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Media and education technology by profession. Writing is drug. Minute observer, believe in instinct, curious, science communicator, agnostic, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Sunday, April 30, 2023

किसकी ज़मीन?

आप जब दो-चार घंटे के लिए, वो भी दस-पन्दरह दिन में कहीं आते-जाते हैं, तो उस जगह को, उन आदमियों को नहीं जानते, वैसे -- 

जैसे, जब किन्ही भी वजहों से आपको वहाँ रहना पड़ जाए। और कब तक, ये भी मालुम ना हो। इसी दौरान कुछ अजब से पहलुओं से मुलाकात हुयी, हमारी अपनी सभ्यता के। ऐसा भी नहीं, की इससे पहले बिलकुल भी वाकिफ़ नहीं थी। मगर, शायद ऐसे आमना-सामना नहीं हुआ, जैसे इस दौरान।  

आप 21वीं सदी की बात करते हैं, मगर कहीं-कहीं हालत आज भी शायद कई सदी पुराने हैं। और बनाये किसने? हमारे अपने पढ़े-लिखे जुआरियों ने। खासकर, वो काला कोट पहनकर न्याय की बात करने वालों ने? शायद कुछ हद तक। अब ऐसे-ऐसे cryptic केस लड़ोगे, तो समाज कहाँ जाएगा? उलझा रहेगा जातों, धर्मों में। निकल ही नहीं पायेगा, अजीबोगरीब जमीनों-जायदाद के विवादों से। जहाँ लोग लोभी, लालची और स्वार्थी ना भी हों, तो भी राजनीति के काले जाले और अजीबोगरीब बुने हुए ताने-बाने लोगों को धकेलेंगे ऐसे विवादों में। अपने-अपने राजनीतिक लाभ के लिए।   

और मान भी लिया जाए की राजनीती की मार शायद उतनी नहीं है, जितनी लालच या लोभ की, या एक परिवेश से उपजे मानसिक विचारों की। तो भी समाधान कहाँ है? मुझे कभी समझ नहीं आया की लड़कियों को अपना हिस्सा मांगना क्यों पड़ता है? और लड़कों को पैदायशी क्यों मिल जाता है? लड़की जहाँ पैदा होती है, वहाँ पराया धन कैसे हो सकती है? और वो अपने घर में ही पराया धन है, तो आगे जाके किसी ससुराल में अपना धन कैसे हो सकती है? सबसे बड़ी बात, यहाँ औरत सिर्फ़ और सिर्फ़ एक आदान-प्रदान का धन है? जैसे की जमीन किसी की? भला जमीन भी कभी किसी की हुयी है? हाँ, जमीन मरने के बाद सबको मुट्ठी भर जगह जरूर दे देती है। फिर वो राजे हों या रंक। किसके साथ गयी है? या जाने के बाद उसी की रही है? राजे-महाराजाओं की? या उनकी औलादों की? राजनीतिक मैप पर कुछ लाइन्स खींच देने से, या बाड़ें, दीवारें, हथियारबंद आदमी खड़ी कर देने भर से?

इस समाज के औरतों की ज़्यादातर समस्याएँ, इसी मानसिकता की ऊपज हैं। और सिर्फ़ औरतों की ही नहीं, बल्कि अपने आप में उस समाज की भी। इसका सीधा-सा समाधान है, की जहाँ लड़कियों को उनका हिस्सा न मिले या जिसके लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़े, ऐसी जमीन को उसके न रहने पर भी सरकारी घोषित कर दिया जाए। क्युंकि, ऐसे समाज में ऐसी लड़कियों को खत्म करने के चांस भी बढ़ जाते हैं। ख़ासकर, जब ताने-बाने के जाले पुरने वाले राजनीति से प्रेरित हों। 

मगर ऐसा सिर्फ लड़कियों के साथ हो, ये भी जरूरी नहीं। दुसरी किस्म की समस्याएँ भी हों सकती हैं। जैसे की ज़्यादातर, ज़्यादा शराब या ड्रग्स लेने वालों के साथ होता है। समझ से परे है, की जो इंसान बोल क्या रहा है, उसे ये मालुम हो या ना हो, मग़र वो अपनी जमीन बेचने लायक है? या बोतल थमाई ही ऐसे लोगों द्वारा जाती हैं, जो उस जमीन-जायदाद पर निग़ाह रखते हैं? ज़्यादातर ज़वाब शायद हाँ में ही होंगे। 

