर तो वहाँ भी रहते हैं। तो उन इंसानों में से कुछ, कब इंसान का चोला उतार, जानवर का रुप धारण कर लें, जैसे कारनामे भी संभव हैं। मगर, वो भी शायद उस स्तर के नहीं मिलेंगे, जैसे गाँवों में। बल्की, उनसे थोड़े ज्यादा मार करने वाले, वो भी ऐसे की दिखे भी ना की उन्होंने ऐसा किया है। ऐसा क्यों? संसाधनों की कमी या दुरुपयोग? ये कुर्सियों की या अहम या वर्चस्व की लड़ाई हैं। लालच भी कह सकते हैं।

इसीलिए, वहाँ की लड़ाईयाँ जब बड़े स्तर पे पहुँचती है, जैसे इंटरनेशनल, तो ज्ञान भी वैसे ही बढ़ता है और ऐसी यूनिवर्सिटीज के संसाधन भी। ज्यादातर, क्यूँकि दूसरी तरफ बहुत तरह के दुर्गामी दुष्परिणामों के खतरे भी होते हैं। मगर, गाँव का ज्यादातर इनसे जुड़ा तबका, यहाँ बुरे वाली मार खाता है। क्यूँकि, यहाँ लोगबाग फाइल्स से नहीं लड़ रहे होते। दिमाग प्रयोग कर नहीं लड़ रहे होते। शारीरिक लड़ाई का हिस्सा बन जाते हैं। आमने-सामने की लड़ाई। जबकी, वो ज्यादा पढ़ा लिखा तबका, छुपम-छुपाई इनके घरों में घुसकर, दिमागों में घुसकर नए ज़माने के गोरिल्ला युद्ध लड़ रहा होता है। और इन जैसों को हर तरह से, खत्म कर रहा होता है। मगर, इन भोले इंसानों को यही नहीं पता होता, की दुनियाँ में ऐसा कुछ संभव भी है। इनके और उनके हथियार ऐसे हैं, जैसे, एक 16वीं या 17वीं सदी में और दूसरा 21वीं सदी में।      

इस दुरुपयोग की ट्रेनिंग भी हो सकती है क्या? वो भी खुद आपके या आपके अपनों के खिलाफ? ठीक वैसे, जैसे बच्चों को ट्रेनिंग देते हैं हम। या किसी भी जानवर या पशु-पक्षी को। जैसे कुत्ता या हमारा कोई भी पालतु जानवर। क्या हो, अगर वो हमें ही मारने या काटने लगे? या ऐसा कुछ खुद अपने साथ करने लगे? हमारे बड़ों के साथ भी हो सकता है, ऐसे की उन्हें पता ही ना चले की वो खुद कैसी ट्रेनिंग कहीं से ले रहे हैं। या अपने बच्चों को दे रहे हैं, जाने या अंजाने। और कल जब वो बच्चे कोई कारनामे करेंगे तो कहेंगे, हमने तो बहुत किया अपने बच्चों के लिए। बच्चे ही ऐसे निकले। या कुछ गड़बड़ होते हुए भी, हमारे बच्चे तो बहुत सही हैं, सामने वाले ही ऐसे हैं। 

आओ बहुत ही छोटी-छोटी सी, आसपास की ही बातों से समझते हैं। 

Monday, January 15, 2024

बुझो तो जाने ?

इन तस्वीरों को देखो 
जानते हो इन्हें? 













क्यों लगाई होंगी ये तस्वीरें मैंने यहाँ?
कोई मेरी माँ को भी दिखाना और पूछना उनसे, की वो जानते हैं इन्हें? 
मेरे हिसाब से तो वो कभी किन्हीं गुरुओं के चक्करों में पड़े नहीं।  

ये हमारे आसपास के खास बच्चों के लिए भी हैं। 
सोचो क्यों?

बाकी पढ़ने वालों के लिए तो है ही।  

अच्छाईयों को बढ़ाना-चढ़ाना या बुराईयों को बढ़ाना-चढ़ाना

Amplifying the good

Vs

Amplifying the bad

आपका माहौल ये बताता है की वो आपकी बुराईयों को बढ़ा-चढ़ा रहा है या आपकी अच्छाईयों को ?

एक बार एक प्रोफेसर ने खाने पे बुलाया, अपने घर --  

तब तक मुझे लोगों पे ऐसा कोई शक नहीं था और ना ही ज्यादा कुछ इन किस्से-कहानियों का पता था। हालाँकि, मैं उन्हें कोई खास पसंद नहीं करती थी। फिर भी आते-जाते, हैलो वगैरह हो जाती थी। क्यूँकि, यूनिवर्सिटी कैंपस घर में ये प्रोफेसर पहली थी, जो बिन माँगी सलाह जैसे, घर के अंदर घुसके, देके गई थी, H#16, Type-3। कौन से पौधे कहाँ लगाने हैं, और कौन से कहाँ नहीं? मुझे बड़ा अजीब लगा था, इस तरह किसी अंजान का यूँ घर घुसकर, खामखाँ की सलाह देना। मगर, उसके इस अजीबोगरीब व्यवहार ने उसमें मेरी रुची बढ़ा दी थी, ये जानने के लिए की ये है कौन? क्यूँकि, बगैर किसी को जाने-पहचाने या बिना किसी रुची के शायद ही कोई यूँ घुसे, किसी के घर। घर के अंदर क्या, कहाँ लगाना है और कहाँ नहीं, तो बड़ी बात। उसके बाद भी उनका व्यवहार, थोड़ा अजीब-सा ही था। धीरे-धीरे पता चला, की मेरे कुछ एक्सटेंडेड दोस्त सर्कल से उसका नाता है। कुछ पुराने सर्कल से भी, और बहु-अकबरपुर से भी।

