खंडहरों में भी शायद कोई तो जीवन होगा?
कैसा?
खंडहर-सा सामान, खंडहरों में?
बेक़द्र-सा सामान खंडहरों में?
ज़रा, गला, सड़ा-सा सामान खंडहरों में?
किसके लिए?
और क्या धेला किम्मत होगी, ऐसे सामान की?
या ऐसे खंडहर की?
या शायद
वो भी कोई भूत-सा होगा, किसी राजनीती का?
राजनीती के ताने-बानों का?
420-सा जैसे?
या चाची-420?
मगर कौन-सी चाची-420?
ये? जिसे वक़्त के थपेड़े या राजनीती के जाले
बाहर निकाल रहे हैं?
या वो?
जिन्हें आप जानते ही नहीं?
जानते भी हों, इधर-उधर से?
तो शायद ही कभी मिले हो शायद?
और जो अपने ठपे आप पर जड़कर चल देते हैं?
ऐसे जैसे,
बड़े लोग खेलते हैं, फ़ाइल-फ़ाइल
ऑफिस में, कोर्ट्स में
मगर,
उनके वकील लड़ते हैं, उनके केस, मुकदमे
वो शायद ही कभी देखते हैं, इन कोर्टों के द्वार
या जेलों की सलाखें
आप और आपके माँ-बाप या बुजुर्ग भुगतते हैं
मान सम्मान, पैसे का ख़ात्मा और ज़िंदगियों की बर्बादियाँ?
मगर आप?
उनकी घड़ी सामान्तर घड़ाइयों को जीते हैं।
उनके लिए लड़ते हैं, झगड़ते हैं?
जेल भी उनकी दी हुई जाते हैं?
आदमी भी आपके वही खा जाते हैं?
और फिर ये भी बोलते हो,
दीदी ये हो क्या रहा है?
आपको जब दिखाया और समझाया भी जा रहा हो
तो कितना आप देखते-समझते हैं?
मना करने के बावजूद,
उनकी नौटंकियोँ का हिस्सा होते हैं?
वैसे, जब ये सामान यहाँ रखा गया, किसे ऐसे और कैसे-कैसे, इसके मायने पता होंगे?
वैसे इसके कोड क्या हो सकते हैं? जिसका ये सामान या बैल्ट नम्बर है , उनके अपनों ने ही पत्नी और खुद के बच्चों को किसी खंडहर में या भूतकाल में रोका हुआ है?
वैसे ही जैसे, भाई का स्टोर या सुनील का कोठड़ा? हर चीज़ जैसे उन्हीं के खिलाफ? उन्हीं के खात्मे की तरफ? जो ये सब बताने लगता है, उन्हें तो शायद मेन्टल सर्टिफिकेट थमा दिए जाते हैं?
शायद ज्यादातर ऐसे-ऐसे स्टोरों का यही हाल है?
पता नहीं, मैं सच कह रही हूँ या झूठ?
ये पढ़ने वालों पे छोड़ दिया।
कैसे तुम्हारे केस तुम्हारे अपने नहीं हैं, बल्की राजनीती के महारथियों के थोंपें हुए हैं ?
सामान्तर घड़ाईयाँ?
जानने की कोशिश करते हैं, अगली पोस्ट में।
यही खंडहर बजते रहते हैं
खाली-पीपड़े से,
थोड़े-से हवा के झोंके से भी?
खंडहर हिल जाते हैं
थोड़े-सी आँधी से ?
खँडहर गिर जाते हैं
थोड़ी ज्यादा आँधी से ?
ये सच है या झूठ,
ये आप सोचें
आप पर छोड़ दिया है।
खंडहरों में भूत तो पता नहीं
पर बीमारियाँ पनपती हैं
विवाद पनपते हैं।
और खंडहरों में अक्सर,
सबसे कमजोर लोग पनाह लेते हैं
और खुद भी खंडहर-से ही हो रहते हैं?
या शायद भूत और यादें?
