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Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Saturday, May 11, 2024

स्टीकर ले लो स्टीकर (Social Tales of Social Engineering)

स्टीकर ले लो स्टीकर

अरे भैया कैसे दिए?

2 का। 5 का। 15 का। 20 का। 50 का। 100 का। 200 का। 500 का। इससे महंगे भी हैं। आपको कौन-सा चाहिए? किसपे लगाने वाले  चाहिएँ? फ्रीज पे? वॉशिंग पे? स्टडी टेबल पे? रसोई घर की दिवार पे? ड्राइंग रुम की दिवार पे? बाथरुम की दिवार पे? फर्श पे? कॉपी-किताब पे? कपड़ों पे? गाडी पे। और भी बहुत तरह के हैं। जैसे नेताओं के। अभिनेताओं के। वैज्ञानिकों के। किसान, जवान के। बहुत हैं। पेड़-पौधों के। पशु-पक्षियों के। जानवरों के। कीड़े-मकोड़ों के।  

अरे नहीं। जैसे झगड़ों के, बिमारियों के, टूटफूट के। मौतों के। और उनके सिस्टम से संबंधों के। हैं क्या? 

अभी तो नहीं हैं। बड़े गोदाम वाले साहब से पूछना पड़ेगा, शायद उनके पास हों। 

ठीक है। पूछ के बताना।               


Friday, May 10, 2024

टाली जा सकने वाली बीमारियाँ, हादसे या दुर्घटनाएँ (Social Tales of Social Engineering)

सामान्तर केस वो घड़ाईयाँ हैं जो बहुत से बड़े-बड़े लोगों की जानकारी के बावजूद हो रही हैं। जिनमें युवाओं का ही नहीं, बल्की बुजर्गों और बच्चों तक का शोषण है। बहुत से केसों में तो शोषण से आगे, मौतें तक हैं। ऐसी बीमारियाँ या हादसे, जिन्हें वक़्त रहते रोका जा सकता है। लेकिन हरामी लोग और राजनीतिक पार्टियाँ ऐसा नहीं चाहती। ये वो लोग हैं, जिन्हें किसी भी किम्मत पर सिर्फ और सिर्फ कुर्सियाँ या छोटे-मोटे लालच दिखते हैं। 

वैसे तो हर केस अलग है और उसका समाधान भी एक नहीं हो सकता। 

अलग-अलग समस्या, अलग-अलग समाधान।

मगर बहुत-सी सामान्तर घड़ाईयोँ में काफी कुछ ऐसा है, जो शुरू में बहुत ही छोटा-मोटा सा लगता है। मगर जिसे बढ़ा-चढ़ा बहुत ज्यादा दिया जाता है। उस छोटे-मोटे को बड़ा करने या बढ़ाने में, इन केसों के ज्ञाताओं को बहुत वक़्त नहीं लगता। वक़्त और जरुरत के हिसाब से, जिधर चाहें उधर मोड़ देते हैं। रिश्तों का यही है। बिमारियों का यही है और मौतों का भी ऐसे ही है।     

ये हूबहू घड़ाईयाँ इधर के या उधर के स्टीकर हैं। बेवजह के स्टीकर। बेवजह की बिमारियों के। बेवजह के हादसों या दुर्घटनाओँ के। ऐसी बीमारियाँ, जिन्हें आप नहीं चाहते। अब बिमारियाँ भला कौन चाहता है? और वो कब आपको बता कर आती हैं? मगर, आपको पता चले की कोई तो, उन्हें कहीं घड़ रहे हैं? तो? ठीक वैसे ही, जैसे, ये सामान्तर केस घड़ने वाली पार्टियाँ, इधर या उधर। जहाँ आपको पता नहीं चल रहा, की यहाँ कोई सामान्तर घड़ाई चल रही है, वहाँ जानने की जरुरत है, खासकर, जहाँ असर बुरे हों। मगर, जहाँ आपको कुछ भी कहकर या बताकर शामिल किया जाता है, वहाँ? बुरे असर जानने के बावजूद, कितनी बार शामिल होंगे आप ऐसी वैसी नौटंकियोँ में?