क्या कहाँ लगाना है और कहाँ नहीं? क्या कहाँ रखना है और कहाँ नहीं? और भी अहम कैसे रखना है? ये सब थोड़ा ढंग से समझ आया, जब 2017 में मैंने दोबारा join किया। ये सब मेरे अड़ोस-पड़ोस से खासकर सीखने को मिला ।कुछ सहायता, जो News Channels या Social Profiles मैं पढ़ती या देखती थी, उन्होंने भी की। अब तो ये व्यवहार, कुछ ज्यादा ही अजीबोगरीब हो गया था। ऑफिस में ही उल्ट-पुलट नहीं, बल्की घर में भी ज्यादा ही हेरफेर और बाहरी हस्तक्षेप बढ़ गया थाभाभी की मौत के बाद के घटनाक्रमों और मेरे पीछे तक के आँकलन ने बताया, की ये हस्तक्षेप यहाँ गाँव में भी ऐसे ही बढ़ गया था। एक तरफ मेरी समस्याएँ बढ़ रही थी तो दूसरी तरफ इस घर को भी घेरा हुआ था। जैसे, जकड़ना चारों तरफ से एक तरफ भाई-भाभी के रिश्तों में दूरियाँ पैदा की जा रही थी, तो दूसरी तरफ इस शराब पीने वाले भाई ने, माँ की ज़िंदगी को नरक बना दिया था। भाभी की मौत के बाद, माँ, छोटे भाई के पास रहने लगी, क्यूँकि वहाँ एक छोटी गुड़िया भी है और जरुरत भी। अब इस शराब पीने वाले भाई को झेलने की मेरी बारी थी। कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे कहते हैं की दूर के ढोल सुहावने होते हैं । मुझे मेरे अपने घर और आसपास के बारे में बहुत कुछ ऐसा समझ आ रहा था, जो अजीबोगरीब था। या कहो की है। मगर किसका किया हुआ? खुद इनका? या बाहरी हस्तक्षेप का? Surveillance Abuse का, जो बुराईयों को भी बढ़ा-चढ़ा सकता है और अच्छाईयों को भी वो भी आपकी जानकारी के बिना, की ऐसा हो रहा है जिसे चाहे आपके घर से या रिश्ते-नातों से निकाल सकता है और जिसे चाहे घुसा सकता है 

अब क्यूँकि मैं माँ के घर पे रह रही हूँ तो भाई जब भी नशे में धूत होके आता, उसे मुझे झेलना था । मगर मैं ना तो माँ थी और ना उसके ज़माने की सोच, की सांडों को खाने-पीने को भी दो और उनका गाली-गलोच या मार-पिटाई भी झेलो। माँ ने वो सब झेला हुआ था। अपने पास सीधा-सा, हिसाब-किताब है, काम करेगा तो खाने को मिलेगा। नहीं तो रहने को जगह (घेर), तेरे पास है और अपने लायक किले भी। कर और कमा खा। जिस इंसान को बचपन से कमाने खाने की आदत ना डाली हो, क्या वो ऐसा करेगा? नहीं? वो कहेगा जमीन का सालाना हिसाब दो और मेरा गुजारा तो उसी में हो जायेगा। 2-3 किले ज़मीन हों तो उसका बिना कुछ किए, सालाना कितना मिलेगा? उसपे शराब का खर्चा? खैर, ये सब यहाँ आसपास आम-सी समस्या है। और बहुत-सी औरतें, ऐसे-ऐसे महानों को झेल रही हैं। जब इस बहन जैसा प्राणी पल्ले पड़ जाय, तो शायद समस्या और बढ़ जाती है, ऐसे लोगों की। सही शब्द बढ़ जाती है या बढ़ा दी जाती है? 

क्यूँकि, जब वो बिना पिए घर आता है, तो बड़ा सही है। मीठा बोलता है। अपना खाना भी खुद बनाता है। जैसा मिले, वैसा खा लेता है। अपने बाकी छोटे-मोटे काम भी खुद ही करता है। मतलब, समस्या सिर्फ शराब है। और जब वो पीने के पैसे खुद के पास नहीं होते, तो राजनीतिक पार्टियाँ मुफ़्त में सप्लाई करती हैं। या यूँ कहो, की मुफ़्त में अपने घर से बाहर वाले को, शायद ही कोई कुछ देता है ऐसे में मुफ्त में ज़मीन ऐंठने वाली चीलें, ऐसे लोगों को घेर लेती हैं। क्यूँकि, यहाँ ज़मीन सस्ती नहीं है। दिल्ली के पास होने के कारण, थोड़ी-सी ज़मीन का भी अच्छा खासा मिल जाता है। शायद बहुत से निकम्में जाट बर्बाद ही यूँ हैं। ज़मीन बेचके कौन-सा वो खाएँगे कमाएँगे? उसे भी उड़ा देंगे। ज़मीन जाएगी, वो अलग। उसपे पीने वालों को कुछ मिलता भी नहीं है। बोतलों में ही निपटा देते हैं उन्हें, थोड़े घने स्याणे लोग। कई बार खुद उनके अपने कहे जाने वाले हितैषी।   

थोड़ा बहुत जितना भी मैंने शराब लत के बारे में पढ़ा, वो ये की ये बीमारी है। ऐसे ही जैसे मोटापा। जैसे शुगर। जैसे कैंसर। या ऐसे ही कोई भी बीमारी। किसी भी चीज़ की अधिकता या लत बहुत तरह की बिमारियों का कारण बनता है। खासकर, जैसे ज्यादातर Lifestyle से सम्बंधित बिमारियाँ होती हैं Lifestyle में बदलाव कर, ऐसी बिमारियों से निपटा जा सकता है। उसका सबसे बढ़िया तरीका होता है, ऐसे आसपास के माहौल से बचना। उससे भी बढ़िया, ऐसे लोगों से और जगह से कहीं दूर हो जाना, जो ऐसी बिमारियों की तरफ धकेलता है क्यूँकि, ये पीने वाला भाई महीनों छोड़ने वालों में भी रहा है। मतलब, थोड़ा-सा बेहतर सहारा मिले, तो छोड़ भी सकता है हाल, अभी कुछ सालों से ज्यादा बेहाल हैंऐसे लग रहा है जैसे  H#30, Type-4 का सिर्फ मेरे घर के बेहाल होने में ही नहीं, आसपास के और कई घरों के उतार-चढ़ावों में भी काफी अहम रोल है सामाजिक सामान्तर घड़ाईयाँ चाहे वो रिश्तों का टूटना हो या दूसरी शादियाँ। चाहे वो कुछ खास कोढ़ वाली बीमारियाँ या लोगों का दुनियाँ से ही उठनाये सब किया हुआ है। अपने आप नहीं हुआइसीलिए, बार-बार लिख और कह रही हूँ, जितना ज्यादा इस सिस्टम के कोढ़ और सामान्तर घड़ाइयों को समझोगे, उतना ही ज्यादा अपनी ना सही, अपने बच्चों की ज़िंदगियों को तो जरूर बेहतर बना पाओगे  