ये सच है या झूठ,
ये आप सोचें
आप पर छोड़ दिया है।
खंडहरों की खाते-पीते घरों को जरुरत नहीं होती
कुछ बड़े लोगों के बुजर्गों के यादों के महल
अक्सर खंडहर हो रहते हैं?
क्यूँकि, उन्हें उन यादों की जरुरत नहीं होती।
और ना ही कद्र?
वो यादें उन्हें शायद आईना दिखाती हैं
की आप यहाँ से उठकर गए हैं?
जिनसे शायद उन्हें शर्म आती है?
क्यों?
पता नहीं।
ये सच है या झूठ,
ये आप सोचें
आप पर छोड़ दिया है।
मगर ऐसे-ऐसे खंडहर अक्सर
खतरा बन जाते हैं
आसपास रहने वालों के लिए
इन खंडहरों को सालों-साल
इनके so-called मालिक सँभालने तो क्या
देखने तक नहीं आते।
ना ही वो इन्हें, आस-पड़ोस को देते हैं
जो सँभाल सकें।
so-called इसलिए, की जिन्हें ना उसकी जरुरत
और ना ही कद्र
तो क्या?
सिर्फ आसपास वालों की सिरदर्दी के लिए, नाम भर रखा हुआ है?
ऐसे-ऐसे खंडहरों के बारे में
ये सच है या झूठ,
ये आप सोचें
आप पर छोड़ दिया है।
इन खंडहर वालों के कुछ यारों-प्यारों का
सामान भी रखा होता है, शायद,
ऐसे-ऐसे खंडहरों में ?
ऐसा सामान,
जिनकी उन्हें भी ना जरुरत होती और ना कद्र?
उस सामान वाले भी
शायद ही कभी, सँभालने या साफ़-सफाई करने आते हैं।
और ना ही वो सामान किसी जरुरतमंद को देते।
और वो सामान भी गलता रहता है, सड़ता रहता है
बिलकुल उस खंडहर की तरह।
दूसरी तरफ,
ऐसी जगहों पे, ऐसे लोगों की भी भरमार होती है,
जिनके सर छत तक नहीं होती?
इन खंडहर के मालिकों को
ऐसे-ऐसे इंसानो से प्यारे तो कुछ और जीव प्यारे होंगे?
खंडहर में भी शायद जीवन पनपता होगा?
कैसा जीवन पनपता होगा, ऐसे खंडहरों में?
भिरड़ों के छत्ते ?
चमगादड़ों के झुंड?
चूहों के बिल?
आर-पार, इधर वाले घर में?
उधर वाले घर में?
और बाहर गली में भी?
कितनी ही तरह की मकड़ियाँ?
साँप भी शायद?
और कितनी ही तरह के ऐसे-ऐसे जीव?
वो कहते हैं ना
की इस खंडहर के आसपास पैर भी सोच-समझकर रखना
पता नहीं कौन कीड़ा-मकोड़ा काट ले?
कीड़े-मकोड़ों के बिल और कतारें?
और उनका किया हुआ गोबर?
हाँ। ऐसे-ऐसे जीवों का गोबर
वो भी तो वहीँ सड़-सड़ के खाद बनता रहता होगा?
और सुगँध (या दुर्गन्ध)?
जीना हराम कर देती होगी, आसपास वालों का?
कभी हवा के झोंकों से,
तो कभी ठहरे हुए पानी से?
शायद बड़े लोग (so-called बड़े) जानबुझकर ऐसा करते हैं?
ताकि उनकी औकात का अंदाजा, आसपास वालों को लगता रहे?
या शायद दरियादिली का भी?
क्यूँकि, अक्सर ऐसे-ऐसे लोग ही फिर,
यहाँ-वहाँ, छोटा-मोटा दान करते भी तो नज़र आते हैं?
दान?
गायों को शायद?
या गरीबों को?
जाने दान करने के लिए?
या फोटो करवाकर और विडियो बनाकर,
सोशल मीडिया पर रखने के लिए?