वैसे किसी के पास पैदायशी सैकड़ों एकर हों और किसी के पास कुछ भी नहीं। आप पैदा कहाँ हुए हैं, यही आपकी नियती निर्धारित कर दे, ग़लत तो ये भी है। ऐसे लोगों को भी कुछ तो न्यूनतम मिलना चाहिए। 

मुट्ठी भर जंमी और मुट्ठी भर आसमान

आदमी को चाहिए 

मुट्ठी भर जंमी 

और मुट्ठी भर आसमान 

बस हो गया पुरा उसका जहाँ

फिर ये इतना झोल क्या है?   


उनकी जमीन और तुम्हारी जमीन अलग है? 

उनका आसमान और तुम्हारा आसमान अलग है ?

हाँ जैसे --

जुए की जमीन और लड़की की जमीन? 

जुए के शिकार और लड़की के विचार? 

वैसे ही जैसे, जुआरियों के स्कूल? 

और लड़की की समझ के स्कूल ?

वैसे ही जैसे सुप्रीम-कोठे का धंधा 

और लड़कियों की तकदीरों के फंदे?

अलग हैं क्या -- 

मगर बना दिए गए एक हैं?   


शायद वैसे ही, जैसे, इस समाज में, लड़कों की पुस्तैनी जमीन-जायदाद, और लड़की की, अपनी खुद की कमाई? सही है क्या? 

Thursday, April 27, 2023

शैतान-दिमाग! तोड़फोड़-भेझे!

Let's Crack

Let's Break

Let's Kick Out

Let's Finish Off

क्या है ये सब? ऐसा ही बहुत कुछ और भी। 

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थोड़ा कम्प्युटर करें?

हाँ दो। 

और मैंने एक लैपटॉप उसे थमा दिया। 

उसने इंटनेट चलाया और अपने कार्टून्स देखने लगी। थोड़ी देर बाद आपने फिर वही प्रश्न दोहराया। Can we do some computer work?

No! गुस्से में। 

क्यों? कम्प्युटर आपको अच्छा नहीं लगता?

लगता है। 

फिर?

मुझे मम्मी वाला लैपटॉप चाहिए। 

अबकी बार जाऊँगी तो ठीक करवा लाऊँगी। अभी इसी पर कर लो। 

ये ठीक कैसे हो गया ? वो क्यों नहीं हुआ ? मम्मी का था इसलिए ?

एक गन्दी-सी कम्प्युटर शॉप पे गयी थी। उसने नहीं किया। 

अच्छा। उसने ये कैसे कर दिया ?

He is a bad guy. That's why. 

तो किसी और शॉप से करवा लेते। 

दिल्ली या चंडीगढ़ साइड जाना होगा, तो हो जाएगा। 

क्यों रोहतक में कोई और शॉप नहीं है?

है। एक दूसरे से भी करवाया था। वो भी bad guy निकला। 

दिल्ली, चंडीगढ़ भी bad guy निकले तो?

आपको नया मिल जाएगा। 

मुझे तो यही चाहिए। 

OK, ऐसा ही मिल जाएगा। 

ऐसा नहीं, यही। 

हुँ! और आप चुप। उसे मालूम ही नहीं, की आप ऐसे-ऐसे, कैसे-कैसे, कई और खुरापातियों की वजह से खराब लैपटॉप लिए हुए हैं। जिसमें एक इस जिद्दी बच्चे का भी टैबलेट है। थोड़ी-सी जिद शायद अच्छी भी है, खासकर तब, जब सामने वाले ने, सिर्फ और सिर्फ शैतानी के इरादे से ऐसा किया हो। 

इन्ही समस्याओं के चलते कभी ज्यादा महँगा लैपटॉप लिया ही नहीं। स्टार्टिंग रेंज लो। खराब हो जाए तो ठीक कराने के नाम पे ज्यादा धक्के खाने की बजाए, नया ले लो। ऐसे bad guys लोगों को जब इसका पता चलता है, तो वो और ज्यादा खराब करने लगते हैं, शायद। 