एक जोक है, किसी पढ़े-लिखे पुलिसिए का। मैं तो नदी पार करवाऊँ था।

और सामने वाला ना हुई बीमारियाँ भी सालों-साल लिए बैठा है? 

कौन है ये सामने वाला? 

आम आदमी? 

आप? हम? हम-सब? 

Micro Media Lab (Social Tales of Social Engineering)

जब आप आसपास या खुद पर घटित होती हुई, किसी आम-सी घटना या घातक दुर्घटना को सूक्ष्म तौर पर देख या समझ पाने की काबिलियत रखते हैं, तो क्या होता है? बहुत-सी ऐसी घटनाओं या दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है या उनका बुरा असर कम किया जा सकता है। 

जैसे जो पालतू जानवर पालते हैं, उन्हें पता होता है, की उन्हें कब खिलाना-पिलाना है। कब उनकी साफ़-सफाई करनी है। कब नहलाना है। कब वो वयस्क होंगे। उसके क्या लक्षण होंगे। जल्दी वयस्क करना है, तो क्या खिलाना-पिलाना है? या कैसे माहौल में रखना है? उनके बच्चे पैदा करवाने हैं, तो क्या करना है? और भी कितनी ही तरह की जानकारी पशु पालने वालों को होगी। आप कहेंगे शायद की कोई खास बात नहीं?    

ऐसे ही जो किसान हैं या जिन्हें बागवानी का शौक है, उन्हें मालूम होगा पेड़ पौधों के बारे में। कितनी मेहनत करते हैं ना पशु पालक या किसान? और कितना वक़्त लगाते हैं, अपने पालतू जानवरों पे या पेड़-पौधों पे? जितनी मेहनत करते हैं या जितना ज्यादा वक़्त लगाते हैं, उतना ही ज्यादा कमा पाते हैं? ऐसा ही? 

या शायद कभी-कभी ऐसा नहीं होता? क्यों? 

कभी मौसम की वजह से? तो कभी बीमारियों की वजह से? या शायद कभी लापरवाही की वजह से? या शायद कभी इधर-उधर की रंजिश की वजह से भी? कभी गलत पहचान की वजह से? तो कभी गलत पहचान को खुद से किसी स्टीकर की तरह चिपकाए रहने की वजह से भी? कैसे? और      

इंसानो के केसों में भी ऐसा ही है। 

जानने की कोशिश करते हैं, ऐसे ही कुछ-एक आसपास के केसों से। जैसे कोई Mistaken Identity Or Identity Crisis?    

Monday, April 22, 2024

चित भी मेरा, पट भी मेरा? पल्टुराम छल-कपट (Maneuvers)? Social Tales of Social Engineering

राजनीतिक पार्टियाँ कितनी पलटी मारती हैं? कितनी भी मार सकती हैं? शायद इतनी की आम आदमी उनका ABC तक ना समझ पाए? चलो छोटे से उदहारण से ही जानने की कोशिश करते हैं।  

आप कौन हैं?  

आपके माँ-बाप, भाई-बहन, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, मामा-मामी, नाना-नानी, बुआ-फूफा, दादा-दादी, उनके बच्चे और भी कितने ही रिश्ते? जो हैं, वही हैं? या वक़्त के साथ बदल जाते हैं? या फिर क्या वक़्त के साथ बदल जाता है? और क्या ना बदलता और ना ही आप बदल सकते?  

आप कहाँ पढ़े हैं? कहाँ रहते हैं? या रहे हैं?

कहाँ तक पढ़े हैं? 

क्या करते हैं? या पहले कर चुके? 

जो है, वही है? या बदल जाता है?

आपके नाम बदलने से? 

नाम का कोई एक अक्सर या शब्द बदलने से? 

जगह का पता बदलने से? 

घर का नंबर बदलने से? 

या स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी या कोई नौकरी बदलने से? या शायद एक तरह की नौकरी की बजाय, कोई और नौकरी करने से? आपकी पोस्ट या कुर्सी बदलने से? आपके रिश्ते-नाते बदल जाते हैं क्या? जो खून के हैं या स्थाई हैं, वो तो नहीं बदलते शायद? तो क्या बदल जाता है?