ताकि जनता को लगे
अरे वाह! बड़े दानी हैं ये तो?
और गरीबों को याद रहे ज़िंदगी भर
वो तन ढकने को एक बार दी गई कोई साड़ी या सूट?
कोई धोती या कुरता?
कोई मिठाई का डिब्बा या 100-200 रूपए का दान?
कोई बच्चे की फीस-माफ़ी?
या गायों को दिया गया चारा?
मगर यही दानी-लोग, बड़े-लोग?
नहीं दिखाते, उसी जनता से वो लूटते क्या-क्या हैं?
जाने क्यों, उसको छुपा-छुपा कर रखते हैं?
बड़े, महान-दानी लोग?
सुना है रात को कोई आँधी का झोँका आया था?
वो ऐसे-ऐसे दरवाजे और खिड़कियों को बजाता
और हिलाता-डुलाता रहता है?
इतिहास ये बताता है, की T20 कब शुरू हुआ?
ये भी बताता है, की COVID CORONA कब आया?
या COVID CORONA ही क्यों?
और भी तो ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी कितनी बीमारी?
ये CO FEE के बारे में भी कुछ बताता होगा फिर तो?
ये कैसी FEE है? या कैसा लगान या टैक्स?
कब और क्यों शुरु हुआ?
इतिहास इंसान के बारे में या उससे सम्बंधित बिमारियों के बारे में ही नहीं बताता। बल्की सुना है की भगवानों और भगवानियों के बारे में भी बताता है। कौन भगवान या भगवानी कब पैदा हुए? कब उनके रुप-स्वरुप, नाम या भेष बदले? कब रिश्ते-नाते? और कैसे-कैसे?
सुना है कुछ लोग बीमारी सुन-सुन के ही परेशान हो चुके। कह रहे हों जैसे, "छोरी तू घणी बीमारी-बीमारी ना गाया कर"। वो कहते हैं ना जैसे, हट बीमारी कहीं का या कहीं की।
कोई ना, बीमारी-बीमारी सुनके दुखी हो लिए, तो थोड़े भगवान और भगवानीयों की खबर ले लेते हैं? म्हारे हरियाणा आले सुना, एंडी होया करें। जब रेरे माटी पिटन लागें, तो छोड़या भगवान-भगवानियाँ भी ना करें। कैसे? जानते हैं अगली पोस्ट में।
ये पार्टी जीती है, ना वो पार्टी हारी है? कुछ-कुछ ऐसा ही?
वैसे चुनाव पाँच साल में एक बार होते हैं? या हर रोज किसी ना किसी रुप में चलते ही रहते हैं?
जो नंबर किसी चुनाव के बाद आता है, वो कितना स्थाई या अस्थाई होता है?
सबसे बड़ी बात, उस नंबर को अस्थाई कौन से कारण बनाते हैं?
किसी भी जगह के चुनाव, कितने स्थानीय और कितने बाहर के कारणों की वजह से बनते या बिगड़ते हैं?
मत - दान? क्या वही होता है, जो आम आदमी, वोट वाले दिन EVM के द्वारा डालता है?
या मतदान की गणना उस दिन के बाद भी परिणाम आने तक बदलती रहती है?
जैसे अगर हवा का रुख दक्षिण अमेरका का हुआ, तो बीजेपी बोलेगी 300 पार?
और अगर उत्तरी पोल (यूरोप) की तरफ का कहीं रुख हुआ, तो कांग्रेस और दूसरी पार्टियों की बल्ले-बल्ले?
ये संसार के इधर या उधर के रुख से डावाडोल होते आँकड़े, सिर्फ मीडिया घरानों तक का शोर होते हैं?
या हक़ीक़त यही है?
मतलब, मीडिया ने जो चुनाव परिणामों के दावे किए थे, वो उस वक़्त की हवा का रुख बता रहे थे?
और जो परिणाम आए, वो परिणाम के आसपास की हवा का रुख?