राजनीतिक पार्टियों का ये जुआ, आप और हम जैसे आम-आदमी नहीं खेल रहे। बल्की शातीर, और अपने-अपने विषयों के ही नहीं, बल्की कई-कई विषयों में माहिर लोगों के समूह खेल रहे हैं। वो चाहें तो अपने समाज को अच्छाई की तरफ ले जा सकते हैं। और चाहें तो बुराई की तरफ। वो चाहें तो किसी को भी, किसी भी बीमारी का बहाना दे, दुनियाँ से उठा सकते हैं। या मरते हुए को भी, काफी हद तक बचा सकते हैं। वो चाहें तो, खानदान के खानदान, आपसे में लड़ा-भिड़ा खत्म कर सकते हैं। इसके लिए बहुत दूर जाने की जरुरत नहीं, बल्की अपने आसपास को पढ़ना और समझना शुरू कर दो। तो शायद बहुत कुछ बच जाएगा भाभी को PGI ने उठाया है 31 January, 2023 की रात या 1 February की सुबह को उसके बाद नाम कहाँ-कहाँ और किस, किसका लगा? सबसे बड़ी बात क्यों लगा? इसे ही फूट डालो और राज करो कहते हैं उसके लिए, इसके पहले के कारनामों को भी जानना जरुरी है जिन्हें मैंने बारबार लिखा है की ये कौन बोल रहा है? सामने दिखने वाला आदमी-सा खोल कोई? या जैसे कोई भूत किसी का? और भी अहम, कैसे डालते हैं, ये भूत? इसे भुतिया विज्ञान, टैक और Surveillance Abuse भी कह सकते हैं     

ये पोस्ट आम-आदमी के लिए तो है ही। समाज के उस वर्ग के लिए भी, जो अपने आपको, समाज को कोई दिशा या दशा देने में अहम भूमिका निभाने वाला समझता है  

अरे वो जो मैम ने घर खाने पे बुलाया था, उसका क्या हुआ?  

Sunday, January 14, 2024

आज का ज्ञान

दान का तिनका भी दिखाकर और बताकर,  

मगर बड़ी धोखाधड़ी और काँड भी छुपाकर करें।  

स्कूल और दो कनाल ज़मीन (Protection?)

सुना है उसकी जान को खतरा है? शराब से? या दो कनाल से? या किसी और चीज से?

जिन्हें राजनीतिक जुए की मार आम लोगों पे कैसे-कैसे होती है, को जानना हो, वो इस शराब लत वाले इंसान पे फोकस कर सकते हैं। बहुत-सी मौतों के राज समझ आएंगे और तारीखों के भी। वो शराबी नहीं है, उसे शराबी सिस्टम की जरुरतों या कहो पार्टीयों की जरुरतों ने बनाया है। थोड़ा ज्यादा हो रहा है ना? और उसपे मैं ये कहूं की ये ज्यादातर आम-आदमियों पे लागू होता है। सिस्टम। 

बड़े लोग सिस्टम को बनाते हैं, अपनी जरुरतों के अनुसार। और आम-आदमी बनता है, उनकी जरुरतों का मोहरा, गोटी। इनमें वो भी हो सकते हैं, जो आज इस सिस्टम की या किसी एक पार्टी की जरुरत के अनुसार, इस सामाजिक सामान्तर घड़ाई का हिस्सा बन चुके हैं। जिस किसी वजह से। अगर आप गाँव के किसी स्कूल से सम्बंधित है, तो थोड़ा बहुत पैसा और ठीक-ठाक ज़िंदगी होते हुए भी, सामाजिक सँरचना के पिरामिड में आखिर वाले पायदान पे ही हैं। गाँव आज भी पिरामिड का वही हिस्सा हैं। हाँ। उस गाँव वाले पिरामिड में हो सकता है, स्तिथि थोड़ी-सी सही हो।        

सिस्टम एक पिरामिड है। इस पिरामिड के तीन अहम हिस्से हैं।  

उत्पादक (Producers) : पैदा करने वाला, जैसे खाना, कपड़ा और मकान। और भी कितनी ही तरह के उत्पाद, जो इंसान प्रयोग करता है।           

उपभोगता (Consumers) : प्रयोग करने वाला  

सफाई कर्मी (Decomposers) : साफ़-सफाई करने वाले, किसी भी तरह की 

जहाँ इन तीन हिस्सों में संतुलन है, वो घर, परिवार या समाज संतुलित है। वो इंसान संतुलित है। जहाँ इनमें से किसी एक में भी कहीं कुछ गड़बड़ है या असंतुलन है, वो समाज असंतुलित है। वो सिस्टम असंतुलित है। वो घर, परिवार,  इंसान असंतुलित है।   

स्कूल और दो कनाल ज़मीन का इस सबसे क्या लेना-देना? 

सामाजिक सामान्तर घड़ाई 

चलो एक दारु-लत वाले इंसान की कहानी सुनते हैं । सुना है उसकी जान को खतरा है? शराब से? या दो कनाल से? या किसी और चीज से? 

शायद इसीलिए, भतीजे ने (दूसरे दादा के बच्चे, रोशनी बुआ वाला घर), वो ज़मीन खरीद ली? क्यूँकि, उसने खुद ऐसा बोला की बुआ Protection के लिए ली है। हम नहीं लेते, तो कोई और लेता। किसके और कैसे Protection के लिए? ये समझ नहीं आया बुआ को। ये शराब दो और ज़मीन लो के गाँवों में ही इतने किस्से क्यों मिलते हैं?    

सबसे बड़ी बात, क्या वो ज़मीन बिकाऊ थी? सुना, कुछ वक़्त पहले तो वहाँ स्कूल बनने वाला था। भाभी के जाने के बाद शायद कोई छोटी-मोटी रहने लायक जगह या कुछ ऐसा-सा ही। बुआ को हमेशा के लिए गाँव रहना नहीं, तो किसके काम आता वो? अरे वो तो पैसा यूनिवर्सिटी ने रोक रखा है ना? वैसे यूनिवर्सिटी की उस छोटी-मोटी बचत में, मैं अपने नॉमिनी बदलने की रिक्वेस्ट भी दे चुकी, काफी पहले। मगर, जाने क्यों आज तक यूनिवर्सिटी ने ना वो नॉमिनी बदले और ना ही मुझे अभी तक वो पैसा दिया। जाने क्या-क्या होता है दुनियाँ में? और क्यों होता है? क्या इसीलिए, की ये थोड़ी-सी किसी भाई की, खास जगह वाली ज़मीन बिकवाई जा सके? क्यूँकि, अब जो नॉमिनी में नाम हैं, उनमें एक ये है, जिसकी ज़मीन बिकवाई गई है। और दूसरा नाम भतीजी। माँ और छोटे भाई का हटा दिया, क्यूँकि उन्होंने कहा की उन्हें जरुरत नहीं है। इस भाई का जैसे अपहरण किया हुआ है और बोतल सप्लाई हो रही हैं। उस हिसाब से तो जल्दी ही खा जाएँगे इसे। या इसीलिए कुछ अपने कहे जाने वाले लोग, किसी गरीब का फायदा उठा रहे हैं? बहन तो कोई सहायता कर नहीं सकती, इस हाल में? बचा कौन? माँ तो वैसे ही आई-गई के बराबर है? भाई क्यों और कब तक भुगतेगा, ऐसे इंसान को?          