परिवेश? आसपास? आसपड़ोस? लोगबाग? जीव-जंतु? पशु-पक्षी? पेड़-पौधे? हवा-पानी? खाना-पीना? बोलचाल, बोलचाल की भाषा? पहनावा? और भी शायद बहुत कुछ?

क्या है जो कहीं भी जाएँ, तो नहीं बदलता? 

राजनीती में स्थाई क्या है? है, कुछ? कौन किसका है? कब तक है? है, तो क्यों है? या नहीं है, तो क्यों नहीं है? राजनीती में नीतियाँ ही स्थाई नहीं होती। वो कैसे और क्यों बदलती हैं? और किसके लिए बदलती हैं? ये तक अकसर राज रहता है। क्यूँकि, जैसा यहाँ दिखता है, वैसा होता नहीं। और जो होता है, वो अकसर दिखता नहीं।      

चलो अगली पोस्ट में, एक किसी आम इंसान की ज़िंदगी से समझने की कोशिश करते हैं।     

Sunday, April 21, 2024

कैसी ये स्याही (Ink) होगी? कैसा चुनाव और कैसा तंत्र? (Social Tales of Social Engineering)

 पीछे पोस्ट में मेरी तरफ से भारत में चल रहे चुनाव का बहिष्कार था। 

अब ऊँगली पे लगने वाली स्याही का बहिष्कार है। 

कैसा चुनाव और कैसा तंत्र?     


 कैसी ये स्याही (Ink) होगी? 

लोगों को सतर्क करने की ज़रुरत है, शायद?




कैसे-कैसे उजाले?
और कैसे-कैसे अँधेरे?  
2017 Chemicals Abuse? 


2018 या 2019?
Pink Bouganvillea  

और इन chemicals (abuse) के नाम कहाँ से पता चलेंगे? 
In case, anyone can?
Simple high dose pesticides or diluted form of acids?

वैसे तो कितनी ही बीमारियाँ हैं, जिनपे लिखा जा सकता है। ज़्यादातर लोगों को पता ही नहीं होता, की या तो उन्हें वो बीमारी है ही नहीं, जो diagnose कर दी गई है। या वो लक्षण हैं, आसपास के ज़हरीले वातावरण के। वो ज़हर पानी में हो सकता है। हवा में हो सकता है। और खाने-पीने में भी हो सकता है। या ऐसी किसी भी वस्तु में हो सकता है, जिसके आप जाने या अंजाने सम्पर्क में आते हैं। कॉस्मेटिक्स में हो सकता है, जैसे कोई भी लगाने की क्रीम वगैरह या नहाने-धोने का साबुन, शैम्पू। दवाई में हो सकता है। घर के साफ़-सफाई के सामान में हो सकता है। 

या शायद वो नीली-सी या बैंगनी-सी या थोड़ी काली-सी स्याही में भी हो सकता है, जो आपकी ऊँगली पे वोट डालने के बाद लगती है। थोड़ा बहुत शायद भारत के CJI बता सकें? वैसे ये वाली स्याही ऊँगली पे ही लगती है ना, कहीं कलाई पे तो नहीं?

जैसे सालों-साल फाइल्स में चल रहे ऊटपटाँग रिश्तों को टाटा, बाय-बाय किया था। वैसे ही अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों द्वारा, लोगों पर अपनी-अपनी तरह के भद्दे-धब्बों, ठपों और मोहरों को टाटा, बाय-बाय। एक शुरुवात, इस गुप्त कोढ़ सिस्टम को उखाड़ फ़ेंकने की, ताकी कम से कम आगे की पीढ़ियों को ये ना झेलना पड़ें। थोड़ा मुश्किल है, पर असंभव तो नहीं। कम से कम, एक शुरुआत तो कर ही सकते हैं। 

तो क्यों बात हो इशारों में? क्यों "दिखाना है, बताना नहीं" बनते रहें, लोगों की ज़िंदगियों की बीमारियाँ या मौतों तक की कहानियाँ? क्यों ना खुल कर बात हो, राजनीती या सिस्टम की थोंपी गई बिमारियों की और मौतों की, उनके कोढों के साथ?    