इसका मतलब तो EVM, एक धोखा है? ऐसे जैसे, कोई हवा का झोंका है?
ये एक छोटा-सा एक्सपेरिमेंट था, जो काफी वक़्त से रहस्य-जैसा बना हुआ था। बाकी हकीकत तो जानकार या विशेषज्ञ बेहतर बता सकते हैं। ऐसी ही वजहों से शायद मेरा मीडिया में इतना इंटरेस्ट बढ़ गया है। कितना कुछ पता होता है, इन मीडिया वालों को?
जैसे कुछ नेताओं के सोशल मीडिया को मैं खास तौर पर फॉलो कर रही थी। मेरे अपने हरियाणा या दिल्ली के कुछ नेता। कुछ हिंट्स इस दौरान यहाँ-वहाँ से जो मिले, वो थोड़े अजीब लगे। जैसे, दीपेंदर हुडा कहे "अबकी बार रोहतक 400 पार" ।
अरे आप कौन-सी पार्टी से हैं? या इसका मतलब?
ऐसे ही जैसे, केजरीवाल का जेल ड्रामा। ड्रामा, मगर हकीकत। खासकर आतिशी का प्रेस में ब्यान, खासकर कूलर से सम्बंधित। अरविंद केजरीवाल को मारने की कोशिश हो रही हैं। दूसरी तरफ, ये कूलर ड्रामा कहाँ चल रहा था? क्या का क्या बनता है यहाँ? ऐसे ही जैसे इस खेल में मौतें तक ड्रामा होती हैं, मगर घर के घर खा जाती हैं।
जनता को जो दिखाई ही नहीं दे रहा, वो सब समझ कैसे आएगा?
आम आदमी को यही कहा जा सकता है की ये दुनियाँ वो नहीं है, जो आपको दिखाई या सुनाई दे रही है। या समझ आ रही है। टेक्नोलॉजी के संसार ने इस दुनियाँ को आम आदमी की समझ से काफी परे धकेला हुआ है। मगर, समझना बहुत ज्यादा मुश्किल भी नहीं है। अगर नेताओं के ऐसे-ऐसे बयानों को समझने की कोशिश करोगे तो, जैसे दीपेंदर हुडा कहे "अबकी बार रोहतक 400 पार"। हमारे नेतागण शायद खुद समझाने की कोशिश करते लग रहे हैं?
ठीक वैसे जैसे बाकी पार्टी के नेता कुछ का कुछ बोलते हैं। वैसे ही जैसे मोदी के बादल और राडार। या वैसे ही जैसे, अरविन्द केजरीवाल का शुगर और आम। या वैसे ही जैसे?
ऐसे ही कितने ही जैसे, आप देख-सुन-समझ कर खुद बताईये।
N state and nazi state are one and same thing?
And what it has to do with Modi?
Since when people started correlating them with nation? Nation state?
Interestingly, you will find this word, even in some universities special talks, programmes and even in some projects. Wonder, if those universities have some special affection with this nazi state or N state or whatever it is? It has such an off factor that wherever I see it, I feel like backoff, that's not the place you are looking for.
Kiddos games?
Adults games?
Elders games?
Or
Games as study? Research? Politics? Business? Is not that sounds too much?
Heard video games? Right?
BUT
Political games?
Social engineering games?
Human behavior or living beings/systems, behaviour study and analysis games?
Games for study or Research? What about responsible and irresponsible factors? And Consecuences? Who will take the responsibility, when things go wrong in games designs or their execution?
Who cares?
Regressive and Progresive Development Designs?
Games just like video games or movie or serials games like
Game of Thrones?
Dungeon and Dragons 5E?
Baldur's Gate 3?
Dead by Daylight?
Legue of Legends?
World of Warcraft?
Minecraft?
And list is endless.
Or?
Degrees for games designing and development? And yes, they are mind games.
Serious games?
To turn tables?
To turn chairs?
To tackle social problems? To take society forward or backward?
To make a healthy society?
Or by ill-will creation of diseases, meyhems, chaos, war like situations? Destryoing societies with ill intentioned designs?
