बड़े बच्चों को करते देखा था, मना करने के बावजूद। जुबानी और लिखित में अवरोधों के बावजूद। उससे भी भद्दा कुछ छोटे बच्चों के साथ होता देख रही हूँ। इतने छोटे स्कूल के बच्चे की इनके compare में यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स को बच्चा नहीं कहा जा सकता।
मुझे समझ नहीं आता था, जब माँ-बाप को एक दो नंबरों के लिए आपस में बहस करते देखती थी। चिढ़ मचती थी, खासकर, जब उन्हें इतने छोटे बच्चों को डाँटते या मारते-पिटते देखती थी। जब गाँव आई, तब शुरू-शुरू की बात थी। भाभी ज़िंदा थे उस वक़्त। आसपास में ये सब आम-सी बात जैसे।
उनके जाने के बाद जो देखा, उससे चिढ़ नहीं होती थी, बल्की घिन मचती थी। क्यूँकि मैं अपनी classes में बड़े स्टूडेंट्स को वो सब, नहीं, उससे कहीं ज्यादा कुछ करते, कहते काफी वक़्त झेल चुकी थी। बहुत कुछ समझ आ रहा था, की गुड़िया के साथ क्या हो रहा था। जो साथ थे, वो उस सबसे अंजान थे। उनके हिसाब से कुछ गलत नहीं हो रहा था। सब सही चल रहा था। क्या था वो?
आप क्या पढोगे? कितने बजे पढोगे? या नहीं पढोगे? कब तक कहाँ खेलोगे या रहोगे। ये कहीं और के ही आदेशों का पालन हो रहा था। बिना उसके परिणाम जाने, गँवारपट्ठे इधर से भी और उधर से भी लगे पड़े थे, बड़े लोगों के आदेशों का पालन करने। जबसे गुड़िया को पढ़ाना शुरू किया तो समझ आया, ये कौन-सी पढ़ाई है। और उसे उस स्कूल में ही क्यों भेजा गया? वैसे तो आसपास के हर बच्चे और स्कूल के साथ कुछ-कुछ ऐसा ही है। मगर यहाँ शायद थोड़ा ज्यादा हो रहा था। या शायद कोई उस सबको ध्यान से देख-समझ रहा था, इसलिए ज्यादा समझ आ रहा था। इतने छोटे बच्चों की किताबों को पढ़ने का मौका भी बहुत सालों बाद था, खासकर लगातार इतने समय तक। हर अध्याय जैसे अपने आप कुछ गा रहा हो। उन किताबों के अंदर गलतियाँ या जबरदस्ती जैसे कुछ खास प्र्शन, अपने आप में किसी जबरदस्ती की तरफ इशारा जैसे कोई। खास तारीखों को खास तरह के प्रोग्राम। खास वाले डांस प्रधान हैं तो आईटी पढ़ाना ही नहीं। या सिर्फ ये वाला हिस्सा पढ़ाना है। मैथ में बच्चा ठीक-ठाक हो, तो भी भूत दिमाग में बिठा देना है। अपने आप भागने लगेगा दूर। नहीं भागे तो भगाओ। बहुत तरीके हैं उस सबके। कैसे? आओ जानते हैं, एक-एक करके की यहाँ बच्चों के और बड़ों के साथ क्या-क्या हो रहा है।
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