Sunday, April 14, 2024

Social Media Culture, Booster Doses (Social Tales of Social Engineering)

Culture?

जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने?

पैदाईश ही जीरो होगी, तो क्या होगा तेरा?

पैदाईश जीरो? सच में?

Eurovision Song Contest, पहली बार देखा 2005? 

और favourite song? 

My Number One? 2005 


ले तू जीरो पे एक रख
पापा? राजी? या? Paparizou? या?  

"Music is my life?

My life is music?"

Music madness continues और 

ये क्या है?


My Number One? 2016  


आपने कुछ सोचा, उस 2005 वाले गाने के बारे में? 

शब्द वही हैं, मगर बाकी सब बदला-बदला सा है?  

Booster Doses?

Sleep? Psycho?

Music?

Ram Rahim? 

उन्होंने कहा, Immersive Media Technology 

अब ये क्या बला है?

Laser Show?     

Lake Tiliyar, Special Shows 

धन्यवाद, छोटे हुडा को?

दिप्तम-दीप्तम सा है? और आगे आप कहीं, दिप्ती मैडम से भी मिलोगे। 

कहीं किसी केस में जज, तो कहीं?

ये कौन सी दुनियाँ है? और चल क्या रहा है?

"कुछ ना, तू मैन्टल है और मैन्टल सर्टिफ़िकेट पकड़। अब तेरे को चुप करवाने का यही एक रस्ता है। "         

यही नहीं, अब आप गानों को शायद, किसी और नज़र से भी देखने लगे? पहले फ़ोकस शायद सिर्फ लिरिक्स होते थे? अब क्या बदल गया? अरे! ऐसे तो मैंने गानों को कभी देखा ही नहीं? Evolution हो गया? जुर्म और अनुभव की खिचड़ी पकने लगी, धीरे-धीरे दिमाग में? टेक्नोलॉजी के बारे में जानने की उत्सुकता भी बढ़ गई? पहले तो कभी सोचा ही नहीं, की कैसे होता है या करते होंगे ये कलाकार, इतना कुछ? कैसे-कैसे, अलग-अलग विषयों के ज्ञाता होंगे, इस सबके पीछे?

कभी सुना है की मोदी, हाँ वही, आज तक भारत का प्रधानमंत्री, भाषण कैसे देता होगा? किसी hologram से उसका कोई लेना-देना हो सकता है क्या? ये teleprompter क्या होता है? ये सब सिर्फ टेक्नोलॉजी है? राजनीती? Music Industry? या इन सबका, किसी कोढ़ से भी कोई लेना-देना हो सकता है?      

वैसे, music industry का किसी बच्चे के कानों में silver ear rings डलेंगे या gold? या माँ के जाते ही, उसके कान पक जाएँगे? और so-called कमीनों की सलाह पे, सींख डल जाएँगी? बच्चे पे उसका क्या असर होगा? नई आने वाली सोने से लद जाएगी? बीमारी (कानों का पकना?), माँ के जाने के बाद, अपने आप आ जाएगी? या? Invisible Enforcements? अद्रश्य तरीक़े बिमारियों के? अद्रश्य तरीके, लोगों के भेष और हुलिया बदलने के? आप किस वक़्त कहाँ होंगे और कैसे दिखाई देंगे? जैसे बच्चों के बालों के हेरफेर वाला केस? 