और ऐसा नहीं है, की ये समस्या सिर्फ़ लैपटॉप या टेबलेट्स के साथ ही हैं। ऐसे bad guys हर प्रोफेशन और हर फील्ड में हैं। किसी में कम तो किसी में ज्यादा। वो ना कोई इलेक्ट्रॉनिक एप्लायंस या व्हीकल बक्शते हैं और ना ही इंसान। Bad guys, मतलब जानवर, शैतान और भी शायद बहुत कुछ ऐसा-ही? हम उस दुनिया में हैं, जहाँ लोग शवों पे भी पैसे बनाने के चक्कर में रहते हैं। बचे-खुचे लोगों को एक दूसरे से भिड़वाने के चक्कर में रहते हैं। फिर एक छोटा-सा लैपटॉप बला ही क्या है? 

Tuesday, April 25, 2023

प्रतियोगिताएं -- चाही-अनचाही !

प्रतियोगिताएं -- चाही-अनचाही!

ऐसी-वैसी, कैसी-कैसी ?   

 बचपन में ही हो जाती हैं शुरू 

और 

चलती रहती हैं, आख़िरी साँस तक 

कितनी जरूरी? कितनी गैरज़रूरी?

बेवज़ह, यहाँ-वहाँ, कहाँ-कहाँ ?


ज़िंदगी आसान है 

जितनी बेवजहों को 

या खामखाँ थोपी हुई मुश्किलों से 

जितना जल्दी करलो किनारा 

ज़िंदगी उतनी ही मुश्किल है

जितनी ज़्यादा देर, उलझे रहो 

गैरज़रूरी या खामखाँ थोपी हुयी मुश्किलों में !

माटी के कच्चे-पुतले

बच्चे जैसे?

सीधे-साधे लोग? 

भोले-भाले लोग?   

अनपढ़-गँवार लोग? 

गँवारपठ्ठे?

अपरिपक्कव इंसान?  

आसानी-से धोखा खाने वाले लोग?

आसानी-से बहकाई में आ जाने वाले लोग?


Or Gullible Crowd? Gullible People? 

कौन हैं ये लोग? शायद हममें से हर कोई? किसी न किसी रूप में, कहीं न कहीं? कुछ थोड़े-से कम, तो कुछ थोड़े-से ज़्यादा?     

बच्चे दिल के सच्चे 

बच्चों के खेलों को देखना-समझना और उसका विश्लेषण करना, अपने आप में एक दुनिया दिखाता है। 

आस पड़ोस में कई सारे बच्चे हैं -- कुछ cousins, कुछ अड़ोसी-पडोसी, कुछ इधर-उधर के। इनमें से एक बच्चा या यूँ कहुँ बच्ची, मारने-पिटने में अव्वल थी। बाकी ज़्यादातर, मार-पिटाई खाते रहते थे और शिकायतों के ढ़ेर रखते थे, उसके खिलाफ़। 2-3 साल बाद ही, सारे बच्चे मार-पिटाई के खेल-खेलने लगे।  ये सब देखके अज़ीब भी लगता, और अटपटा भी। एक-दो बच्चों के व्यवहार को बदलना, कितना आसान या मुश्किल है? बजाय की सबको लड़ाका बना देना? 

यही हाल भाषा के हैं। अब ये सब दूर से तो कहीं आएगा नहीं। सीधी-सी बात, अपने वातावरण से सीख रहे हैं। वातावरण, आप अपने बच्चे का निर्धारित कर सकते हैं या ज़्यादातर कुछ खास अपनों का। उससे आगे तो थोड़ा मुश्किल है। हालाँकि इस मुश्किल का काफी हद तक हल है। वो स्कूल, जहाँ ये बच्चे पढ़ते हैं। क्युंकि, ये वो जगह है, जहाँ वो घर के बाद अपना सबसे ज्यादा वक़्त गुजारते हैं। और घर के बाद जहाँ की मानते भी हैं। 

अजीबोगरीब प्रतिस्पर्धा: माँ-बाप बच्चों में प्रतिस्पर्धा रखते हैं, किस का एक या दो अंक कम या ज़्यादा है। किसका एक या आधा अंक कट गया? मगर --

कौन कैसे बोलता है ? क्या-क्या खेलता है ? अब इसकी प्रतिस्पर्धा कौन रखे? क्युंकि, उसके लिए तो आपको खुद को भी जिम्मेदार ठहराना पड़ेगा। खुद में भी थोड़ा-बहुत बदलाव करना पड़ेगा। बस यही वो मार है, शायद जहाँ परवरिश कैसे लोगों के बीच हुयी है, का फ़र्क दिखने लगता है।  