वैसे घर पे माँ-बहन को तो जरुर बताया होगा, ये जमीन खरीदने वाले अपनों ने? क्यूँकि, वो माँ के पास घर आता-जाता था और खाना भी वहीं खाता था। कुछ होता तो हॉस्पिटल बहन लेके जाती थी। दो बार तो शराब के नशे की वजह से एडमिट भी हो चुका और deaddiction सेंटर भी जा चुका। ये अजीबोगरीब किस्से-कहानियाँ कैसे और कहाँ-कहाँ जुड़े हैं, ये किन्हीं और पोस्ट में। अगर नहीं संभाला गया होता, तो कितने ही उसके आसपास वालों की तरह, राम-नाम-सत्य हो चुका होता।  

मगर जबसे ये ज़मीन के चर्चे शुरू हुए, खासकर भाभी के जाने के बाद, तबसे कुछ और भी खास चल रहा है। बंदा जैसे अपहरण हो रखा हो। कई-कई दिन फ़ोन बंद। उठाए तो टूल। बहन तो अब तक deaddiction centre भेझ चुकी होती, ऐसे हाल में। मगर, अबकी बार कुछ गड़बड़ है शायद? उसे शराब से दूर और पोस्टिक खाने की खास जरुरत है। मगर कहाँ का खाना, जब शराब देके सब निपट जाए?   

लगता है Protection के लिए काफी पैसे दे दिए? शराब पीने वाले को पैसा? उसे बचाने के लिए या उसका राम-नाम सत्य करने के लिए? अरे नहीं, पैसे उसे नहीं दिए। सिर्फ कोर्ट के जमीन वाले पेपर्स पे ऐसा लिखा है। 1 लाख सामने ही एक पड़ौसी हैं, उन्हें दिए हुए हैं। इन्हीं पडोसी ने बताया, की उन्हीं में से थोड़े-बहुत ले लेता है। 1.5 लाख और कहीं बताए, उस पड़ोस वाले भाई चारे ने। घर वालों से क्या खतरा था, उन्हें क्यों नहीं? अगर ये भी मान लें, की माँ या भाई ने बोलना ही छोड़ दिया है उससे, तो बहन के बारे में क्या कहेंगे? सबसे बड़ी बात, बहन जमीन खरीदने वालों के घर तक गई, जब सामने आया की ऐसा कुछ चल रहा है, या हो चुका। अपना समझ के, की ये मामला क्या है? और खरीदने वाले की माँ बोले, हमें तो खबर ही नहीं? लगता है स्कूल प्रधान चाचा को भी, अब तक भी खबर नहीं हुई? बाकी फोन उठाना या मेसेजेस का जवाब देना, शायद उसके संस्कारों में नहीं। कितने संस्कारी लोग हैं?         

विपरीत परिस्तिथियों का फायदा उठाओ और हालात के मारे को और जल्दी ऊपर पहुंचाओं? बहुत-सी बातों और हादसों पर यकीन नहीं होता। ऐसे, जैसे ज़मीन के पेपर आपके पास आ चुके हों। बेचने, खरीदने वाले और गवाहों के फोटो और अजीबोगरीब-सा, पैसे का हिसाब-किताब भी। ज़मीन, वो भी उस जगह, सच में इतनी सस्ती है? कोड़ी के भाव जैसे। कुछ वक़्त पहले, मैं खुद ज़मीन ढूढ़ रही थी, यहीं आसपास। मुझे तो इतनी सस्ती ज़मीन, कहीं सुनने को भी नहीं मिली। ये स्कूल वाले देंगे इतने में? खुद इन्होंने अभी पीछे काफी किले खरीदे हैं, कितने में? वो भी पानी भरने वाली बेकार-सी ज़मीन। इस ज़मीन के साथ वाली ज़मीन नहीं। शायद इसीलिए, माँ-बहन से बात तक नहीं करना चाहते?      

उसपे ये गवाह कौन हैं? क्या खास है उनमें? घर या आसपास से ही कोई इंसान क्यों नहीं? घर वालों के क्या आपस में जूत बजे हुए हैं? या वो देने नहीं देते? जिसकी बहन कल तक खुद ज़मीन देख रही थी, वहीं आसपास, वो वहीं की ज़मीन क्यों बेंचेंगे? मतलब, धोखाधड़ी का मामला है?

कोर्ट्स को शायद इतना-सा तो कर ही देना चाहिए की किसी को कोई आपत्ति है या नहीं, जैसा एक नोटिस, कम से कम पुस्तैनी ज़मीनो के केसों में घर तक पहुँचवा दें, अगर ज़मीन किसी के नाम हो तो भी। अगर ऐसा हो जाए तो कितनी ही औरतें या परिवार वाले, बेवजह के कोर्ट्स के धक्कों से बच जाएँ। हमारे इन रूढ़िवादी इलाकों में हक़ होते हुए भी, पुस्तैनी जमीनों को ज्यादातर आज भी, माँ, बहनें नहीं लेती। मगर इसका अर्थ ये भी नहीं होता, की कोई भी ऐरा-गैरा, नथू-खैरा या जालसाज़ उन्हें धोखे से अपने नाम कर ले। कोई इंसान पिछले कई सालों से दारु की लत से झूझ रहा हो, तो उसका मानसिक संतुलन सही है या नहीं, ये सर्टिफिकेट कौन देगा? वो जो सालों से उसे झेल रहें हैं, और बचाने की कोशिश कर रहे हैं? या वो, जिनकी निगाह, उसकी ज़मीन पे हैं? और ऐसे लोगों को ये ज़मीनों के खरीददार, पैसे भी देते होंगे? कुछ बोतल ही काफी नहीं होंगी? उसकी कहानी किसी और पोस्ट में। क्यूँकि, ऐसी कई कहानियाँ आसपास से सामने आई।      

