Social Tales of Social Engineering
इसके आगे कुछ लगाना भूल गई थी। अब लगा दिया है। मीडिया (Media) और ये हो गया
Media and Social Tales of Social Engineering
क्यूँकि, मीडिया के बैगर कुछ भी संभव ही नहीं है। मीडिया वो पर्यावरण ( Environment ) है, जिसमें आप पैदा होते हैं। जिसमें आप साँस लेते हैं। जो आप खाते-पीते हैं। पहनते हैं, जैसे आप बोलते हैं या सोचते हैं। जहाँ आप रहते हैं। पढ़ते-लिखते हैं या नौकरी करते हैं। जो कुछ भी आप देख, सुन या अनुभव कर सकते हैं, वो सब मीडिया है। उससे भी आगे जिसका आपको ज्ञान नहीं है और जो रहस्मई तरीके से, चोरों की तरह आपके आसपास छुपा है, वो मीडिया है। जो आपको देख सकता है, सुन सकता है। सबसे बड़ी बात जो आपको कुछ का कुछ अनुभव करवा सकता है। जो आपकी ज़िंदगी को, आपकी जानकारी के बिना कंट्रोल करता है, वो मीडिया है।
इसी मीडिया में छुपा है, आपकी ज़िंदगी कैसी चलेगी उसका राज। उसमें कैसी खुशियाँ या हादसे होंगे, उनके राज। आपके स्वास्थ्य और बिमारियों के राज। आपकी लम्बी आयु या जल्द मौत के राज तक को जानने में सहायक है ये। जब ये सब समझ आना शुरू हुआ, तो ध्यान आया Microlab Media । क्यूँकि, ऐसा तो वहीं संभव है। जब टेक्नोलॉजी, मीडिया और रीती-रिवाज़ों या आस्थाओं और धर्मों के पीछे छुपे बैठे, शैतानों? भगवानों? या इंसानों? को समझना शुरू किया, तो इसका नाम रख दिया Social Media । जिसकी लैब, किसी छोटे-बड़े इंस्टिट्यूट की कोई लैब ना होकर, सारा समाज है। एक बड़ी, मगर खुली लैब। जिसमें पता ही नहीं, कैसी-कैसी ताकतें, डिफ़ेंस, सिविल, राजनीतिक या आर्थिक, उसे अपने-अपने फायदे के लिए कंट्रोल करने पे लगी हैं।
पता वही है, जो पहले था।
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