माटी के कच्चे पुतले धीरे-धीरे ढलने लगते हैं, अपने आसपास के रंगों की घड़ाई में।

बच्चे वो साँचा हैं, जिन्हें जिस किसी साँचे में ढालोगे, वो ढल जाएँगे। उसके बाद इंसान जितना बड़ा होता जाता है, उतना ही मुश्किल होता जाता है। हालाँकि असंभव कुछ नहीं। 

माटी का कच्चा पुतला पे पहले भी शायद कहीं कुछ लिखा था: 

Click on: माटी का कच्चा पुतला 

Or copy-paste: https://worldmazical.blogspot.com/2016/08/blog-post.html

Thursday, April 13, 2023

Countryside Beauty from Here or There



Or copy-paste: https://www.youtube.com/watch?v=yxzeNqWJv98

कौन हैं ये अंधभक्त, कौन है ये आदमखोर?

एक तरफ हैं अंधभक्त और दुसरी तरफ़?

इस आदमखोर का खात्मा जरूरी है?

अब कौन हैं ये अंधभक्त?

और कौन है ये आदमखोर?

ये भी तो जानना जरूरी है। 

नहीं?     

Saturday, April 8, 2023

Modi No More!

 Think, tomorrow's breaking news: Modi No More!

अरे सोचने के लिए बोला है। 

क्यूँकि, किसी भी परिणाम की पहली सीढ़ी सोच से शुरू होती है?  

ऐसे तो दुनिया पता नहीं, किस-किसको रोज मार के सोती है। नहीं ?

हाँ भी और नहीं भी। 

चलो करते हैं, एक शुरुआत। बहुत हुआ। फुट बे। तेरे बाप की ना है यो कुर्सी। 

कुछ-कुछ, बोले तो कुछ भी? या सही है?

आप सोचिये, आते हैं Breaking News पे, किसी अगली पोस्ट में।    


तुम जहाँ रहते हो

तुम जिसके पास रहते हो, उसी जैसे-से दिखने लगते हो। कैसे? व्यवहार भी, वैसा-सा ही करने लगते हो। 

कुछ साल पहले, दो बच्चों के बालों में, कुछ अजीबोगरीब बदलाव महसुस किये गए।जेनटिक के हिसाब से, वो कुछ हज़म नहीं हो रहा था। एक बच्चे के पैदायशी, सीधे भारतीय भूरे-काले बाल, काले और  घुँघराले में बदलने लगे थे। दूसरे के पैदायशी, काले और घुँघराले बाल, सीधे और हलके काले में। कोई बड़ी बात नहीं। कितने ही तो कॉस्मेटिक्स हैं बाज़ार में, ऐसा करने के लिए। मगर, वो इन बच्चों के केस में संभव नहीं लग रहा था। माँ-बाप ही इतना पार्लर नहीं जाते, तो बच्चे कहाँ से जाएँगे?

उस वक़्त ये शायद किसी ने लिखा था कहीं, "तुम जिसके पास रहते हो, उसी जैसे-से दिखने लगते हो।" मुझे समझ नहीं आया तब। शायद, अब कुछ-कुछ आ रहा है।  

व्यवहार भी, वैसा-सा ही करने लगते हो। 

खाते-पीते वही हो। नहाते-धोते उसी पानी से हो। रखरखाव भी, वैसा-सा ही रखते हो। नहाने-धोने के लिए, रखरखाव के लिए, प्रोडक्ट्स भी तक़रीबन वही प्रयोग करते हो। छोटी-मोटी बिमारियों के नाम पे, दवाईयाँ भी वहीं की लेते हो। तो क्या होगा? 