अपने ही आदमी हैं? घर कुनबा है? इसीलिए, पब्लिक नोटिस लगाना पड़ रहा है, की किसी सुनील की कोई ज़मीन ना बिकाऊ थी, ना है। शराब लत वाले इंसान को बोतल देके, ज़मीन लेने की कोशिश ना करें। और अगर ये पेपर सच हैं, जो मेरे पास थोड़ा लेट पहुँचे हैं शायद, तो इसका साफ़-साफ़ मतलब ये है, की खरीदने वाला भगोड़ा इसीलिए हो रखा है की धोखाधड़ी है। वरना, मैसेज करो तो जवाब नहीं और घर जाओ तो गुल हो जाता है, भतीजा। 

सामाजिक सामान्तर घड़ाई मुबारक हो। आखिर इस पीढ़ी का नंबर भी तो, कहीं न कहीं से तो शुरू होना ही था? कितना बढ़िया हुआ है ना? अच्छा लग रहा है? बेहतर होता, अपने आसपास की सामाजिक सामान्तर घड़ाइयों से सीख लेके, ऐसे ओछे गुनाह से बचते। अगर शराबी चाचा की सच में कोई फ़िक्र होती, तो उसके वो हाल ना होते, जो हो रखे हैं। वो आजकल है कहाँ और रहता कहाँ है, या खाना वगैरह कहाँ खाता है, ये तो अता पता जरूर होगा? भगोड़ा होने की बजाय, बेहतर होगा की बुआ से संपर्क करें।      

Saturday, January 13, 2024

स्कूल और दो कनाल ज़मीन

कहानी अजीब-सी है 

जाने किसी को बचाने की है? 

या किसी को खा जाने की है? 

सामने वाले को ही? 

या शायद खुद को भी? 

जो भी है और जैसी भी है 

वो शिव की है?

या शिव कॉलोनी की?

वो शिव शक्ति बाज़ार की है?

या शशी की, शुशी की या सुशीला की?


वो 16-10 की है?

या 10-12 की? 

वो 8-12 की है?

या 24 की? 42? या 84 की?

वो 10 की है?

या 20, 30, 40, 50 या 60, 70 की?

वो 14 की है? 15 की?

या किसी और की?

पता नहीं 

मगर कहानी फ़िलहाल 2-कनाल की है 

और किसी स्कूल की। 

बस?

या किसी की ज़िंदगी की और मौत की? 

सिस्टम क्या है?

Inspiration of this post 

Systems achieve what they are designed to achieve. -- Google talk Jeff .... ?

And we can design systems as per our needs. 

अगर हमें पता है सिस्टम क्या है? कैसे काम करता है? किसके लिए काम करता है? तो हम अलग-अलग तरह के सिस्टम, जरुरत के हिसाब-किताब से डिज़ाइन कर सकते हैं। 

आप अपने आप में एक सिस्टम हैं। बहुत ही छोटा-सा, मगर बहुत ही जटिल-सा सिस्टम। एक तरह की जटिल मशीन। शायद दुनियाँ की सबसे जटिल मशीन। आप कुछ खास काम करने के लिए बने हैं। क्या हैं वो खास काम? वो खास काम करने के लिए आपको एक और बड़ा सिस्टम चाहिए। जैसे किसी भी मशीन को। क्यूँकि, आप भी एक मशीन हैं।  

अपना काम खुद करना: अपना काम खुद कौन-कौन करता है? कैसा काम खुद करते हैं? और कैसा औरों से करवाते हैं?   

अपना काम औरों से करवाना 

जैसे वॉशिंग मशीन अपने आप में एक सिस्टम है। मगर वो अपने आप काम नहीं करती। उसे काम करने के लिए भी किसी सिस्टम की जरुरत है। इलेक्ट्रिसिटी और पानी की फिटिंग। उसके बाद जब-जब उसे प्रयोग करना हो, तो सर्फ और गंदे कपड़े और टाइम वगैरह की सेटिंग करनी पड़ेगी। पड़ेगी, मतलब? ये वो सिस्टम है, जो अपने आप काम नहीं कर सकता। उसे अपना काम करने के लिए इंसान की जरुरत पड़ेगी। ये हो गया Semi automatic सिस्टम। इसी सिस्टम को अगर automatic वाशिंग मशीन के साथ भी फिट कर दें। तो भी सिस्टम तो आटोमेटिक हो गया। मगर इसपे काम करने वाला एजेंट इंसान ही होगा। सिस्टम कैसे इंसानों को कैसी-कैसी बीमारी देता है, ये ऐसे भी समझा जा सकता है। वो आगे विस्तार से किन्हीं पोस्ट में।    

ऐसे ही जैसे कार। कार अपने आप में एक सिस्टम है। मगर उसे काम करने के लिए पैट्रॉल या डीज़ल चाहिए। ठीक-ठाक रोड चाहिए। और चलाने वाला ड्राइवर भी। और वक़्त-वक़्त पे सर्विस भी। ये सभी मशीनों पे लागु होता है। इंसान पे भी।  

ऐसे ही कितनी ही तरह की मशीने हैं। सब अपने आप में किसी न किसी तरह का छोटा सा सिस्टम हैं। मगर उन्हें उनके काम करने के लिए थोड़ा बड़ा सिस्टम चाहिए। 

सामाजिक घड़ाईयाँ, मानव रोबोट्स बना अपना काम निकालना। शातीर इंसानों द्वारा आम-आदमी का शोषण। मतलब, आम आदमी को अपनी गोटी बना अपना काम निकालने वाले so-called बड़े लोग।   

इंसान भी एक मशीन है। एक सिस्टम है, बहुत ही छोटा-सा, मगर बहुत ही जटिल-सा सिस्टम। उसे भी काम करने के लिए, अपनी ज़िंदगी ठीक से चलाने के लिए एक सिस्टम की जरुरत पड़ती है। जैसे किसी वॉशिंग मशीन को या कार को, या माइक्रोवेव को। क्या आपके पास वो सिस्टम है? अगर नहीं है, तो क्या करेंगे? या तो जहाँ ऐसा सिस्टम है, वहाँ जायँगे या खुद ऐसा सिस्टम बनाएंगे। क्या आप वो करने के काबिल हैं? अगर हाँ। तो ज़िंदगी सही है। अगर नहीं, तो? आप आम हैं, खास नहीं। ये सुविधा हर जगह, सबके पास नहीं होती। या होती है? ये सुविधा भी एक तरह का पिरामिड है और आपका सोशल स्टेटस बताती है, किसी भी समाज में। इसे जानने के लिए, पहले कुछ शब्दों और परिभाषाओं को जानते हैं।  

सिस्टम क्या है?