कितना कुछ आ गया ना, इस कल्चर में? यहाँ Microlab Culture की समझ बहुत जरुरी है। राजनीती, टेक्नोलॉजी, ज्ञान-विज्ञान के दुरुप्योग को "सोशल मीडिया कल्चर लैब" में पकाई गई, खिचडियों (तरह-तरह की बिमारियों), को समझने के लिए। इसलिए कहा, मीडिया हर विषय के लिए अहम है। कम से कम, यूनिवर्सिटी के स्तर पे तो हर डिपार्टमेंट में इसका अपना, अलग expertise होना चाहिए। जो ये बता सकें, की उनके विषय के ज्ञान या विज्ञान को कैसे भुनाया जाता है? किसी भी समाज के स्वास्थ्य या बिमारियों के स्तर पर? किसी भी समाज की बदहाली या खुशहाली के लिए? ये मीडिया महज़ वो जर्नलिज्म नहीं है, जो भड़ाम-भड़ाम करता रहता है, दिन-रात। ज्यादातर, इस या उस पार्टी के राजनीतिक एजेंडों को। ये मीडिया वो मिर्च-मसाला भी नहीं है, जो मनोरंजन के नाम पे कुछ भी परोसता है और उसे भी भुनाता है। समाज को बीमार करने के लिए। ये मीडिया वो है, जो बता सके, की भगवानों को कौन बनाते हैं? इंसानों को कौन? और शैतानो को कौन? और उससे भी अहम, क्यों और कैसे? रीती-रिवाज़ों में बदलाव कैसे और कहाँ से आते हैं? साइकोलॉजी या फिजियोलॉजी, और भी ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे विषयों का, इन बदलावों और वहाँ की राजनीतिक पार्टियों के अद्रश्य एजेंडों से क्या लेना-देना है? क्या ये भी किन्हीं बिमारियों की वजह या लक्षण हो सकते हैं? और ईलाज भी वहीँ छिपा हो सकता है?    

ये मीडिया वो है, जो एनवायरनमेंट जैसे विषय की तरह अहम है और इकोलॉजी के स्तर पे हर विषय को अपने में समाए हुए है। 

और ये Social Tales of Social Engineering क्या है? ये वो कहानियाँ हैं, जो आपकी, मेरी और हर किसी की ज़िंदगी से जुड़ी हैं। ज़िंदगी के बनने में या बिगड़ने में। ये भी, हर किसी के लिए और हर विषय के लिए अहम हैं। क्यूँकि, ज़िंदगियों को अलग-अलग दिशा या दशा देने के लिए, अलग-अलग जगह, अलग-अलग तरह के विषयों की खिचड़ी पकी होती है। जैसे, 

कुछ इंसान के खोल में छुपे जानवरों ने, होली के दिन इस बेजुबां के कान में चीरा लगा दिया 


या एक ख़ास तारीख को हमारी गली में रहने वाली कुत्ती के ज़ख्मों पे, एक पियकड़ से पेट्रोल डलवा दिया। और भी कितने ही ऐसे किस्से हैं। जिन्हें, सुनकर या जानकार यही कहा जा सकता है, ये कौन-सा समाज है? और कैसी राजनीती? जिसका आम इंसान भी जाने-अंजाने हिस्सा बना दिया गया है?  

Social Media Culture, Booster Doses (Social Tales of Social Engineering)

 Booster Doses?

An interesting concept?

Not just in labs?

Where you need antibody production?  

 



But?
Social in Media Culture also?  
Defence or Civil?
Civil or Defence?
How?
Such an interesting interdisciplinary world?  

Social Media Culture? (Social Tales of Social Engineering)

How you evolve? 

With time? 

With age? 

With circumstances?  

With your surrounding?


Surrounding?

Place?

People?

Plants?

Animals?

Birds?

Worms?

Or flies?


The water you consume there?

The air you breath there?

The food you eat there?

The faith and belief of that surrounding?

The customs, that place follows?

The way, that place or society treats?

Her girls? 

Boys? 

Kids?

Adults?

Elders?


The language, that place speaks?

The way that place look at --

Different views?

Different opinions?

Different customs?

Different people?

And their ways of life?


The way, people wear cloths there?

Types, designs, colours, 

And so many different combinations?

The way, people talk there,

With each other?

With respect or disrespect?

Straight forward or hidden agendas?

The way, people take each-other ahead?

Or the way, they pull down each other, 

So low, that can put under graves?


Whatever you interact in your surrounding

Then be it living or non living beings

Make your life

That's why they say, 

Choose your surrounding carefully? 

But, the kind of social media culture, 

People come across in this world

Do they really have choices?

Or enforced agendas work invisible ways?

Beyond people's understanding?