पहले मैं यहाँ से कोई प्रोडक्ट कम ही लेती थी। चाहे वो खाने-पीने का हो या किसी और तरह का। क्युँकि, इतनी देर रुकना ही नहीं होता था। अब जब रूकना पड़ा, तो काफी-कुछ समझ आया। दिनप्रतिदिन प्रयोग होने वाला कुछ  सामान, मैंने यहाँ से लेना शुरू कर दिया। 

ये भी समझ आया की Molecular Bio के Codon Usage की तरह, हर प्रोडक्ट का अपना एक कोड है और वो किस कोड वाली जगह या दुकान पे फिट बैठता है, वो प्रोडक्ट भी वहीं आएगा। इसमें काफी कुछ automation पे है और काफी कुछ semi-automation ऐसे ही जैसे, इस जगह इनके हॉस्पिटल हैं, उस जगह उनके। इन हॉस्पिटल्स में, इन-इन कंपनियों की दवाईयाँ मिलेंगी। उन हॉस्पिटल्स में उनकी। बदल गए, उनको बनाने वाली सामग्री और तरीके। तो प्रभाव भी बदलेंगे।   

सोचो, एक ही कंपनी, एक ही प्रोडक्ट, मगर थोड़ी-सी जगह बदलते ही, उसपे कुछ अजीब-सा, कोई शब्द बदला मिले? ऐसा एक नहीं कई प्रोडक्ट्स के साथ हुआ। आपने कोई खाने का सामान लिया है। याद ही नहीं कब से वही ले रहे हैं। दोनों जगह पैकेजिंग वही, स्वाद भी वही, दिख भी वैसा ही रहा है। मगर बड़ा-सा लिखा एक शब्द, आपको उत्सुक बनाता है। और आप सोचते हैं, ये क्या है? वैसे भी मेरी आदत का हिस्सा है, तारीख़, ingredients वैगरह जाँच कर लेना।   

एक जगह के उसी कवर पे अंदर की साइड M, और दूसरी जगह B। अब किसी खाने-पीने की वस्तु के अंदर के कवर पे भी, ऐसा क्या फर्क हो सकता है? ये कौन-सा, electronic-items की chip हैं? 

कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे, कहीं सीधे और खुले बालों का चलन हो। बाँधना हो, तो इक्क्ठ्ठे किये, सिम्पल सा रुफल डाला और हो गया। मतलब, जो काम आसानी से और कम वक़्त में हो सके और ठीकठाक भी लगे। और कहीं चलन में,जलेबी-जैसी, सीधी-सी-चोटी (Braid)। वहां पर शायद वही अच्छी लगती है। उनके लिए खुले बाल मतलब, भूतनी! भांध ले इन्ह, भुंडी लाग्य सै। दादियों के वक़्त में, एक जबस्दस्त गुँथा-हुआ, सिर के ऊपर जुड़ा जैसा-सा चुण्डा होता था, जो वो खुद नहीं बनाती थी, बनाने वाली आती थी। तो कहीं बच्चों को नए-नए शौक थमाए जा रहे हों। आज इधर से, कल उधर से, परसों उधर से, टेढ़ी-मेड़ी, उलटी-पुल्टी, कभी आगे से, कभी पीछे से, कभी इस साइड से, तो कभी उस साइड से, कभी एक, कभी दो, कभी और भी ज्यादा। आओ, पार्लर-पार्लर खेलते हैं। खामखाँ की रोकटोक, शायद किसी को भी अच्छी नहीं लगती। खासकर जबतक बताया ना जाए, की ऐसे या वैसे करने से फर्क क्या पड़ता है। हमें क्या करना है, या क्या बनना है, उसके हिसाब से वक़्त कहाँ लगाना चाहिए। वक़्त, जरूरतों, जगह और समय के हिसाब से काफी कुछ बदलता है।   

मगर इन्ही के अंदर छिपा होता है सिस्टम, राजनीतिक कोड्स और पार्टियों के द्वन्द्व। बच्चों से लेकर बड़ों तक, सिर्फ उनका अनुशरण कर रहे होते हैं। ज़्यादातर बिना जानकारी के। इसीलिए, अगर आप किसी या किन्हीं बिमारियों का बार-बार शिकार हो रहे हैं या लगता है, की ये किया हुआ है -- राजनीतिक बीमारी है, तो जगह बदल कर देखिये, शायद ठीक हो जाएं। वो कहते हैं ना, कुछ बीमारियाँ हवा-पानी बदलने से ही खत्म हो जाती हैं। क्युंकि, उस हवा-पानी के साथ-साथ बहुत कुछ बदल जाता है। वैसे ही, जैसे, भाषा, वेशभूषा, रहन-सहन, खान-पान आदि। ये सब पेड़ पौधों से ज्यादा सीखा जा सकता है।