क्या काम करता है?

कैसे करता है?

किसके लिए करता है? इसे जानो, बहुत कुछ समझ आएगा, सामाजिक सामान्तर घड़ाईयों के बारे में और उनमें निभाए गए या सही शब्द निभवाए गए आपके किरदार से, या आपके आसपास वालों के किरदारों से। 

तो पहले किस सिस्टम का अध्ययन करें? किसी बच्चे का? किसी जवान का? लड़के या लड़की का? किसी बुज़र्ग का? औरत या पुरुष का? ये हो जाएगा individualized system case study . 

या फिर किसी भी एक तरह की आसपास की किसी आम समस्या को पकड़ते हैं। और जानते हैं उसके सिस्टम के बारे में? खामियों के बारे में और उनमें हेरफेर कर समाधान के बारे में ?       

भूतिया संसार और फ्रोजन स्टेट (Frozen State)?

तांत्रिक विधा, भुतिया ज्ञान और शातीर इंसानों द्वारा, अनभिज्ञ, अज्ञान, आम-आदमी का शोषण?

आओ कुछ शब्दों को जानते हैं 

Frozen, जैसे की फ्रीजर, बर्फ जमाने के लिए, Deep Freeze भी कह सकते हैं। लैब में ये deep freeze -20 भी हो सकता है और deep freeze -80 भी, प्रोजेक्ट या किन्हीं experiments की जरुरत के अनुसार। Cold Room भी हो सकता है, जिसका तापमान ज्यादातर 0 से 4 तक होता है। और भी बहुत तरह के मापदंड हो सकते हैं।     

ये शब्द आपने कहीं Campus Crime Series में भी पढ़ा होगा? Veerbhan Lab Case (-20 Deep Freeze)। मेरे खिलाफ एक शिकायत होती है की मैंने डॉ वीरभान की लैब का ताला तोड़ा और कुछ सामान उठा लिया। हकीकत ये थी की काफी वक़्त से डॉ वीरभान के खिलाफ शिकायतें हो रही थी, सिर्फ मेरे द्वारा नहीं, बल्की बाकी फैकल्टी द्वारा भी। खासकर ये, की उसने World Bank प्रोजेक्ट से 1 करोड़ का सामान अपनी लैब में रख लिया, प्रोजेक्ट के नियमों के खिलाफ और फैकल्टी की शिकायतों के बावजूद। उन दिनों, दुबारा joining के बाद, सबकुछ जैसे मेरे सिर के ऊपर से जा रहा था। इधर, उधर, उधर, शिकायतों के ढेर जैसे। उन शिकायतों में बहुत कुछ ऐसा था, जो किसी और ही जहाँ का था। कोड वाला गुप्त-गुप्त जहाँ। 

बचपन से आपकी कंडीशनिंग, किसी सिस्टम की हुई हो। मगर अचानक से आपको ढेर सारी अलग-अलग तरह की जानकारी का सामना करना पड़े। भाषा वही, जो आप बचपन से जानते हैं। मगर उसकी परिभाषा बहुत ही अलग, विचलित करने वाली। आपको समझ ही ना आए की आप कौन से जहाँ में हैं और ऐसे हालातों में कोई शिकायत करे तो कहाँ करे? जितना ज्यादा जानने की कोशिश, उतनी ही ज्यादा शिकायतें। फाइल्स पे फाइल्स। ना लोगों के कारनामें समझ आ रहे थे और ना ही हकीकत क्या है, जबरदस्ती क्या और गुनाहों को छिपाने के लिए तहों पे तहें कितनी? फिलहाल कैंपस क्राइम सीरीज को यहीं छोड़ते हैं। क्यूँकि, ये सब जानने-समझने के लिए मैं नौकरी ही छोड़ चुकी। या कहना चाहिए की छूटा दी गई थी जबर्दस्ती, रोज-रोज के ड्रामों और फाइल्स के किस्सों ने। 

मगर इसी दौरान कुछ अलग तरह की जानकारी का अध्ययन शुरू हो चुका था। कैंपस क्राइम सीरीज के अध्ययन ने उसमें काफी अहम भूमिका अदा की। उसे बार-बार पढ़े बगैर, इतना कुछ समझना मुश्किल था। इनमें आसपास की कुछ अजीबोगरीब बीमारियाँ और मौतें, किसी रहस्य की तरह जैसे ध्यान आकर्षित कर रही थी।वक़्त के साथ समझ आया की बहुत कुछ कैंपस क्राइम फाइल्स का और यहाँ के आसपास लोगों के जीवन के उतार-चढ़ावों का मिलता-जुलता-सा है। मगर कैसे? जैसे किसी में भूत आ गए हों और वो बोल रहे हों। आसपास के कुछ लोगों के शब्द यूँ लग रहा था, जैसे वो खुद नहीं बोल रहे, कोई उनसे बुलवा रहा हो। मगर इन लोगों की तो ये हकीकत की ज़िंदगी में ऐसा कुछ हो रहा था। हो रहा था या करवाया जा रहा था? मगर क्यों? इस क्यों को मेरी अपनी यहाँ की जानकारी, इधर-उधर से कुछ हिंट्स और घरों या स्कूलों के डिज़ाइन ने समझने में मदद की। कदम कदम पे हर चीज़ किसी जाले की तरह है, अलग-अलग पार्टियों द्वारा अपने मनचाहे किरदारों को घड़ने के लिए। 