Thursday, April 11, 2024

इकोलॉजी (Ecology) और बिमारियों की जानकारी? (Social Tales of Social Engineering)

इकोलॉजी (Ecology), आपका अपने आसपास से रिस्ता या यूँ कहो, की जिस किसी जीव या निर्जीव के संपर्क में आप आते हैं, या जो कुछ भी आपके आसपास है, उसका आप पर या उस पर आपका प्रभाव। इसमें आपके आसपास जो कुछ भी है, वो सब आ जाता है। हवा, पानी, खाना-पीना, इंसान, जीव-जंतु, कीट-पतंग, पेड़-पौधे, घर या बाहर का सामान, अड़ोस-पड़ोस, मोहल्ले, समाज में कैसे भी बदलाव। जीव या निर्जीवों का आना या जाना। और भी कितना कुछ। यही सब सोशल मीडिया है। किसी भी जगह के जीव-जंतुओं का आगे बढ़ने का या रुकावट का माध्यम। बड़ी-सी माइक्रोबायोलॉजी लैब। या कहीं का भी सिस्टम।      

मैंने अपने घर और आसपास के बच्चों की कुछ बिमारियों (या लक्षणों?) को जानने की कोशिश की थी, कुछ साल पहले। ये सब शुरू हुआ था, की पैदाइशी अगर किसी बच्चे के बाल सीधे, सिल्की और भूरे हैं, तो कुछ साल बाद ही, वो घुँघराले, खुरदरे (Rough) जैसे, और काले हो सकते हैं? और ऐसा होते ही, बच्चे का हुलिया ही कुछ और ही नज़र आने लगेगा? ऐसे ही जैसे, अगर किसी बच्चे के बाल पैदायशी घुँघराले और काले हैं, तो कुछ साल बाद ही वो सीधे, कम काले और सिल्की हो सकते हैं? यहाँ फिर से हुलिया अलग ही नज़र आने लगेगा। अब जितना जैनेटिक्स पढ़ी हुई थी, उसके हिसाब से तो ऐसा नहीं हो सकता। हाँ। वातावरण में बदलाव, खाने-पीने में बदलाव या आर्टिफिसियल तरीके से ऐसा संभव है। अर्टिफिशियल तरीके से कैसे? इनके माँ-बाप ही पार्लर नाम मात्र जाते हैं, वो भी किसी ख़ास प्रोग्राम पे ही। तो बच्चोँ का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। ये मेरी अपनी भतीजी और भांजी का केस था, तो तहक़ीकात थोड़ी और शुरू कर दी। 

भाभी ज़िंदा थे उन दिनों। माँ और भाभी से बात हुई, तो माँ ने बोला, ऐसे ही थे बचपन से। भाभी ने बोला, नहीं थोड़े बदल गए लगता है। उसपे माँ ने थोड़ा और जोड़ दिया, की भाई के भी शायद ऐसे ही हैं। जब मैंने कहा, की घर में तो ऐसे किसी के नहीं है, तो कैसे हो सकता है? जितना मुझे मालूम है, तो रिश्तेदारों में भी नहीं है। यहाँ सीधे से, घुँघराले होने लगे थे। भाभी ने इसपे कहा, शायद मेरी माँ पे हैं। उनके जड़ों से तो सीधे हैं, मगर थोड़े बड़े होने पे घुँघराले होने लगते हैं। मुझे भाभी और माँ, दोनों के ही तर्क, बेतुके लग रहे थे। माँ को बोला, आपको इतना तक पता नहीं, की आपके लाडले के बाल कैसे हैं? और उन्होंने डाँट दिया मुझे, जैसे हैं, ठीक हैं। दिमाग़ मत खाया कर, हर बात पे, खामखाँ में। भाभी हंसने लगे। और कर लो बहस। मैंने भाभी को कहा, की एक बार एल्बम लाना। माँ ने मेरी तरफ घूर कर देखा। और भाभी ने कहा, पता नहीं दीदी कहाँ पड़ी है एलबम,  ढूँढ़नी पड़ेगी। 

मैं घर आ गई, भाई के घर से। अपनी एल्बम निकाली, जिसमें भाई और गुड़िया की अलग-अलग वक़्त की फोटो थी। अब शक और बढ़ गया, की कुछ तो गड़बड़ घोटाला है। क्यूँकि, दोनों में से किसी के बाल घुँघराले नहीं थे।      