Interactive Responses, infrastructure, systems, screens, use or abuse of living beings, ethical issues and dilemmas?
How many degree programs or institutes are there in India, working in these fileds and technologies? Professional designers or teams leading the society in certain direction? Rather, our institutes and politics are busy in exploiting less educated or vulnerable people? Social tales of Social Engineering, seems an indication of that?
कभी-कभी आप सर्च कुछ कर रहे होते हैं, और पहुँच कहीं और ही जाते हैं? Game Designs and Development ऐसा ही विषय है, मेरे लिए भी। थोड़ी बहुत जो इसकी हिस्ट्री पढ़ी, वो और भी ज्यादा रौचक है।
Incell
Leg4
Fees, Families, Foster care
Uses and Abuses
Overwhelmed====== Bullying
Denying, facts of abuses
Universities, their interesting projects and view points.
But people want views on politics and current state of political affairs and elections revolving around them?
can also be a book?
An interesting book?
Who's who kept on dragging or kept a hold on that file for so long?
Even after going to Finance Officer table, it can take how many days? Months? Or?
2021, सुना Resignation accept हो चुका। Post Written on 21-11-2023
मई 2023, घर भी खाली कर दिया। और लिखित में और फोन पे बताया भी जा चुका। 6 महीने बीत चुके, मगर बचत पे कुंडली, अभी भी कायम है। क्यों? कितना और वक्त लेंगे, जाहिल, आदमखोर लोग, किसी Employee की एक छोटी-सी बचत को भी देने में?
सुना फिर से वही, भारद्वाज के यहाँ कहीं फाइल अटकी पड़ी है? कुछ धंधे की "फलाना-धमकानाओं" को, अभी तक लग रहा है, की कोई धंधा करने आएगी, उनके लिए? सच में?
28-11-2023
आज बहुत वक़्त बाद फोन उठा भारद्वाज मैम का। वो भी ये बताने को, की अब फलाना-धमकाना सुपरिंटेंडेंट है, वहाँ। कुछ नया नहीं। वही घिसे-पिटे पुराने पैंतरे, फाइल्स को महीनों, सालों या लोगों की मौत तक अटकाए रखने के।
4-12-2023
M ?
M हैं क्या आप? जैसे रोड़ा कोई? या खूंठा? महाबली तो नहीं कहते आप खुद को? या 10 -15 % से भी थोड़ा आगे निकलके, 50 % या 100 % कमीशनखोर? वही घिसे-पिटे पुराने पैंतरे, फाइल्स को महीनों, सालों या लोगों की मौत तक अटकाए रखने के।
19 से आगे क्या आता है? 29? 39? 49? 59 ? 69? 79? 89? 99? और कितने ही 9999999?
बचत पे कुंडली, अभी भी कायम है। क्यों? कितना और वक्त लेंगे, जाहिल, आदमखोर लोग, किसी Employee की एक छोटी-सी बचत को भी देने में?
04.03.2024
ऐसा भी नहीं है की सिर्फ मेरी बचत के साथ ऐसा हो रहा है। बाकी जो घर में बचे हैं उन्हें भी किसी ना किसी तरीके से ठिकाने लगाने का काम चल रहा है। उन्हें शायद अभी तक समझ नहीं आ रहा। मुझे दिख भी रहा है। सबकुछ घर में उन्हीं द्वारा (?) उन्हीं के खिलाफ रखा जा रहा है। घर की हर चीज़, हर हलचल जैसे चीख-चीख के बोल रही हो, सबको खाने की तैयारी चारों तरफ से चल रही है।
Social Tales of Social Engineering
ये तो कुंडलीमार से आगे भी कुछ हो गया। कुंडलीमार की बजाय आमदामखोर लोगों के लिए लिखना चाहिए। Assisted Murders में ये सब आता है, जो आम-आदमी को ना दिखता और ना ही समझ आता है, मगर होता है बड़े ही गुप्त तरीके से।