Freeze से शुरू किया है तो Freeze वाले भूतों से ही जानने की कोशिश करते हैं।   

जब मैं यहाँ गाँव आई तो किसी लड़की की बातों ही बातों में कोई खास शिकायत रहती थी। उसकी सास फ्रीज पे भी ताला लगा देती है। फ्रीज़ पे ताला? क्यों? अब सास-बहु के कैसे-कैसे किस्से आपको मिल जाएँगे। क्या खास है? समाधान ऐसी सास से थोड़ा दूर रह लो। अपना घर, अपना सामान, अपना-अपना काम, शायद एक समाधान है। ऐसा ही कुछ और भी कई तरह के केसों में हो सकता है, जैसे नशेड़ी लोगों से सामान की रक्षा के लिए। या बेवजह के कौतुकियों से, तू-तू, मैं-मैं खत्म करने के लिए? आम-आदमी की आम-सी रोजमर्रा की शिकायतें या परेशानियाँ। बहुत ही छोटी-छोटी सी शिकायतें, जैसे ज़िंदगियों को ख़त्म कर रही हों। जिन्हें जानकर लगे की इनके हल तो बहुत आसान हैं। ये भी कोई समस्याएँ हैं? इन सबसे ये भी समझ आया, की जिन समस्याओं को तुमने अपनी ज़िंदगी में इतना बड़ा बना रखा है, शायद वो भी किसी के लिए उतनी बड़ी ना हों। तो समाधान शायद दिमाग का थोड़ा हेरफेर ही है।   

क्या हो, अगर फ्रीज को हम Frozen State कह दें? या मीडिया कल्चर का स्टोर? हाँ ! स्टोर ही तो करते हैं फ्रोजन स्टेट में माइक्रोब्स को। Hibernation जैसे? या शायद Dormant स्टेट जैसे?

एक तरफ सास-बहु फ्रीज़ लॉक समस्या? 

दूसरी तरफ माँ की नशेड़ी बेटे की समस्या और फ्रीज लॉक? 

कुछ और भी है इस खास तरह के स्टोर में --

ड्राइंग रुम और बाथरुम के बीच बना कोई plywood का स्टोर। ड्राइंग रूम की खिड़की स्टोर में और स्टोर से एक छोटा-सा झोंका जैसे बाहर लॉबी में। मगर दोनों ही खिड़कियाँ ज्यादातर बंद रहती हैं। स्टोर Plywood पे लिखे सब अक्सर उल्टे। जैसे SUNLEADERS अंडरलाइन R से U तक। इसके शब्द के बीच सुरज सा डिज़ाइन, वो भी उल्टा हो गया। S REDAELNU S 

RED COLOUR से समस्या? कब से? कभी तो कार तक RED COLOUR की होती थी, वो भी VARNA। सुना जो नहर में भी कुदाई थी। कैसे हो सकता है इतना सब, बिना इन पार्टियों के धकेले? 

TATA AIG DUBAI   9-11, 2009  

यूनिवर्सिटी कैंपस, बाथरूम, खिड़की, स्टोर, अलमीरा PLYWOOD और "दिया" डिज़ाइन    

आओ थोड़ा-सा और जानते हैं, सामाजिक घड़ाईयों के कोढ़ वाले इस संसार को। जैसे किसी बच्चे या कुछ बुजर्गों को नहीं पता की एन्जॉय का मतलब क्या है? जैसे तारे जमीन पे अच्छी मूवी है, वैसे ही 3-Idiots और उसका जॉय सिंह। फिर से आत्महत्या जैसा कुछ है? या कुछ और मामला है? इधर-उधर के कुछ हादसों को सच में थोड़ा और जानने की जरुरत है। जैसे लाला आत्महत्या? उससे पहले उसके किए गए काम। बैड या दिवान? ना ट्रक जैसे और PLYWOOD पे लिखा है ASSAM? कहाँ से और कैसे आते हैं ये कोड? फर्नीचर पे, घरों पे, गाड़ियों पे? मुझे भी कुछ साल पहले तक नहीं पता था। तो उसे या उस जैसे कितने ही कारीगरों को कहाँ पता होगा? 

Frozen State और किसी स्टोर का कोई लेना-देना हो सकता है?  

किसी स्टोर या बाथरुम का? या किसी माँ के स्टोर और कैंपस में किसी खास स्टोर का? या किसी पड़ोसी का स्टोर और? अरे, इतने दिमाग किसके, कैसे और क्यों चलते हैं?        

थोड़ा Media Immersion को समझते हैं 


 Patri dish (फोटो इंटरनेट से ली गई है) 
उसमें कुछ सुक्ष्म जीव की कॉलोनीयां 

एक कॉलोनी में हजारों लाखों सुक्ष्म जीव हो सकते हैं। थोड़े से जीवों को सही Growth Medium देके और सही वातावरण देकर उनकी हज़ारों लाखों में कॉलोनी बना Deep Freeze में सालों-साल स्टोर कर सकते हैं। जब चाहें उन्हें निकाल के, अपने एक्सपेरिमेंट के लिए प्रयोग कर सकते हैं। मगर Deep Freeze में कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए। उसे 24 घंटे या तो बिजली सप्लाई सुनिश्चित हो या ऐसा कोई जहाँ, जैसे ये Nordic Countries. नहीं उससे आगे भी बहुत कुछ है। 
कहीं फ्रोजन स्टेट है तो कहीं sunshine स्टेट भी है। और इनके बीच में कितने ही इंदरधनुषी रंग भी। 

क्या है वो? 

सोशल मीडिया कल्चर और सोशल इंजीनियरिंग  
हर छोटी-बड़ी कल्चर एक तरह की कॉलोनी है। बड़े ही वैज्ञानिक ढंग से बनाया हुआ सिस्टम, जिसमें रीती-रिवाज़ और धर्म या किसी भी तरह का विस्वास बहुत अहम है, उसको बनाने में और चलाने में। जानते हैं छोटे से बड़े सिस्टम और कॉलोनियों की कहानियाँ, खुद लोगों की ज़िंदगियों के हकीकत के जीवन से। और उनका वहाँ की राजनीती से किस तरह का लेना-देना है?   

Friday, January 12, 2024

दो अलग-अलग दुनियाँ (Two-Worlds like Opposite Poles)

हे बेबे वाला जहाँ 

मैं तो 10-12 साल की ए ब्याह दी थी। आदमी मर ग्या, तै बडे का लता उढ़ा दिया। एक छोरा था, वो भी नहीं रहा। सारी ज़िंदगी टेँशन-बीमारी मैं, आड़-ए काट दी। जित आई थी, उडे-ए-ते अर्थी जागी। अर एक आजकाल के बालक, सर के ऊपर क जां सैं  ब्लाह, ब्लाह, ब्लाह।  

दादी ईब वें आपके वक़्त वाली, दुखयारी-ज़िंदगी क्युकर जीवें? आप पता नहीं कौन-सी सदी के हो? 

ना ए बेबे, आजकाल के बालक घने दुखी लागे मैंने तो। पहलयॉँ कहा करते शहरां के इसे हाल हैं। इब तै गामां का भी नास जा रहा स, कती। शहर आलें नै के कहवाँ? 