अब पहुँची मैं ऑन्टी के पास। जिनका घर भाई के साथ ही लगता है। उनसे भांजी के बारे में बात हुई तो बोले, हाँ बचपन में तो ऐसे नहीं थे, अब बदलने लगे। यहाँ घुंघराले से, सीधे होने लगे थे। जाने क्यों, अब मुझे छोटी बहन (चाचा की लड़की) के बालों पे भी शक होने लगा। जिसके बाल घुँघराले जैसे-से हैं। मगर मेरे पास उसकी बचपन की कुछ फोटो हैं, जिनमें सीधे हैं। ये भी कुछ-कुछ ऐसा था शायद, जैसे भाभी ने अपनी माँ के बालों के बारे में बोला? इसी दौरान ऑनलाइन कुछ सर्च कर रही थी और किसी फ़ोटो को देखकर फिर से थोड़ा शंशय। ये अंकल की फोटो थी, जिसमें उनके बाल घुँघराले लग रहे थे। मुझे ऐसा कुछ ध्यान नहीं। शायद कभी ध्यान ही नहीं दिया। 

फिर से एक दिन अंकल के घर थी और वही फोटो सामने देख रुक गई। पर ये तो यहाँ बहुत सालों से थी। मतलब, हम बहुत-सी बातों पर सामने होते हुए भी, ध्यान नहीं देते। क्यूँकि, जरुरत ही नहीं होती। ये तो जब जरुरत महसूस हो, तभी ध्यान जाता है। मैंने फिर से ऑन्टी से पूछा, की अंकल की ये फोटो कब की है? क्या अंकल के बाल घुँघराले थे? वो फोटो शायद, उनके आखिरी दिनों के आसपास की होगी। और उन्होंने बताया की घुँघराले तो नहीं थे। 

टेक्नोलॉजी का गलत प्रयोग?  

क्यूँकि, खुद की मेरी कितनी ही फोटो, पता ही नहीं कैसे-कैसे ख़राब की हुई थी और ऐसा ही बहुत-सी गुड़िया के केस में था। चलो फोटो में बदलाव तो समझ आते हैं, वो भी आज के युग में। मगर, जो वो सामने गुड़िया और भांजी के बालों के साथ हो रहा था, वो क्या था? ये उस दुनियाँ की सैर करवाने वाला था, जो कितने ही चाहे-अनचाहे बदलावों के और बिमारियों के राज खोलने वाला था।  

जानकारी या ज्ञान-विज्ञान का गलत प्रयोग?