बेकार? बेरोजगार? या नशेड़ी जहाँ? 

ये लोग ना घर में कोई काम के, ना बाहर कोई काम करना? हाँ। जहाँ ये होंगे, वहाँ आसपड़ोस भी इन्हें भुगत्तता मिलेगा जैसे। 

पहले मुझे लगता था की ये खुद ही कामचोर हैं, इसलिए ये हाल हैं। मगर जब से सिस्टम और इसके कोढ़ वाले सामान्तर जहाँ को जानना शुरू किया है, तब से समझ आया की ये तो इस सिस्टम की देन हैं। ये जो कुछ बोल रहे हैं या कर रहे हैं, वो सब इनके पास कैसे और कहाँ से आता है? बिलकुल हकीकत की नौटंकियाँ जैसे। जैसे सिर्फ आदमी रुपी शरीर का खोल इनका हो मगर जुबाँ जैसे कोई और बोल रहा हो या रहे हों। बिलकुल भुतिया संसार जैसे। कई केस स्टडीज़ की किताबें लिखी जा सकती हैं, इस संसार पे। 

पढ़ा कहीं "System will achieve what it's designed to achieve."   Jeff  ...... ?

एक तरफ ज़िंदगी जीने के लिए बेसिक लाइफ सपोर्ट सिस्टम तक नहीं। बल्की, गरीब, अनजान, अज्ञान या असहाय लोगों का फायदा उठाता और उन्हें खाता, आसपास का ही, बस थोड़ा-सा ज्यादा अमीर या निर्दयी जहाँ? People who have not even basics on the name of life support system. Their brains are like arrested or taken away or blocked by shrewd mean people in the surrounding itself.  

और दूसरी तरफ, ये Humanoids की तरफ बढ़ता जहाँ 

Humanoid, इंसान और मशीन का मिलाजुला टैक (Technology) का ये नया संसार            

Humanoids and Smart Brainy Machines


इंसानों-सी दिखती और इंसानों-सा व्यवहार करती ये मशीनें 


देखो और सोचो, कल तक जो सिर्फ Sci-Fi मूवीज का जहाँ था, वो आज हकीकत की तरफ बढ़ रहा है। उसे बनाने वालों ने क्या-क्या पढ़ा होगा? और क्या-क्या प्रयोग किए होंगे, इंसानो पे भी? तभी संभव हो सकती हैं, ऐसी मशीनें। आगे और जानेंगे रोबोट्स के बारे में थोड़ा विस्तार से। तब शायद आप सामाजिक सामान्तर घड़ाईयोँ वाले संसार को जान और समझ पाएँ और बच पाएँ थोड़ा बहुत उसके दुस्प्रभावों से।     

सहायक रोबोट्स

जिनके लिए Biomimicry थोड़ा ज्यादा वाला hitech संसार हो गया, ये पोस्ट उनके लिए। चलो थोड़ा हॉउस हैल्प रोबोट्स या सहायक रोबोट्स से मिलते हैं।  

जिसे हम काम वाली, आया, हैल्पर, डोमैस्टिक हैल्प जैसे नामों से बुलाते हैं, अगर उनकी जगह मशीने काम करने लग जाएँ तो? ये चूहा-दौड़ की पैदाइश ज्यादा हैं शायद, या कहो जरुरत शहरों की भागदौड़ वाली ज़िंदगी की? या जितनी ज्यादा टेक्नोलॉजी बढ़ेगी, उतना ही ज्यादा मशीनों का प्रभाव, बुरा या भला। मिलते हैं कुछ सहायक मशीनों से और जानने की कोशिश करते हैं, थोड़ा-बहुत उनके बारे में की वो कैसे काम करती है। 

सहायक रोबोट्स अलग-अलग तरह के होते हैं, काम के अनुसार। जैसे Domestic हैल्प के रूप में : 

वैक्यूम क्लीनर रोबोट्स (Vacuum Autocleaners)

लॉन मोवर रोबोट्स (Lawn Automovers)

क्लोथ्स आयरन और फोल्डिंग रोबोट्स (Cloths Iron Smart and Foldimate Type Robots)

बच्चों के खिलौने या पढ़ाई के हेल्पर्स (Personal Helps, Entertainments Toys and Educational Robots)

खेती-बाड़ी में सहायक या डेरी हैल्पर्स (Farm Helps Robots)

स्विमिंग पुल क्लीनर्स (Pool Cleaners Robots)

और भी बहुत तरह के रोबोट होते हैं। जैसे -- 

स्कूल, यूनिवर्सिटीज में पढ़ाने के लिए या शोध में सहायक 

तरह-तरह की कंपनियों या फैक्टरियों के अलग-अलग उत्पाद बनाने में सहायक 

सेना, थल, जल और वायुसेना या मिलिट्री सहायक रोबोट्स 

जिनका खतरनाक रुप Humanoids भी हो सकते हैं और Biomimicry Style कोई और जीव भी। मतलब, सिर्फ मशीन ना होके, मशीनों और जीवों के मिश्रित रोबोट। 

इनमें सबसे खतरनाक अभी तक सामाजिक घड़ाईयोँ के रुप में जो समझ आया, वो है, इंसान को ही रोबोट की तरह प्रयोग करना या कहना चाहिए की ज्यादातर दुरुपयोग। वो भी खुद उनके अपने खिलाफ। और उसपे ऐसे, की उन्हें खबर तक नहीं। लगे ऐसे, जैसे वो सब खुद ही कर रहे हैं या बोल रहे हैं। बाकी रोबोट्स के बारे में तो थोड़ा बहुत पढ़ा हुआ था या मूवीज में देखा हुआ था। मगर मानव रोबोट घड़ाई के इस संसार को जानना और रोज-रोज यूँ सामाजिक सामान्तर घड़ाईयोँ के रुप में देखना, मेरे लिए वैसे ही नया है जैसे कोढ़ वाले संसार को जानना। और भेझा खराब करने वाला (विचलित करने वाला) भी, लोगों की ज़िंदगियों पे इनके दुस्प्रभाव देखके, जो ना बच्चों को बक्शते हैं और ना ही बुजर्गों को।       

इस पोस्ट में ज्यादा जटिल रोबोट्स की बजाय, छोटे-मोटे रोजमर्रा के कामों में प्रयोग होने वाले रोबोट्स से मिलते हैं। क्यूँकि, वो इस रोबोटिक संसार की जैसे ABCD हैं।