मतलब, छोटी से छोटी चीज़, जो आपके आसपास बदल रही है, वो कहीं ना कहीं, किसी ना किसी रुप में आपको और आसपास के जीवों को प्रभावित कर रही है। वो फिर चाहे खाना-पीना है या ऐसा कोई भी उत्पाद, जो आप नहाने-धोने में या अपनी या अपने आसपास की किसी भी प्रकार की सफ़ाई में प्रयोग कर रहे हैं। और भी अहम, उसे आप किससे या कहाँ से ले रहे हैं? वो चाहे आपके कपड़ो का या बालों का स्टाइल का तरीका है या उनमें प्रयोग होने वाले उत्पादों के किस्म और प्रकार। वो चाहे आपकी हवा का रुखा-सूखा, धूल-भरा या साफ़ होना है या उसमें पानी की अलग-अलग मात्रा। वो आपके आसपास के तापमान का तीख़ापन है या सुहावना होना। वो आपके घर की शाँति है या लड़ाई-झगड़ों का बढ़ना। वो आपके ज़मीनी पेड़-पौधों का बदलना है या अच्छे से फलना-फूलना। वो आपके घर के पेड़-पौधों का इस जगह से, उस जगह खिसकना है या बाहर कहीं जाना। वो आपके ज़मीनी पेड़-पौधों का मरना है और सिर्फ गमलों वाले पौधों का ही जीवित रह जाना। वो आपके छोटे से छोटे गमलों में भी एक पौधे का होना है या उसमें भी दो, तीन या ज्यादा पेड़-पौधों का होना। वो एक ही, वो भी छोटे से गमले में भी, एक ही तरह के पेड़-पौधे का होना है या उसमें भी कई तरह के पेड़-पौधों का एक साथ लगा देना। वो आपके आसपास के कीट-पतंगों का बदलना है? या कुत्ते, बिल्लियों का सिर्फ एक, दो ना होकर कई सारे, पता ही नहीं कहाँ-कहाँ से अचानक आना शुरू हो जाना। और फिर अचानक से ग़ायब हो जाना। इनमें से बहुत कुछ अपने आप नहीं होता। बल्की, धकाया हुआ या जबरदस्ती लाया हुआ होता है। वो फिर बंदरों के झुंड हों या गाय-भैंसों के। वो फिर टिड़ियों के दल हों या अलग-अलग तरह की चिड़ियों के। अपने आसपास में हो रहे या किए जा रहे बुरे या भले बदलावों को समझना शुरू करो। बहुत कुछ समझ आएगा। बिमारियों को होने से रोकने के या होने पर ईलाज के समाधान डॉक्टरों के पास नहीं, आपके अपने पास या आसपास हैं। डॉक्टर तो तब के लिए होते हैं, जब बीमारी लाईलाज हो जाए। और वहाँ भी ज़्यादातर केसों में, जाने या अंजाने बढ़ती हैं, कम नहीं होती। 

Wednesday, April 10, 2024

शक्ति की रैली पीटना?

शक्ति, औरत है? पुरुष है? या LGBT? वैसे, ये LGBT कोढ़ क्या है?

बच्चा या बच्ची है? युवा है, या बुज़ुर्ग? इंसान है? शैतान है? भगवान है? भगवानी है? कोई देव या देवी? आप शक्ति को किस रुप में मानते या जानते हैं? पवित्र है? अपवित्र है? पूजनीय है या अपूजनीय? किसी का बेटा है या बेटी? किसी की माँ है या बाप? किसी की बहन है या भाई? किसी की पत्नी है या पति? किसी एक की है या अनेक की? और भी कितने ही ऐसे प्रश्न हो सकते हैं। 

राजनीती वाले, इधर वाले या उधर वाले, किस शक्ति की रैली पीट रहे हैं? इधर वाले या उधर वाले? आप राजनीती के गढ़े भगवानों, अवतारों, छलियों, शैतानों या इंसानों को मानते हैं? या आपका अपना भी कोई मत है? या उनके कहने या उकसाने पर लोगों की रैलियाँ पीटते हैं ? (जो ज़्यादातर जाने-अंजाने, आप अपनी खुद की पीट रहे होते हैं।)

या ऐसे उकसावों और भडावों से दूर रहते हैं?

मान लो, कोई शक्ति पुरुष है और अपनी पत्नी को लेकर कहीं जा रहा है। तो कोई कहे, ये दो को कहाँ ले चला? या ये आधे-आधे टुकड़े कहाँ ले चला? हकीकत में वो चाहे, एक को ही ले जा रहा हो। क्यूँकि, शायद ऐसे लोगों के लिए शक्ति पुरुष नहीं औरत है। शायद माँ है, बहन है, बुआ है या बेटी है। या शायद पत्नी है। इधर वालों ने भी शक्ति की रैली पीट दी और उधर वालों ने भी। सिर्फ़ किसी राजनीतिक पार्टी के भड़काओं या उकसावों पे। क्यूँकि, राजनीती का काम यही है। नहीं तो किसी के भगवानों या भगवानियों, देव या देवियों या आमजन के निजी रिश्तों से राजनीती का क्या लेना-देना? 

और आपको पता है, की ऐसे-ऐसे भड़कावे या उकसावे आपकी जानकारी के बिना, आपके अपने घरों में लड़ाई-झगड़ों की ही वजह नहीं बनते, बल्कि बीमारियों की अहम कड़ियाँ (प्रकिर्या का हिस्सा) भी बनते हैं। कैसे? जानते हैं आगे कुछ पोस्ट में।